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सियासत की हदें तय करती मीडिया

sach ke liye sach ke sath
sach ke liye sach ke sath
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2014 के आम चुनाव में मीडिया ने खुद की हदों का अतिक्रमण किया। मीडिया जगत में पेड़ ख़बरों का जो खेल पहले बहुत पोशीदगी से शुरू हुआ था वह खुल्लम खुल्ला बेशर्मी के साथ होता देखा गया। मीडिया घरानों ने छवि बनाने ,छवि बिगाड़ने की सुपारी लेनी शुरू की। खबरिया चैनलों के लोग एक दल विशेष के पेड़ कार्यकर्ता की भूमिका में उस दल की चुनावी रैली में उस दल के ही मैन का मुखौटा लगाए लोगों से यह हास्यास्पद और बेहूदा सबाल करते देखे गए की वो किसको वोट देंगे ? इस बचकाना सबाल के जबाब को पूरे मुल्क का मिजाज बताया गया। कुछ खबरिया चैनल के कारकून तो मतदान केंद्र पर पंक्तिबद्ध मतदाताओं से सबाल करते देखे गए की वो किसे वोट देने जा रहे ,यदि जबाब एक दल विशेष के खिलाफ आता तो खबरिया चैनल का कारकून वोटर से प्रति प्रश्न करता देखा गया की अमुक दल को क्यों वोट दे रहे हो ? मीडिया घरानों द्वारा छवि बनाने ,छवि बिगाड़ने का खेल आज भी जारी है। दूरदर्शनी बहसों के ऐंकरों पर अब खुल कर यह आरोप लगने लगे हैं की वो एक दल विशेष के प्रवक्ता जैसी भूमिका में हैं। आलम यह है की देश भक्ति से लेकर सियासत तक के मानक मीडिया घरानों द्वारा तय किये जा रहे हैं। मीडिया यह तय कर रही है की सर्जिकल स्ट्राईक पर किसकी भूमिका राजनीति करने बाली है और किसकी भूमिका में राजनीति नहीं है ?
देश की राजधानी दिल्ली में सेना के पूर्व सूबेदार रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या मामले में भी मीडिया यह तय करने लगी की राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं। मीडिया का सारा जोर राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल की छवि बिगाड़ने में लगा रहा। एक राष्ट्रीय पार्टी का उपाध्यक्ष और दिल्ली की राजधानी की निर्वाचित सरकार के उपमुख्य मंत्री को सेना के पूर्व सूबेदार रामकिशन ग्रेवाल के शोक संतप्त परिवार से मिलने से रोकना ,हिरासत में लिया जाना ,शोक संतप्त परिवार से पुलिसिया बर्बरता ,मुख्य मंत्री को उसी के राज्य में हिरासत में लिया जाना मीडिया के लिए न तो मुद्दा बना न ही इस पर दूरदर्शनी डिबेट के जरुरत समझी मीडिया घरानों ने।
कहने की जरुरत नहीं की यही घटनाक्रम यदि किसी कांग्रेस या गैर भाजपा शासित राज्य का होता तब मीडिया घरानों की भूमिका कैसी होती। इसमें कहीं दो राय नहीं की केंद्र सरकार द्वारा वन रैंक वन पेंशन के मामले में केंद्र सरकार की गलत बयानी से सेना का एक बहुत बड़ा तबका नाराज है। वन रैंक वन पेंशन के मामले का उल्लेख आत्महत्या करने बाले सेना के पूर्व सूबेदार रामकिशन ग्रेवाल ने भी अपने आवेदन पत्र में किया है।

मोदी सरकार के मंत्री बी.के.सिंह ने इस दुखद हादसे के बाद जैसे गैर जिम्मेवाराना बयान दिए ,आत्महत्या करने बाले सेना के पूर्व सूबेदार रामकिशन ग्रेवाल के शोक संतप्त परिवार से पुलिसिया बर्बरता पर जैसी चुप्पी मोदी सरकार ने ओढ़ी उससे मोदी सरकार की कथनी और करनी को समझा जा सकता है।

मोदी सरकार के मंत्री बी.के.सिंह ने पहले आत्महत्या करने बाले सेना के पूर्व सूबेदार रामकिशन ग्रेवाल की मानसिक स्थिति पर प्रश्न खड़े किये ,अब उसे कांग्रेसी बता रहे हैं। मोदी सरकार के मंत्री बी.के.सिंह को बताना चाहिए की यदि कांग्रेसी ही था आत्महत्या करने बाला सेना का पूर्व सूबेदार रामकिशन ग्रेवाल तब क्या उसका कांग्रेसी होना जुर्म था, जिसकी सजा दिल्ली पुलिस ने उसके परिवार को हिरासत में लेकर ,उससे पुलिसिया बर्बरता करके दी ? मीडिया घरानों को भी इस मामले में अपनी शर्मनाक भूमिका पर आत्म मंथन करना चाहिए।उसे ईमानदारी से विचार करना चाहिए की आज विश्वसनीयता के मानक पर मीडिया किस मुकाम पर खड़ी है ?
मीडिया अपनी हदों का अतिक्रमण कर रही है ,छवि बनाने छवि बिगाड़ने का खेल खेल रही है उसके लिए काफी हद तक हम सब भी जिम्मेवार हैं क्योंकि हमने खुद के लिए मूक दर्शक की भूमिका चुन रखी है।

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