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संसद की हार : सत्ता के नंगे नाच के नाम रहा सत्र

sach ke liye sach ke sath
sach ke liye sach ke sath
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संसद का यह सत्र कई सबाल अनुत्तरित छोड़ गया ,पूरे देश में आर्थिक आपातकाल की स्थिति पैदा करने बाले नोट बंदी के कथित ऐतिहासिक फैसले से जुड़े तमाम सबाल थे जिनका जबाब सांसद नोट बंदी के नायक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से जानना चाहते थे .संसद में प्रधान मंत्री क्या जबाब देते हैं इस पर कतार में खड़े देश की जिज्ञासु नजर टिकी थी .
8 नवम्बर को सारे समाचार माध्यम यह दिखाते रहे की प्रधान मंत्री सेनाध्यक्षों और सुरक्षा सलाहकार के साथ बैठक कर रहे हैं .इस खबर की फालोअप स्टोरी में बताया गया की प्रधान मंत्री ने राष्ट्रपति से मुलाक़ात की है .इसके बाद ही खबर फ्लैश होने लगी की प्रधान मंत्री देश को संबोधित करेंगे . ख़बरों की इस नाटकीय प्रस्तुति ने देश को यही सन्देश दिया की पाक की नापाक हरकतों की इन्तेहा हो चुकी है और मोदी सरकार का जमीर जाग गया है .जब मोदी देश को संबोधित करेंगे तब चुनावी रैलियों में “पकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 56 इंच की छाती होनी चाहिए ” के अपने चुनावी जुमले को सच साबित करते हुए युद्ध की घोषणा करेंगे .
देशवासियों को मोदी जी के राष्ट्र के नाम सन्देश में 56 इंच की छाती बाले प्रधान मंत्री की नापाक पाक के खिलाफ हूंकार की जगह एक हैरान करने बाले जुमलेबाज नेता का प्रवचन सुनने को मिला .1000 और 500 की भारतीय मुद्रा की बंदी काला धन ,भ्रष्टाचार ,आतंकवाद ,जाली करेंसी ,नशे के कारोबार के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है जैसी लच्छेदार जुमलेबाजी भी सुनी देश ने और देश के प्रधान मंत्री को भारतीय मुद्रा को रद्दी कागज़ के टुकड़े में बदल देने की दम्भोक्ति करते भी .नाटकीय अंदाज में इस ऐतिहासिक फैसले की गोपनीय तैयारी का दावा भी सुना .
नोट बंदी के इस कथित फैसले में 2000 के नोट की लांचिंग से स्वाभाविक रूप से प्रधान मंत्री की नीति और नियत संदेह की काली छाया के घेरे में आ गई .नोटबंदी का औचित्य ,गोपनीयता ,कथित तैयारियों के दावे हवा हवाई सिद्ध हुए .देश अभी भी इस अविवेकी फैसले की त्रासदी झेल रहा है .
संसद के सत्र में प्रधान मंत्री की पलायन वादी भूमिका को नाटकीय सत्रावसान ने मुहरबंद किया .सत्रावसान के अवसर पर सदन में उपस्थित प्रधान मंत्री का चेहरा और चेहरे पर दिख रहे मनोभाव छब्बे बनने चले चौबे के दूबे बनने की मूक अभिव्यक्ति कर रहा था .
1000और 500 की भारतीय मुद्रा बंदी को काला धन ,भ्रष्टाचार ,आतंकवाद ,जाली करेंसी से लड़ने के दावों का हश्र देश देख चुका .10 महीने की कथित तैयारियों के दावों की पोल भी खुल चुकी .इस कथित ऐतिहासिक फैसले की गोपनीयता का झूठ भी उजागर हो चूका .भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी तक ने गोपनीयता के मोदी जी के दावों पर सबालिया निशान लगाये .
इसमें कत्तई संदेह की गुंजाइश नजर नहीं आती की नोट बंदी का फैसला एक अविवेकी प्रधान मंत्री का तुगलकी फैसला था जिसने शताधिक निर्दोष नागरिकों की मौत की पटकथा लिखी जो अभी मुकम्मल नहीं हुई है नोट बंदी के कहर से मौत का सिलसिला जारी है .
आत्मश्लाघा के शिकार नरेंद्र मोदी यह फैसला करते समय यह भूल गए थे की उनको इस फैसले के औचित्य और हानि -लाभ का हिसाब लोकतंत्र के उस पवित्र मंदिर में देना होगा जहाँ प्रवेश करते समय उन्होंने मत्था टेका था .यह बात दीगर है की नरेंद्र मोदी सत्ता के नंगे नाच ,(जिसे देख कर भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी को देश ने लोक सभा अध्यक्ष की भूमिका पर तल्ख़ टिपण्णी करते और दर्द के हद से गुजर जाने पर ” मन करता है की इस्तीफ़ा दे दूं ” कहते देखा) लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभा पति और उपसभा पति की शर्मनाक भूमिका की ढाल ने नरेंद्र मोदी को विपक्ष के सबालों का जबाब देने से बचा लिया पर संसदीय इतिहास के पन्नों में यह काला अध्याय दर्ज हो गया की सत्ता का नंगा नाच जीता . सत्ता के नंगे नाच ने लोकतंत्र तथा लोकतंत्र के पवित्र मंदिर संसद को परास्त किया .
लोकसभा में नोट बंदी पर बोलते हुए पूर्व प्रधान मंत्री डा .मनमोहन सिंह द्वारा उठाये गए सबालों के साथ जो सबाल संसद के इस सत्र में अनुत्तरित रह गए उनमे नोट बंदी की वजह से हुई मौतों की जबाबदेही किसकी ? प्रमुख सबाल था .इस सत्र में सत्ता के नंगे नाच ने इस देश को यह सन्देश भी दिया की नोटबंदी का मामला दाल में काला का नहीं दाल के ही काली होने का है .लोग यह जानना चाहते हैं की यदि यह फैसला देश हित में लिया गया फैसला था और नरेंद्र मोदी की नीति और नियत साफ़ थी तब लोकसभा में स्पष्ट बहुमत बाली मोदी सरकार पहले विपक्ष की वोटिंग की मांग से भागी और बाद में बिना किसी नियम के नोट बंदी पर चर्चा के लिए तैयार विपक्ष की आवाज का गला सत्ता के नंगे नाच के सहारे क्यों घोंटा गया ? देश हैरान है की जब विपक्ष प्रधान मंत्री सदन में आओ का शोर मचा रहा था तब सदन चलता रहा और जब लोक सभा ,राज्यसभा में पिन ड्राप साइलेंट था तब सत्रावसान की घोषणा क्यों की गई ?बहरहाल संसद का यह सत्र सत्ता पक्ष के नंगे नाच के लिए ,लोकतान्त्रिक मूल्यों ,संसदीय परम्पराओं की निर्मम हत्या के लिए ,संसद की हार के लिए और देश के सामने अनेकों अनुत्तरित सबाल छोड़ जाने के लिए याद किया जाएगा .

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