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कुछ खरी कुछ खोटी ….. राजीव कुमार ओझा
लेखकीय
प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह में सुधि पाठक मेरे उन व्यंग्य लेखों से भी रूबरू होंगे जो समय समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और उन अप्रकाशित व्यंग्य लेखों से भी जो सम्पादकीय नष्तर से महफूज हैं(अक्षत)। प्रकाशित और अप्रकाशित व्यंग्य लेखों की स्वादिष्ट खिचड़ी पकाने की कोशिश का आकलन निश्चित रूप से पाठकीय अदालत को ही करना होगा। व्यंग्य लेखों में अपने समय की चर्चित घटनाओं का समावेश करने का प्रयास किया गया है। सामाजिक विसंगतियों ,व्यवस्था की विद्रूपता,सियासी नौटंकी के सन्दर्भ में आम आदमी की सोंच को व्यंग्य लेखों के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान करने की कोशिश का आकलन पाठकीय अदालत को ही करना होगा। संभव है किसी पात्र /कुपात्र का किरदार किसी सज्जन /दुर्जन को अपने किरदार सा लगे। सज्जनों की शाकाहारी प्रतिक्रिया तो झेली जा सकती है। प्रार्थना कीजिये कि दुर्जनों की हाहाकारी प्रतिक्रिया झेलने की नौबत न आये । मेरे व्यंग्य लेखों के किसी किरदार के दर्पण में कोई दुर्जन अपनी छवि न देख पाये। इति !
अपने व्यंग्य संग्रह “कुछ खरी कुछ खोटी ” से एक व्यंग्य आपकी अदालत में कृपया अपनी प्रतिक्रिया अपनी सलाह से अवगत जरूर कराइयेगा। राजीव कुमार ओझा __________
संकट मे है बहादुरी …..
साहेब राजधानी दिल्ली में बीते साल जिस ‘बहादुर बिटिया‘ की बहादुरी ने बकौल मीडिया पूरे देश को आंदोलित किया था उस आंदोलन की धमक ने वैश्विक फलक पर अपने भारत महान की कीर्ति पताका फहरा दी ।वैश्विक चौधरी अमेरिका तक ने हिंदुस्तानी ‘बहादुर बाला ‘की बहादुरी को झुक कर सलाम किया और थमा दिया मरणोपरांत बहादुरी का खि़ताब । साहेब अपने मुलुक की और मुलुक बालों की एक गन्दी आदत है आन का मान- सम्मान, आन का सुख इनसे देखा नहीं जाता। नुक्ताचीनी से ये बाज नहीं आते। अब अपने चाटू भाई को ही देखिये इनके पेट में भी ‘बहादुर बिटिया‘ के मान- सम्मान से मरोड़ उठने लगी । मुझसे झगड़ने लगे,‘‘ गुरु एक बात बताओ तुम्हारी मीडिया ‘बहादुर बिटिया‘ की बहादुरी के कसीदे काढ़ रही है ।मुझे ये बताओ हिंदुस्तान से लगायत अमेरिका तक के हुक्मरानों को इस बहादुर बिटिया की किस बहादुरी ने नतमस्तक होने को मजबूर कर के रख दिया ?’ क्या नाईट क्लास विद ब्वाय फ्रैण्ड ‘ की बहादुरी के ? मां -बाप को धोखा देने की की बहादुरी के ? ‘‘
साहेब मैं भी मीडिया मेड ‘मैड हवा‘ के झोंकों से प्रभावित था पर चाटू ने जो सबाल किया उसका जबाब खोजे नहीं मिला। मुझे अनुत्तरित पाकर चाटू अपनी मुकम्मल काबिलियत के साथ मुझ पर चढ़ दौड़े ।कहने लगे ,‘‘सारा किया धरा तुम्हारे इस नामुराद चौथे खम्भे का है । इतना चिचिआई तुम्हारी मीडिया कि सारा गुड़ गोबर करके रख दिया । मूल सबाल को चबा गई तुम्हारी यह वाहियात मीडिया । लैंगिक विभेद , लैंगिक असहिष्णुता की ऐसी खाई खोदी है इस नामुराद मीडिया ने जिसके लिए इतिहास , मौजूदा,भूतपूर्व और भावी मजनूं इस नामुराद चौथे खम्भे को कभी माफ़ नहीं करेंगे ।ये क्या तरीका है कि आप मजनूओं का जीना हराम कर दो । गुरु इन माननीयों को क्या कहें ऐसा कानून बनाया है कि माथा पीटने को जी चाहता है। ये कानून तो भविष्य की बहादुर बेटियों की भ्रूण हत्या करने बाला है ।बहादुरी की बुनियाद में ही मट्ठा डालने बाला है ये कानून ।गुरू तुम्हई बताओ जब नैन मटक्का तक पर पहरे बैठा देगा ये कानून तो नैन मिले चैन कहाँ .. गुनगुनाने की नौबत ही नहीं आएगी। बहादुरी देखने- दिखाने का तो स्कोप ही खलास हो जायेगा। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ गुरु की नैन मटक्का पर पहरे बैठाने के कानूनी प्राविधान करने के बाद इस कानून में और तमाम प्रपंच झोंकने की क्या जरूरत थी? बात जब नैन मटक्का से आगे बढ़ेगी ही नहीं तब इस देश की बहादूर पीढ़ी फांसी चढ़ने लायक बहादुरी कहाँ दिखा पायेगी ?‘‘
चाटू बगटूट शैली में चालू थे। मैंने उन्हें टोका ,‘‘यार कुछ तो रहम करो । क्यों बेचारे माननीयों के पीछे लट्ठ लिए पिल पड़े हो? क्या बुरा किया है माननीयों ने ?इतना कठोर कानून बनाया है …‘‘चाटू हत्थे से उखड़ गए, ‘‘गुरू चुगदों जैसी बातें तो ना ही करो ।जरा ये सोंचो कि इस बेरहम कानून की वजह से बहादुर बेटे दहशत में भले हों पर बहादुर बेटियां तो सदमे में हैं ।मेरी बात पर विश्वास न हो तो इंटरनेट की डेटिंग साइट्स को खंगालो । गुरू लाखों लाख बहादुर बेटियां बहादुरों को नेह निमंत्रण देती मिलेंगी की आओ और बहादुरी दिखाओ । अब यदि आप इस बेरहम कानून का सिला देकर कहोगे कि माफ़ करो मुझे बहादुरी नहीं दिखानी तो भाड़ में जाओ आप ।मेरी मानो तो अपनी कलम का जौहर इस काले कानून की वजह से बहादुर बेटों -बेटियों और उनकी बहादुरी पर मड़राते खतरे से देश को देश के माननीयों को आगाह करने में दिखाओ ।‘‘(संदर्भः- दिल्ली का कुचर्चित निर्भया गैंगरेप)
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