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प्रद्युम्न का असली गुनहगार कौन, वो बेरहम हाथ या शातिर दिमाग!

sach ke liye sach ke sath
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हरियाणा के हाईप्रोफाइल (तथाकथित इंटरनेशनल) रेयान स्कूल में हुई मासूम प्रद्युम्न की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हत्या में हाथ चाहे जिसके भी हो, दिमाग किसी शातिर हाईप्रोफ़ाइल व्यक्ति का है। प्रद्युम्न हत्याकाण्ड के जो तथ्य सामने हैं वो चीख-चीखकर कह रहे हैं कि हरियाणा पुलिस ने बस कंडक्टर को मोहरा बनाया है। किसी अपराध के मूल में कोई मोटिव होना चाहिए। आखिर बस कंडक्टर क्यों एक मासूम की नृशंस हत्या करेगा?


pradyuman


यह सवाल अब और महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह साफ़ हो चुका है कि प्रद्युम्न के साथ दुष्कर्म की पुलिसिया कहानी, कंडक्टर की स्‍वीकारोक्ति झूठी है। ऐसा प्रतीत होता है की स्वीकारोक्ति पुलिसिया थर्ड डिग्री की देन है। प्रद्युम्न की हत्या का सच वह नहीं, जो हरियाणा पुलिस देश के सामने परोस रही है। हरियाणा पुलिस की भूमिका प्रद्युम्न मामले में शुरू से ही संदिग्ध है। इसकी कहानी पर किसी को भरोसा नहीं है। कंडक्टर को हत्यारा सिद्ध करने की इसकी भूमिका भी लचर है, ताकि वह भी बच निकले।


हरियाणा सरकार और हरियाणा पुलिस की अब तक की सारी कवायद हमें बताती है कि मासूम प्रद्युम्न की हत्या के असली गुनहगार को बचाने की शर्मनाक कोशिश जारी है। ऐसा प्रतीत होता है कि मासूम प्रद्युम्न की हत्या के असली गुनहगार के तार सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े हैं। यही वजह है कि असली गुनहगार को बचाने की शर्मनाक कोशिश करते हुए हरियाणा पुलिस ने रेयान स्कूल प्रबंधन को इस हत्या से जुड़े साक्ष्यों को मिटाने, उनसे छेड़छाड़ करने का भरपूर अवसर प्रदान किया है।


पुलिस ने जिस बचकाने तरीके से इस नृशंस हत्याकाण्ड की जांच शुरू की, उससे यही प्रतीत होता है कि जांच की मंजिल इस हत्या के सच की हत्या कर एक ऐसा कमजोर और लचर केस अदालत में पेश करने की है, जिसमें हरियाणा पुलिस की कहानी चारो खाने चित हो जाये और उसने अशोक नामक जिस मोहरे को मासूम प्रद्युम्न का हत्यारा घोषित किया है, वह संदेह लाभ लेते हुए बरी हो जाए।


इस नृशंस हत्याकाण्ड के बाद स्कूल प्रबंधन द्वारा घटनास्थल से और प्रद्युम्न के स्कूल बैग से खून के दागों को मिटाने की बात सामने आने के बाद भी हरियाणा पुलिस ने हत्या के साक्ष्य मिटाने की इस गंभीर आपराधिक साजिश का संज्ञान नहीं लिया। उसने उन लोगों को छुट्टा छोड़ दिया, जिन्होंने साक्ष्य मिटाने की हरकत की थी। हरियाणा पुलिस ने घटनास्थल पर तत्काल न तो फोरेंसिक टीम भेजने की जरूरत समझी न ही घटनास्थल को सील करने की जरूरत समझी। उसने डाॅग स्क्वाॅयड की जरूरत भी न समझी।


स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरों से फुटेज लेने की भी जरूरत उसने न समझी। घटनास्थल से दो-दो चाकू की बरामदगी का भी उसके लिए कोई मायने नहीं था। यही वजह है कि प्रद्युम्न के परिवार सहित इस देश के हर समझदार नागरिक को हरियाणा पुलिस की भूमिका पर कतई भरोसा नहीं है। उसने कंडक्टर अशोक को मासूम प्रद्युम्न के हत्यारे के रूप में पेश तो किया पर उसके रिमांड के लिए अदालत में एक हास्यास्पद तर्क दिया कि जिस चाकू से कत्ल हुअा है, उसे हत्यारे अशोक ने आगरा से खरीदा था, इसलिए उसका रिमांड दिया जाए। हरियाणा पुलिस की इस कहानी पर कोई क्यों भरोसा करे?


जिस तरह हरियाणा पुलिस इस नृशंस हत्याकांड की लीपापोती में जुटी है। जैसी लचर, वाहियात और कमजोर कहानी उसने इस हत्याकांड के मोहरे कंडक्टर अशोक को लेकर पेश की है, उसका अदालती परिणाम क़ानून की एबीसीडी जानने वाले तक को पता है। यही वजह है की प्रद्युम्न का परिवार और यह देश इस हत्याकांड की जांच किसी मौजूदा न्यायाधीश की निगरानी में सीबीआई से कराने के पक्ष में खड़ा है, ताकि मासूम प्रद्युम्न का असली हत्यारा पकड़ा जा सके। प्रद्युम्न को, उसके शोकाकुल परिवार को न्याय मिले।


प्रद्युम्न की हत्या का सच सामने लाने की शुरुआत घटना के समय स्कूल में मौजूद स्कूल प्रबंधन के लोगों, आरोपी कंडक्टर अशोक, घटना के समय मौजूद माली के लाई डिटेक्टर टेस्ट से की जानी चाहिए। हर हाल में इस मासूम की जिंदगी छीनने वाले चेहरों को बेनकाब किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को ही इस सन्दर्भ में संज्ञान लेते हुए इस हत्याकाण्ड के गुनहगारों तक पहुंचने की राह सुझानी होगी, क्योंकि हरियाणा पुलिस और हरियाणा सरकार की भूमिका इस नृशंस हत्याकाण्ड में संदेह के घेरे में है।

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