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मेरा नाम करेगा रौशन- राजीव तनेजा

हंसी ठट्ठा
हंसी ठट्ठा
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“तुझे क्या सुनाऊँ ए दिल्रुरुबा…तेरे सामने मेरा हाल है”..

मेरी हालत तो छुपी नहीं है तुझसे….दिन-रात वेल्ला बैठ-बैठ के ये सोच मैं खुद बा खुद परेशान हो उठता हूँ कि उसे क्या नाम दूँ?…क्या कह के पुकारूँ उसे? कभी-कभी दिल में ये ख्याल उमड़ता है कि…मैं उसे दोस्त कहूँ या फिर दुश्मन?…उसे अच्छा कहूँ या फिर बुरा? यही अंतर्द्वंद बार-बार असाध्य टीस सी बन के मेरे दिल को…मेरे मन को भीतर तक बेंधे चला जाता है…कभी व्याकुलता से आकुल हो…मैं उसे देव की संज्ञा दे आदर सहित पुकारने लगता हूँ तो  कभी दानव का उपनाम दे…दुत्कारते हुए सरेआम  उसकी खिल्ली उड़ाने को बेचैन हो उठता हूँ |

कभी उसके दुर्गुणों के चलते खींच के उसके पिछवाड़े पे लात जमाने को मन करता है तो कभी उसके अफ्लातूनी दिमाग का लोहा मान …उसके आगे  नतमस्तक हो..सर झुका…सजदा करने को जी चाहता है…कभी अपनी सठियाई बुद्धि के बल पर वो मुझे आला दर्जे का झक्की…पागल एवं सनकी महसूस होने लगता है तो कभी अपनी काबिले तारीफ़ शख्सियत के दम पर वो मुझे निहायत ही ज़हीन किस्म का तजुर्बेकार एवं सुलझा हुआ इनसान लगने लगता है |

कभी वो संत-महात्मा के सदगुणों से लैस कलयुग का कोई कल्कि  अवतार नज़र आता है तो कभी आताताई की भांति अवगुणों की भरमार बन बिला वजह आक्रमण करने को बेताब सिरफिरा नज़र आता है| कभी वो गूढ़ पहेली के आसान हल की खोज में जुटे किसी सनकी वैज्ञानिक की भांति तरह-तरह के अवांछित तजुर्बे करने वाला मेहनतकश इनसान बन दिन-रात सिर्फ और सिर्फ पसीना बहाता नज़र आता है तो कभी मुँह में घुसी मक्खी को भी बिना चूसे अन्दर-बाहर होने की खुली छूट दे कर वो मुझे ‘महा आलसी के विश्वस्तरीय खिताब’ के असली हकदार का ख़म ठोक…दावा करता नज़र आता है|

कभी उसके अन्दर (प्रतीतात्मक रूप से सदाबहार देव आनंद की भांति दिन पर दिन बुढ़ाती अपनी उम्र के तमाम ऊंचे-नीचे पड़ावों को आसानी से झुठला देने वाला) चिर युवा..चंचल एवं चितचोर किशोर जन्म लेते दिखाई देता  है तो कभी उसके भीतर उम्र के पचीसवें बसंत में ही टी.बी के बरसों पुराने मरीज़ की भांति हांफ-हांफ खांसने की वजह से बौरा गए महा पकाऊ इनसान की धूमिल छवि भी उसके चेहरे पर स्पष्ट एवं क्लीयरकट रूप से फेस  टू फेस दृष्टिगोचर होने लगती है|

कभी वो एक अलग दृष्टिकोण से यकायक सही हो मुझे अपने नायक होने का रोमानी आभास देने लगता है तो कभी खलनायक का लबादा ओढ़..वो मेरे मानसपटल को पूर्णतया सम्मोहित करते हुए  कुशलतापूर्वक ढंग से संपूर्ण खलनायक की कालजयी भूमिका को बखूबी निभा रहा होता है|

’शायद अच्छा ही किया हो उसने…मेरा भला ही सोचा हो शायद’…अब ये तो पता नहीं कि इस सब को करने से उसे मिलेगा क्या आखिर?

शायद!…किसी दूसरे को इतना बेबस…मजबूर…तन्हा और अकेला देख मुरझाया चेहरा खिल उठता होगा उसका….खुशी के मारे बावला हो उठता होगा शायद वो| ये भी तो हो सकता है कि…’इनसानी फितरत है…खाली नहीं बैठा गया होगा उससे’ तो सोचा होगा कि….
“चलो!…आज इसी पे हाथ आज़मा लिया जाए”..

“आखिर!…पता तो चले खुद को कि….कितने पानी में हूँ मैँ?” …

“साथ ही साथ पूरी दुनिया को भी पता चल जाएगा कि…हम में है दम”…

‘ऊपरवाले के घर देर तो  है..पर अन्धेर नहीं’ …

“और भला मैं कर भी क्या सकता हूँ इसके अलावा?”…
संशकित हो कई बार रोते-रोते चुप हो मैं खुश भी हो उठता हूँ कि …

“कभी तो मेरी भी पुकार सुनी जाएगी उस ऊपर बैठे परवर दिगार के दरबार में”…
कभी-कभी गुस्सा भी बहुत आता है और दिल मायूस हो तड़प के ये गाने को मजबूर हो उठता है कि..
“तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही…

ऐसा क्या गुनाह किया जो लुट गए…लुट गएS…s..s..

हाँ!…लुट गए…हम तेरी मोहब्बत में”…

’कोई ना कोई…कभी ना कभी…सवा सेर तो उससे भी टकराएगा और तभी फैसला होगा कि..

