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***राजीव तनेजा***
“बोल बम चिकी बम चिकी बम…बम….बम”
“बम….बम…बम”….
“बम….बम…बम”(सम्वेत स्वर)…
“परम पूज्य स्वामी श्री श्री 108 सुकर्मानन्द महराज की जय”….“जय”….
“जय हो श्री श्री 108 सुकर्मानन्द महराज की”मैँने ज़ोर से जयकारा लगाया और गुरू के चरणॉं में नतमस्तक हो गया
“प्रणाम गुरूवर”….
“जीते रहो वत्स”….
“क्या बात?…कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हो”….
“क्कुछ खास नहीं महराज”…
“कोई ना कोई कष्ट तो तुझे ज़रूर है बच्चा”…..
“तुम्हारे माथे पे खिंची हुई आड़ी-तिरछी रेखाएँ बता रही हैँ कि तुम किसी गहरी सोच में डूबे हुए हो”….
“बस ऐसे ही…
“कहीं ट्वैंटी-ट्वैंटी के वर्ल्ड कप में……
“ना..ना महराज ना….जब से ‘आई.पी.एल’ के मैचों में मुँह की खाई है…तब से ही तौबा कर ली”…
“सट्टा खेलने से?”…
“ना…ना महराज ना…बिना सट्टे के तो जीवन बस अधूरा सा लगता है”….
“तो फिर किस चीज़ से तौबा कर ली तुमने?”…
“‘टी.वी’ देखना छोड़ दिया है मैँने…यहाँ तक कि अपना फेवरेट प्रोग्राम…”खाँस इंडिया खाँस” भी नहीं देखता आजकल
“सोच रहा हूँ कि टी.वी की तरफ रुख कर के सोना भी छोड़ दूँ….ना जाने बुरी लत फिर कब लग जाए”…
“तो फिर क्या कष्ट है बच्चा?”….
“कहीं घर में बीवी या भौजाई से किसी किस्म का कोई झगड़ा या क्लेश?….
“ना….ना महराज ना….भाभी तो मेरी एकदम शशिकला के माफिक सीधी…सच्ची और भोली है”…
“और बीवी?”….
“वो तो जैसे कलयुग में साक्षात निरूपा रॉय की अवतार”….
“तो फिर क्या बच्चे तुम्हारे कहे अनुसार नहीं चलते?”…
“ना..ना महराज ना…पिछले जन्म में तो मैँने ज़रूर मोती दान किए होंगे जो मुझे प्राण…रंजीत और शक्ति कपूर जैसे होनहार…नेक और तेजस्वी बालक मिले….ऐसी औलादें तो भगवान हर माँ-बाप को दे”..
“तो फिर काम-धन्धे में कोई रुकावट?……कोई परेशानी?”…
“ना…ना महराज ना…जब से आपने उस एक्साईज़ वाले से हरामखोर से सैटिंग करवाई है….अपना धन्धा तो एकदम चोखा चल रहा है”…
“तो इसका मतलब यूँ समझ लें कि दिन-रात लक्ष्मी मईय्या की फुल्ल बटा फुल्ल कृपा रहती है”…
“जी…बिलकुल”….
“तो फिर चक्कर क्या है?”…
“चक्कर?….कैसा चक्कर?…कौन सा चक्कर?”…
“ओफ्फो!…बीवी तुम्हारी नेक एवं सीधी-साधी है”….
“जी महराज”…
“बच्चे तुम्हारे गुणवान हैँ”…
“ज्ज…जी महराज”…
“धन्धा पूरे ज़ोरों पर चल रहा है”…
“जी महराज”…
“तो फिर भईय्ये!…तन्ने के परेशानी सै?”…
“अब क्या बताऊँ स्वामी जी…आज के ज़माने में भाई का भाई पर से विश्वास उठ चुका है…दोस्त एक दूसरे से दगा करने से बाज़ नहीं आ रहे हैँ…नौकर का मालिक पर से और मालिक का नौकर के ऊपर से विश्वास उठ चुका है”…
“तो?”…
“सच कहूँ तो स्वामी जी…जब अपने चारों तरफ ऐसे अँधकार भरे माहौल को देखता हूँ तो अपने मनुष्य जीवन से घिन्न आने लगती है….जी चाहता है कि ये मोह-माया त्यागूँ और अभी के अभी सब कुछ छोड़-छाड़ के सन्यास ले लूँ?”…
“के बात?…म्हारे सिंहासण पे कब्जा करणा चाहवे सै?”…
“ना …महराज ना…कीस्सी बातां करो सो?”…
“कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली?”…
“म्हारी के औकात कि थम्म जीस्से पहाड़ से मुकाबला कर सकूँ”…
“कोशिश भी ना करियो….जाणे सै नां कि म्हारे लिंक घण्णी ऊपर तक…
“ज्जी…जी महराज”….
