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व्यथा झोलाछाप डाक्टर की- राजीव तनेजा

हंसी ठट्ठा
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[कार्टून प्रस्तुति: अभिषेक तिवारी]

कसम ले लो मुझसे…’खुदा’ की…या फिर किसी भी मनचाहे भगवान की…..तसल्ली ना हो तो बेशक!…’बाबा रामदेव’ के यहाँ मत्था टिकवा के पूरे के पूरे सातों वचन ले लो जो मैँने या मेरे पूरे खानदान में….कभी किसी ने ‘वी.आई.पी’ या ‘अरिस्टोक्रैट’ के फैशनेबल लगेज के अलावा कोई देसी लगेज जैसे…थैला….बोरी…कट्टा…ट्रंक …अटैची…या फिर कोई और बारदाना इस्तेमाल किया हो। कुछ एक सरफिरे अमीरज़ादे तो ‘सैम्सोनाईट’ का मँहगा लगेज भी इस्तेमाल करने लग गए हैँ आजकल। आखिर स्टैडर्ड नाम की भी कोई चीज़ होती है। लेकिन इस सब में भला आपको क्या इंटरैस्ट?…आपने तो ना कुछ पूछना है …ना पाछना है और…सीधे ही बिना सोचे समझे झट से सौ के सौ इलज़ाम लगा देने हैँ हम मासूमों पर।मानों हम जीते-जागते इनसान ना होकर कसाई खाने में बँधी भेड़-बकरियाँ हो गयी कि….जब चाहा…जहाँ चाहा….झट से मारी सैंटी और….फट से हाँक दिया।

अच्छा लगता है क्या कि किसी अच्छे भले सूटेड-बूटेड आदमी को ‘छोला छाप’ कह उसकी पूरी पर्सनैलिटी …पूरी इज़्ज़त की वाट लगाना? मज़ा आता होगा ना आपको हमें सड़कछाप कह…हमारे काम…हमारे धन्धे की तौहीन करते हुए? सीधे-सीधे कह क्यों नहीं देते कि अपार खुशी का मीठा-मीठा एहसास होता है आपको…हमें नीचा दिखाने में?….वैसे ये कहाँ की भलमनसत है कि हमारे मुँह पर ही…हमें…हमारे छोटेपन का एहसास कराया जाए?

ये सब इसलिए ना कि हम आपकी तरह ज़्यादा पढे-लिखे नहीं…ज़्यादा सभ्य नहीं….ज़्यादा समझदार नहीं? हमारे साथ ये दोहरा मापदंड…ये सौतेला व्यवहार इसलिए ना कि…हमारे पास ‘डिग्री’ नहीं…सर्टिफिकेट नहीं? मैँ आपसे पूछता हूँ… हाँ!…आप से…आप से और आप से कि हकीम ‘लुकमान’ के पास कौन से कॉलेज या विश्वविद्यालय की डिग्री थी? या ‘धनवंतरी’ ने ही कौन से मैडिकल कॉलेज से ‘एम.बी.बी.एस’ या…’एम.डी’ पास आऊट किया था? सच तो यही है दोस्त कि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी…कोई सर्टिफिकेट नहीं था।…फिर भी वो देश के जाने-माने हकीम थे….वैद्य थे…लाखों-करोड़ों लोगों का सफलतापूर्वक इलाज किया था उन्होंने।”क्यों है कि नहीं?”

उनके इस बेमिसाल हुनर….इस बेमिसाल इल्म के पीछे उनका सालों का तजुर्बा था…ना कि कोई डिग्री…या फिर कोई सर्टिफिकेट। हमारी ‘कँडीशन’ भी कुछ-कुछ उनके जैसी ही है याने के…’ऑलमोस्ट सेम टू सेम’ बिकाझ…जैसे उनके पास कोई डिग्री नहीं…वैसे ही हमारे पास भी कोई डिग्री नहीं…सिम्पल।

वैसे आपकी जानकारी के लिए मैँ एक बात और बता दूँ कि ये लहराते …बलखाते बाल मैँने ऐसे ही धूप में हाँडते-फिरते सफेद नहीं किए हैँ बल्कि..इस डाक्टरी की लाईन का पूरे पौने नौ साल का प्रैक्टिकल तजुर्बा है मुझे। और खास बात ये कि ये तजुर्बा…ये एक्सपीरिएंस मैँने इन तथाकथित ‘एम.बी.बी.एस’ या ‘एम.डी’ डाक्टरों की तरह….लैबोरेट्री में किसी बेज़ुबान ‘चूहे’ या ‘मैँढक’ का पेट काट कर हासिल नहीं किया है बल्कि…इसके लिए खुद इन्हीं…हाँ!…इन्हीं नायाब हाथों से कई जीते-जागते ज़िन्दा इनसानो के बदन चीरे हैँ मैँने।