किस में कितना है दम?…कभी तो ऊँट पहाड़ के नीचे आएगा ज़रूर’..
शांत बैठे-बैठे कई बार मैं गुस्से से भर उठता हूँ और जी चाहता है कि …
“कहीं से बस…घड़ी भर के लिये ही सही…कैसे भी कर के मिल जाए..
’36’ या फिर ’47’ और कर दूँ अभी के अभी शैंटी-फ्लैट….हो जाएगा फुल एण्ड फायनल…कोई कसर बाकि नहीं रहेगी”…

“बड़ा ‘तीसमार खाँ’ समझता है ना खुद को….सारी हेकड़ी निकल जाएगी खुद बा खुद बाहर”…

“अरे!…अगर वार करना ही था तो सामने से आकर करता…ये क्या कि..पीठ पीछे वार करता है?…बुज़दिल कहीं का”…

“कुछ है भी इसमें या फिर खाली डिब्बा…खाली ढोल?”..
लेकिन फिर ये सोच के दिल तड़प उठता है कि …इस भरी पूरी दुनिया में क्या मैँ ही मिला था उसे निठल्ला जो मुझ पर ही हाथ साफ कर गया?”
लेकिन कुछ भी कहो…इस बात की तो दाद देनी पड़ेगी कि…बन्दा..है बड़ा ही चालाक…शातिर होने के साथ-साथ खुराफाती दिमाग की भी सारी खूबियां पाई हैं उसने उस ऊपर बैठे परमपिता परमात्मा के दरबार से|

“खुली आँखो से ऐसे काजल चुरा ले गया कि …’कब मेरा सब कुछ…अब मेरा नहीं रहा”..
बड़े अरमान संजोए थे मैने…क्या-क्या सपने नहीं देखे थे मैने कि…उसके पहले जन्मदिन पर एक बड़ा सा केक मँगवाउंगा…खूब पार्टी-शार्टी करूँगा…इसको बुलाउंगा और उसको भी बुलाउंगा… बड़े ही जतन से पाला-पोसा था मैने उसे…अभी तो अपने पैरों पे चलना भी ठीक से नहीं सीखा था उसने…
नन्हा सा जो था अभी|
मैँ तो ये सोच-सोच के खुश हुए जा रहा था कि एक दिन..हाँ!…एक दिन…
“मेरा नाम करेगा रौशन…जग में मेरा राजदुलारा”

मुझे क्या पता था कि एक दिन… मेरी सारी मेहनत…मेरे सारे ओवर टाईम पे कोई कोई पानी फेर जाएगा मिनट दो मिनट में ही | पता नहीं मैंने कैसे रात-रात भर जाग-जाग के पाला-पोसा था उसे …यहाँ तक कि किसी की भी परवाह नहीं की …अपनी खुद की बीवी की भी नहीं सुनी मैंने जब वो मुझे उसे…उसके हाल पे छोड़ चुपचाप सो जाने की बेतुकी एवं बेमतलब की राय देती थी |

किस-किस के आगे मत्था नहीं टेका मैंने उसे…उसके लुप्त होते अस्तित्व को बचाने के लिए?…कहाँ-कहाँ नहीं गया मैं?…किस-किस के आगे शीश नहीं झुकाया मैंने?…मंदिर…मस्जिद…चर्च और गुरूद्वारे तक तो हो आया मैं और अब तिब्बत जा..वहाँ के बौद्ध मठो के भी दर्शन करने की तैयारी कर रहा हूँ मैं…

(कुछ क्षणों का विराम)
”ओह!…ओह..

‘ओह!…माय गाड…ये क्या?”…

“देखा?…देखा तुमने?”…

“हाँ!….हाँ…देखो ..ऊपरवाले ने मेरी पुकार सुन ली”…

‘याहू’ आई.डी (Yahoo ID) को उस हैकर के जरिये  लौटा कर आपने मुझे दुनिया की हर खुशी दे दी

“हे!..ऊपरवाले तेरा लाख-लाख शुक्र है… आज यकीन हो चला है कि इस दुनिया में तेरे होने का वजूद…मात्र भ्रम नहीं है…

“सच!…तू कहीं ना कहीं है ज़रूर”…

अगर सिर्फ ‘आई.डी’ भर की ही बात होती तो कोई बड़ी बात नहीं थी…वो तो मैं और भी बना सकता था…उनका आना-जाना तो लगा ही रहता है..इसके लिए मैं इतना परेशान नहीं हो उठा था मैं ..दरअसल बहुत कुछ जुड़ा हुआ था मेरी उस ‘याहू’ आई.डी के साथ जैसे…बहुत सी प्यारी-प्यारी लड़कियों के ईमेल अड्रैस …नए-पुराने लव लैटर्स वगैरा…और इनके अलावा वो सब उल्टी-पुलटी मेलज भी जिन्हें मैं सबकी नज़रों से छुपा कर रखता था …यहाँ तक कि अपनी बीवी को भी मैंने इस सब की हवा नहीं लगने दी थी  और सबसे बड़ी बात ये कि मेरा याहू ग्रुप ‘फनमास्टर G9’ भी तो हैक हो गया था ना

छिन गया था वो मुझसे…हैकर के पास जा पहुँचा था उसका कंट्रोल…उसी को…हाँ!…उसकी को तो मैंने अपनी अफ्लातूनी सोच के जरिये जन्म दिया था …अपनी औलाद से बढ़कर माना था मैंने उसे…उसी की देखभाल के लिए मैं रात-रात भर जाग-जाग के इधर-उधर से नकल मार दूसरों के माल को अपना बना फारवर्ड किया करता था|

थैंक यू गाड…आपकी कृपा से अब मुझे यकीन हो चला है कि एक ना एक दिन….

“मेरा नाम करेगा …रौशन जग में मेरा राजदुलारा”

***राजीव तनेजा***

rajivtaneja2004@gmail.com

http://hansteraho.blogspot.com

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