“ईब्ब साफ-साफ बता मन्ने कि के कष्ट सै तन्ने?…
“के बताऊँ महराज….इस वाईनी की खबर ने घण्णा दिमाग खराब कर रखा सै”….
“खबर?….कूण से वाईनी की खबर?”…
“अरे!…वो बैंगस्टर वाला वाईनी….और कौन?”….
“के पुलिस ने गोल्ली मार दी?”….
“ना…ना महराज ना…कीस्सी अनहोणी बात करो सो?…..ऊपरवाले को बी ईस्से लोगां की जरूरत नां सै….इस णाते ससुरा कम्म से कम्म सौ साल और जीवेगा”…
“ईसा के गजब ढा दिया इस छोकरे णे के सौ साल जीवेगा?”…
“नूं तो कई नाटकां में हीरो का रोल कर राख्या सै पट्ठे ने लेकिन असल जिन्दगी में तो पूरा विल्लन निकल्या…पूरा विल्लन”…
“के बात करे सै?”…
“लगता है महराज जी आप यो पंजाब केसरी अखबार ने सिरफ नंगी हिरोईणां के फोटू देखण ताईं मंगवाओ सो”…
“के मतबल्ल?”…
“रोज तो खबर छप रही सै अखबार म कि वाईनी की नौकरानी ने उस पर ब्लात्कार करने का आरोप लगाया है”…
“अरे!…आरोप लगाने से क्या होता है?”…आरोप तो हर्षद मेहता ने भी अपने नरसिम्हा जी पर लगाए थे लेकिन हुआ क्या?”…
“चिंता ना कर….यहाँ भी कुछ नहीं होने वाला”….
“पैसे में बहुत ताकत होती है…कल को छोकरी खुद ही तमाम आरोपों से मुकर जाए तो भी कोई आश्चर्य नहीं”…
“वैसे मुझे इन मीडिया वालों पर बड़ी खुन्दक आती है”…
“वो किसलिए महराज?”…
“ये बार-बार अखबार…टीवी और मैग्ज़ीनों वाले जो ‘ब्लात्कार-ब्लात्कार’ कर रहे हैँ…इन्हें खुद ‘ब्लात्कार‘ का मतलब नहीं पता”…
“क्या बात करते हैँ स्वामी जी…आजकल तो बच्चे-बच्चे को मालुम है कि ‘ब्लात्कार’ किसे कहते हैँ?…कैसे किया जाता है”….कितनी तरह के ब्लात्कार होते हैँ वगैरा-वगैरा”…
“तो चलो तुम्हीं बता दो कि ‘ब्लात्कार’ किसे कहते हैँ?”….
“इसमें क्या है?….किसी की मर्ज़ी के बिना अगर उसके साथ सैक्स किया जाए तो उसे ब्लात्कार कहते हैँ”…
“ये तुमसे किस गधे ने कह दिया?”…
“कहना क्या है?….मुझे मालुम है”…
“बस यही तो खामी है हमारी आज की युवा पीढी में….पता कुछ होता नहीं है और बनती है फन्ने खाँ”…
“तो आपके हिसाब से ‘ब्लात्कार’ का मतलब कुछ और होता है?”…
“बिलकुल”…
“तो फिर आप अपने ज्ञान से मुझे कृतार्थ करें”…
“बिलकुल…तुम अगर ना भी कहते तो भी मैँ तुम्हें समझाए बिना नहीं मानता”…
“ठीक है!…फिर बताएँ कि क्या मतलब होता है ‘ब्लात्कार’ का”…
बलात+कार=ब्लात्कार अर्थात बल के प्रयोग से किया जाने वाला कार्य”…
“जी”…
“इसका मतलब जिस किसी भी कार्य को करने में बल या ताकत का प्रयोग किया जाए उसे ब्लात्कार कहते हैँ?”…
“यकीनन”…
“इसका मतलब अगर खेतों में किसान बैलों की इच्छा के विरुद्ध उन्हें हल में जोतता है तो ये कार्य भी ब्लात्कार की श्रेणी में आएगा?”…
“बिलकुल…सीधे और सरल शब्दों में इसे किसान द्वारा निरीह बैलों का ब्लात्कार किया जाना कहा जाएगा और इसे कमर्शियल अर्थात व्यवसायिक श्रेणी का ब्लात्कार कहा जाएगा”…
“और अगर हम अपने बच्चों को डांट-डपट कर पढने के लिए मजबूर करते हैँ तो?”…
“तो ये भी माँ-बाप के द्वारा बच्चों का ब्लात्कार कहलाएगा और इसे डोमैस्टिक अर्थात घरेलू श्रेणी का ब्लात्कार कहा जाएगा”…
“और अगर फौज का कोई मेजर या जनरल अपने सैनिकों को दुश्मन पर हमला बोलने का हुक्म देता है तो?”….
