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हरियाणा सरकार को 17 अगस्त 017 को ही सूचना थी की साध्वी बलात्कार के आरोपी बाबा राम रहीम मामले में 25 अगस्त 017 को सीबीआई कोर्ट फैसला सुनाएगी। अनेकों विवादों से घिरे बाबा राम रहीम और उसके समर्थकों का हिंसक इतिहास रहा है। यह बात हरियाणा की भाजपा सरकार को भली भांति पता थी। बाबा राम रहीम ने चुनाव में खुल कर भाजपा का समर्थन किया था यही वजह थी की भाजपा सरकार अपने सियासी स्वार्थ साधने की कुत्सित मंशा से बाबा राम रहीम के हिंसक इतिहास को नजरअंदाज करती रही। कहने को तो खट्टर सरकार ने पंचकूला में धारा 144 लगा दी परन्तु उसके मंत्री सार्वजानिक तौर पर यह कहते रहे की आस्था पर धारा 144 लागू नहीं है। सरकार बाबा के समर्थकों की सुविधा का पूरा ध्यान रख रही है ।उनके खाने पीने का इंतजाम सरकार कर रही है। खट्टर के मंत्री पंचकूला में जुटे हुजूम को अच्छे लोग ,शांति के पुजारी बताते दिखे। दरअसल अपने मंत्री के माध्यम से मुख्य मंत्री बाबा राम रहीम और उसके समर्थकों को यह सन्देश देने की ढंकी तुपी कोशिस कर रहे थे की संवैधानिक मजबूरी की वजह से धारा 144 लगाई गई है पर हरियाणा सरकार आप लोगों के साथ खड़ी है।
धारा 144 लागू होने के वावजूद खट्टर सरकार ने लाखों के हुजूम को घातक हथियारों के साथ पंचकूला पहुँचने दिया। हरियाणा सरकार की भूमिका को लेकर हाई कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई और धारा 144 को जमीनी स्तर पर लागू करने के निर्देश दिए। सरकार की भूमिका से नाराज हाई कोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी को बर्खास्त करने तक की तल्ख़ टिपण्णी की। डीजीपी ने 24 अगस्त 017 की मध्य रात्रि के बाद पंचकूला को बाबा समर्थकों से खाली करा लेने की बात कही थी जो जुमला सिद्ध हुई।
कोर्ट का फैसला आने के बाद हिंसा भड़कने के ख़ुफ़िया इनपुट के वावजूद हरियाणा सरकार ने बाबा के समर्थकों को न तो रोकने की कोशिस की न ही संभावित हिंसा के मद्दे नजर इनकी तलाशी लेने की जरुरत समझी। फैसला आने के बाद हिंसा भड़केगी इसका अनुमान हाई कोर्ट को तो था पर खट्टर सरकार को नहीं था यह बात गले के नीचे नहीं उतर सकती है। जिस तरह बार बार हाई कोर्ट ने शांति व्यवस्था को लेकर अपनी चिंता जाहिर की हरियाणा सरकार को हर हाल में शांति व्यवस्था कायम रखने के निर्देश जारी किये उनका निहितार्थ एकदम साफ़ था की हाई कोर्ट को हरियाणा सरकार की नियत पर भरोसा नहीं था। फैसला आने के बाद भड़की हिंसा में मारे गए 28 लोगों और तोड़फोड़ ,आगजनी में हजारों करोड़ की निजी और सरकारी संपत्ति की क्षति के लिए सिर्फ और सिर्फ हरियाणा की भाजपा सरकार जिम्मेवार है। यह हिंसा कत्तई अप्रत्याशित नहीं थी ,यह हरियाणा सरकार द्वारा जान बूझ कर आमंत्रित हिंसा थी। बाबा राम रहीम के समर्थकों ने इससे पहले भी बाबा के समर्थन में हिंसा की है यह बात अतीत के पन्नों में दर्ज है।
मौजूदा रेप केस तकरीबन 15 साल पुराना है। मई 2002 में डेरा सच्चा सौदा की एक साध्वी ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर यौन शोषण के आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री को गुमनाम चिट्ठी भेजी और इसकी एक प्रति पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी थी। 10 जुलाई, 2002 को डेरा सच्चा सौदा की प्रबंध समिति के सदस्य रहे कुरुक्षेत्र के रणजीत सिंह की हत्या हो गई। डेरा सच्चा सौदा के प्रबंधकों को शक था कि रणजीत ने अपनी बहन से गुमनाम चिट्ठी लिखवाई है जो डेरा में साध्वी थी। 24 सितंबर 2002 को हाईकोर्ट ने साध्वी यौन शोषण मामले में गुमनाम पत्र का संज्ञान लेते हुए सीबीआई को जांच के आदेश दिए थे। जिसकी परिणति आज के फैसले के रूप में सामने आई जिसमे इस बाबा को साध्वी के यौन शोषण का दोषी घोषित किया गया है। सजा 28 अगस्त को सुनाई जाएगी।
गौरतलब है की इसी यौन शोषण मामले में सच उजागर करने की कीमत एक पत्रकार को जान गँवा कर चुकानी पड़ी थी। 24 अक्टूबर, 2002 को सिरसा के सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ के संपादक रामचन्द्र छत्रपति को घर के बाहर गोली मार दी गई। आरोप डेरा सच्चा सौदा पर लगा था। 21 नवंबर 2002 को रामचन्द्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मृत्यु हो गई।हाई कोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और रणजीत हत्या मामलों की सुनवाई इकट्ठी करते हुए 10 नवंबर 2003 को सीबीआई को एफ़आईआर दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए थे ।
एक आपराधिक छवि वाले बाबा के प्रति हरियाणा की भाजपा सरकार की उदारता सिर्फ इसीलिए थी की यह बाबा भाजपा के सियासी स्वार्थों की प्रतिपूर्ति में उसका मददगार था ,बाबा और उसके समर्थकों को खुश करने के लिए सिरसा से रेप और मर्डर के संगीन अपराध के आरोपी के कदमों में नजर आई भाजपा सरकार। बलात्कार और हत्या के आरोपी को जिस तरह 800 लग्जरी गाड़ियों के काफिले के साथ सिरसा से पंचकूला तक शक्ति प्रदर्शन करने की इजाजत खट्टर सरकार ने दी उसने भाजपा को पूरी तरह नंगा कर दिया है। भाजपा सरकार ने यह सिद्ध कर दिया है की उसके लिए इंसानी जान की कोई कीमत नहीं है उसके सियासी स्वार्थ इंसानी जान से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। पूरे घटना क्रम ने यह साफ़ कर दिया है की हालत को समझने ,हालत को काबू करने में हरियाणा सरकार पूरी तरह फेल हुई है। उसके सियासी स्वार्थों ने हरियाणा को ही नहीं पंजाब ,दिल्ली और उत्तर प्रदेश तक को हिंसा की भट्ठी में झोंकने का काम किया है।
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