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विवादित मुद्दों को उछालने , गड़े मुर्दे उखाड़ने की जिस संकीर्ण राजनीति की सीढ़ी के सहारे भगवा पल्टन के सियासी फलक पर नरेन्द्र मोदी छा गए ,फर्श से अर्श तक पहुंचे ,प्रधान मंत्री बन जाने के बाद भी पदीय गरिमा के विपरीत यही सतही और ओछी राजनैतिक राह के राही बने हैं आज उसी संकीर्ण राजनीति ने उनको कटघरे में ला खड़ा किया है।
2014 की चुनावी राजनीति में सास -दामाद ,विरोधियों के बेटे -बेटियों के खिलाफ जहर उगल कर मोदी ने जैसी ओछी और सतही राजनीति की थी आज ठीक वैसी ही राजनीति ने उनको उनकी डिग्री और जन्म तिथि विवाद के बहाने कटघरे में खड़ा कर दिया है।
डिग्री विवाद पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नरेन्द्र मोदी की जिस डिग्री को प्रेस कांफ्रेंस कर सार्वजनिक किया उसकी सत्यता संदेह के घेरे में है। जबकि जन्म तिथि विवाद पर मोदी की चुप्पी कायम है।
जिन तथ्यों के आधार पर नरेन्द्र मोदी की डिग्री के फर्जी होने का दाबा आप के नेताओं ने किया है उनका स्पष्टीकरण दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन को भी देना चाहिए और स्वयं नरेंद्र मोदी को सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। देश जानना चाहता है की डिग्री विवाद पर पीएम मोदी ने रहस्यमयी चुप्पी क्यों ओढ़ रखी है ? उनकी रहस्य्मय चुप्पी को डिग्री विवाद से जुड़े तथ्यों ,तर्कों ,आरोपों के सन्दर्भ में मौनम स्वीकार लक्षणम क्यों नहीं समझा जाना चाहिए ? मोदी को यह समझना होगा की वह अब चाय बेचने बाले नहीं रहे। वह इस मुल्क के माननीय प्रधान मंत्री हैं। सियासी सबालों पर चुप्पी ओढ़ने जैसी रणनीति डिग्री विवाद मामले में नहीं अपनाई जा सकती।
दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन जिसने उनकी बी.ए. की डिग्री की पुष्टि की खुद सबालों के घेरे में है। बी.ए. की डिग्री की पुष्टि करने बाले दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक आरटीआई के जबाब में कहा था की रिकार्ड उपलब्ध नहीं हैं फिर किस रिकार्ड से उसने पीएम मोदी की डिग्री का सत्यापन किया ? यहीं से दाल में काला होने के संदेह का सूत्रपात हुआ।
दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन से पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री को विवि के बेबसाईट पर मुहैय्या कराने की मांग की ।यदि दाल में काला जैसी बात नहीं है तब पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री को विवि के बेबसाईट पर मुहैय्या कराने में आना कानी क्यों की जानी चाहिए ? आप नेताओं की टीम के दिल्ली विश्वविद्यालय पहूंचने पर विवि परिसर पुलिस छावनी में तब्दील नजर आया और इस टीम से मुलाक़ात के लिए कथित तौर पर वहां न तो कुलपति उपलब्ध थे ,न ही रजिस्ट्रार। जबकि उनको इस टीम के आने की पूर्व सूचना थी।
डिग्री विवाद पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नरेन्द्र मोदी की जिस डिग्री को प्रेस कांफ्रेंस कर सार्वजनिक किया उससे दाल में काला नहीं दाल ही काली होने का संदेह गहराता है। दाल ही काली नजर आने की ठोस और तार्किक वजह आप नेताओं की टीम ने बताई है। मसलन अकेले पीएम मोदी का अंक पत्र कंप्यूटर से बना है । जानना होगा की 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय में कंप्यूटर सुविधा थी या नहीं ? पीएम मोदी के अलग अलग वर्ष की अंक तालिका में अलग अलग नाम अंकित हैं।देखना होगा की नाम सुधार हेतु इस अति मेधावी विद्यार्थी ने कोई आवेदन दिया था या नहीं ? यदि दिया था तब १९७८ से 2016 का लम्बा अर्सा गुजरने की बाद भी अंक तालिकाओं में अलग -अलग नाम कैसे अंकित हैं ? डिग्री विवाद से जुड़े ऐसे तमाम सबालों का अपने माननीय प्रधान मंत्री से हर हिन्दुस्तानी जबाब चाहता है। उसे प्रतीक्षा है उस पल की जब इस अति गम्भीर मामले पर पीएम नरेंद्र मोदी स्थिति साफ़ करें। यदि दाल में काला नहीं ,पूरी दाल ही काली नहीं तब उनको अपनी डिग्री का सच देश के सामने रखना चाहिए।
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