“अगर सैनिक देशभक्ति से ओत-प्रोत हो अपनी मर्ज़ी से इस कार्य को अंजाम देते हैँ तो अलग बात है वर्ना ये भी अफसरों द्वारा सनिकों का ब्लात्कार कहलाएगा”…
“इसे तो नैशनल अर्थात राष्ट्रीय श्रेणी का ब्लात्कार कहा जाएगा ना?”
“बिलकुल”…
“तो इसका मतलब …कार्य कोई भी हो….अगर मर्ज़ी से नहीं किया गया तो वो ब्लात्कार ही कहलाएगा?”…
“बिलकुल”…
“अगर तुम्हारी बीवी तुम्हें तुम्हारी मर्ज़ी के बिना बैंगन या करेला खाने पर मजबूर करती है तो इसे भी पत्नि द्वारा पति का ब्लात्कार कहा जाएगा”…
“या फिर अगर आप अपनी पत्नि की इच्छा के विरुद्ध उसे सास-बहू के सीरियलों के बजाय किसी खबरिया चैनल पर बेहूदी खबरें देखने के लिए मजबूर करते हैँ तो इसे भी पति द्वारा आपकी पत्नि का ब्लात्कार ही कहा जाएगा”
“लेकिन महराज एक संशय मेरी दिमागी भंवर में गोते खा रहा है”…
“वो क्या?”…
“यही कि क्या सैक्स करना बुरा है?”….
“नहीं!…बिलकुल नहीं”….
“अगर ऐसा होता तो हमारे यहाँ अजंता और ऐलोरा की गुफाओं और खजुराहो के मंदिरो में रतिक्रिया से संबंधित मूर्तियाँ और तस्वीरें ना बनी होती”…
“हमारे पूर्वजों ने उन्हें बनाया ही इसलिए कि आने वाली नस्लें इन्हें देखें और देखती रहें ताकि वे अन्य अवांछित कार्यों में व्यस्त हो कर इस पवित्र एवं पावन कार्य को भूले से भी भूल ना पाएँ”….
“ओशो रजनीश ने भी तो फ्री सैक्स की इसी धारणा को अपनाया था ना?”…..
“सिर्फ अपनाया ही नहीं बल्कि इसे देश-विदेश में लोकप्रिय भी बनाया”…
“जी”…
“उनकी इसी धारणा की बदौलत पूरे संसार में उनके लाखों अनुयायी बने और अब भी बनते जा रहे हैँ”…
“स्वयंसेवकों के एक बड़े कैडर ने उनकी धारणाओं एवं मान्यताओं को पूरे विश्व में फैलाने का बीड़ा उठाया हुआ है इस नाते वे पूरे संसार में उनकी शिक्षाओं का प्रचार एवं प्रसार कर रहे हैँ”…
“अगर ये कार्य इतना ही अच्छा एवं पवित्र है तो फिर हमारे यहाँ इसे बुरा कार्य क्यों समझा जाता है?”….
“ये तुमसे किसने कहा?”…अगर ऐसा होता तो आज हम आबादी के मामले में पूरी दुनिया में दूसरे नम्बर पर ना होते”…
“स्वामी जी!…कुकर्म का मतलब बुरा कर्म होता है ना?”….
“हाँ…बिलकुल”…
“और आपके हिसाब से रतिक्रिया करना अच्छी बात है लेकिन ये अखबार वाले तो इसे बुरा कार्य बता रहे हैँ”…
“वो कैसे?”…
“आप खुद ही इस खबर को देखें….यहाँ साफ-साफ लिखा है कि….
‘एम.एल.ए’ का पी.ए’ फलानी-फलानी स्टैनो के साथ कुकर्म के जुर्म में पकड़ा गया”….
“इसीलिए तो मुझे गुस्सा आता है इन अधकचरे अखबार नफीसों पर…कि ढंग से ‘अलिफ’… ‘बे’ आती नहीं है और चल पड़ते हैँ मुशायरे में शायरी पढने”…
कु+कर्म=कुकर्म अर्थात बुरा कर्म और सुकर्म का मतलब होता है सु+कर्म=सुकर्म अर्थात अच्छा कर्म
“पागल के बच्चे…जिसे बुरा कर्म बता रहे हैँ….उस कर्म के बिना तो खुद उनका भी वजूद नहीं होना था”…
“इतना भी नहीं जानते कि ये कुकर्म नहीं बल्कि सुकर्म है….याने के अच्छा कार्य….ये तो सोचो नामाकूलो कि अगर ये कार्य ना हो तो इस पृथ्वी पर बचेगा क्या…टट्टू?
“ना जीव-जंतु होंगे…ना पेड़-पौधे होंगे और ना ही हम मनुष्य होंगे और अगर हम ही नहीं होंगे तो ना ये ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ होंगी और ना ही कल-कल करते हुए कल-कारखाने होंगे….ना ये सड़कें होंगी और ना ही घोड़ा गाड़ियाँ होंगी”….
“घोड़ा गाड़ियाँ क्या….छोटी या बड़ी…किसी भी किस्म की गाड़ियाँ नहीं होंगी”…
“हर तरफ बस धूल ही धूल जैसे चाँद पर या फिर किसी अन्य तारा मण्डल पर”
“लेकिन इन्हें इस सब से भला क्या सरोकार?…इन्हें तो बस अपनी तनख्वाह से मतलब रहता है भले ही इनकी वजह से अर्थ का अनर्थ होता फिरे…इन्हें कोई परवाह नहीं…कोई फिक्र नहीं”…
“बोया पेड़ बबूल का तो फल कहाँ से आए?”…
“मतलब?”…
“अब जैसा सीखेंगे…वैसा ही तो लिखेंगे”…
“सीखने वाले भी पागल और सिखाने वाले भी पागल”…
“तो फिर आपके हिसाब से कैसे खबरें छपनी चाहिए?”…
“कैसी क्या?…जैसी हैँ…वैसे छपनी चाहिए”…
“मतलब?”…
“मतलब कि लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए”…
“जैसे?”…
“चार पुलिसकर्मी एक नाबालिग लड़की के साथ ज़बरदस्ती सुकर्म करने के आरोप में पकड़े गए” या फिर…
“सार्वजनिक स्थल पर सुकर्म की चेष्टा में एक अफगानी जोड़ा गिरफ्तार”
“इस खबर में यकीनन लड़्की की मर्ज़ी से सुकर्म को अमली जामा नहीं पहनाया गया होगा”…
“जी”…
“कार्य चाहे मर्ज़ी से हुआ या फिर बिना मर्ज़ी के लेकिन कार्य तो अच्छा ही हुआ ना?
“ज्जी”…
“इस नाते यहाँ नीयत का दोष है ना कि कार्य का…और हमारी…तुम्हारी और आपकी शराफत और भलमनसत तो यही कहती है कि हम बिला वजह किसी अच्छे कार्य को बुरा कह उसे बदनाम ना करें”…
“जी बिलकुल”…
“लेकिन अगर नीयत खोटी है और कार्य भी खोटा है तो उसे यकीनन बुरा कर्म अर्थात कुकर्म ही कहा जाएगा”…
“जैसे?”…
“जैसे अगर कोई चोर चोरी करता है तो वो बुरा कर्म याने के बुरा कार्य हुआ…उसे किसी भी संदर्भ में अच्छा कार्य नहीं कहा जा सकता”…
“लेकिन इसके भी तो कई अपवाद हो सकते हैँ ना गुरूदेव?”..
“कैसे?”….
“अगर हमारे देश की इंटलीजैंस का कोई जासूस दुश्मन देश में जा कर हमारे हित के दस्तावेजों की चोरी करता है तो उसे कुकर्म नहीं बल्कि सुकर्म कहा जाएगा”…
“हाँ!…लेकिन दूसरे देश की नज़रों में बिना किसी शक और शुबह के ये कुकर्म ही कहलाएगा
“धन्य हैँ गुरूदेव आप…आपने तो मुझ बुरबक्क की आँखों पे बँधी अज्ञान की पट्टी को हटा मुझे अपने ओजस्वी ज्ञान से दरबदर…ऊप्स सॉरी तरबतर कर मालामाल कर दिया”..
“बोलो…. बम चिकी बम चिकी बम…बम….बम”
“बम….बम…बम”….
“बम….बम…बम”(सम्वेत स्वर)…
“परम पूज्य स्वामी श्री सुकर्मानन्द महराज की जय”….“जय”….
“जय हो श्री सुकर्मानन्द महराज की”मैँने ज़ोर से जयकारा लगाया और गुरू के चरणॉं में फिर से नतमस्तक हो गया
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja(Delhi,India)
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