“है क्या आपके किसी ‘डिग्रीधारी’ डाक्टर या फिर…मैडिकल आफिसर में ऐसा करने की हिम्मत?…..ऐसा करने का माद्दा? और ये आपसे किस गधे ने कह दिया कि डिग्रीधारी डाक्टरों के हाथों मरीज़ मरते नहीं हैँ? रोज़ ही तो अखबारों में इसी तरह का कोई ना कोई केस छाया रहता है कि फलाने-फलाने सरकारी अस्पताल में फलाने फलाने डाक्टर ने लापरवाही से…आप्रेशन करते वक्त सरकारी कैंची को गुम कर दिया।…”अब कर दिया तो कर दिया लेकिन नहीं…अपनी सरकार भी ना…पता नहीं क्या सोच के एक छोटी सी…अदना सी…सस्ती सी…कैंची का रोना ले के बैठ जाती है। ये भी नहीं देखती कि कई बार बेचारे डाक्टरों के नोकिया ‘एन’ सीरिज़ तक के मँहगे-मँहगे फोन भी….मरीज़ों के पेट में बिना कोई शोर-शराबा किए गर्क हो जाते हैँ…धवस्त हो जाते हैँ लेकिन…शराफत देखो उनकी…वो उफ तक नहीं करते…चूँ तक नहीं करते। अब कोई छोटा-मोटा सस्ता वाला चायनीज़ मोबाईल हो तो बन्दा भूल-भाल भी जाए लेकिन….फोन…वो भी नोकिया का…और ऊपर से ‘एन’ सीरिज़…कोई भूले भी तो कैसे भूले? अब इसे कुछ डाक्टरों की किस्मत कह लें या फिर…उनका खून-पसीने की मेहनत से कमाया पैसा कि उन्होंने अपने फोन को बॉय डिफाल्ट…..’वाईब्रेशन’ मोड पे सैट किया हुआ होता है। जिससे…ना चाहते हुए भी कुछ मरीज़ पूरी ईमानदारी बरत पेट में बार-बार मरोड़ उठने की शिकायत ले कर…उसी अस्पताल का रुख करते हैँ जहाँ उनका इलाज हुआ था।

वैसे ‘बाबा रामदेव’ झूठ ना बुलवाए…तो यही कोई दस बारह केस तो अपने भी बिगड़ ही चुके होंगे इन पौने नौ सालों में लेकिन….इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की कोई ज़रूरत नहीं। आखिर इनसान हूँ…गल्ती हो भी जाती है। लेकिन अफसोस!..संबको मेरी गल्ती नज़र आती है..मकसद नहीं।क्या किसी घायल…किसी बिमार की सेवा कर…उसका इलाज कर…उसे ठीक…भला-चंगा करना गलत है? नहीं ना?…फिर ऐसे में अगर कभी गल्ती से लापरवाही के चलते कोई छोटी-बड़ी चूक हो भी गई तो इसके लिए इतना शोर-शराबा क्यों?…इतनी हाय तौबा क्यों?

मुझ में भी आप ही की तरह देश-सेवा का जज़्बा है। मैँ भी आप सभी की तरह सच्चा देशभग्त हूँ और सही मायने में देश की भलाई के लिए काम कर रहा हूँ।

आप भले ही मेरी बात से सहमत हों या ना हों मुझे अपनी सरकार का ये दोगलापन बिलकुल पसन्द नहीं कि….अन्दर से कुछ और और बाहर से कुछ और। कहने को अपनी सरकार हमेशा बढ्ती जनसंख्या का रोना रोती रहती है लेकिन अगर हम मदद के लिए आगे बढते हुए अपनी सेवाएँ दें….तो उसे फाँसी लगती है। वो करे तो…पुण्य…हम करें तो पाप।…वाह री मेरी सरकार…कहने को कुछ और करने को कुछ।

एक तरफ रोना ये कि देश जनसंख्या बोझ तले दब रहा है…इसलिए परिवार नियोजन को बढावा दो। जहाँ एक तरफ इंदिरा गाँधी के ज़माने में काँग्रेस सरकार ने टोरगैट पूरा करने के लिए जबरन नसबन्दी का सहारा लिया था…और अब वर्तमान काँग्रेस सरकार अपनी बेशर्मी के चलते जगह-जगह “कण्डोम के साथ चलें” के बैनर लगवा रही है…पोस्टर लगवा रही है। दूसरी तरफ कोई अपनी मर्ज़ी से एबार्शन करवाना चाहे तो जुर्माना लगा फटाक से अन्दर कर देती है। अरे!…किसी को अगर एबार्शन करवाना है तो बेशक करवाए …बेधड़क करवाए…जी भर करवाए।…इसमें तुम्हारे बाप का क्या जाता है? वो चाहे एक करवाए …या फिर सौ करवाए…उसकी मर्ज़ी…लेकिन नहीं….अपनी कलयुगी सरकार की नज़र-ए-इनायत में ये जुर्म है..पाप है…गुनाह है। ये भला कहाँ का इनसाफ है कि एबार्शन करने वालों को और करवाने वालों को पकड़कर जेल में डाल दिया जाए?….तहखाने में डाल दिया जाए?

ऐसी अन्धेरगर्दी ना तो ‘नादिरशाह’ के ज़माने में कभी देखी थी और ना ही कभी ‘अहमदशाह अब्दाली’ के ज़माने में सुनी थी। ठीक है माना कि ‘एबार्शन’..या क्या कहते हैँ उसे हिन्दी में?…हाँ!..याद आया ‘गर्भपात’ आमतौर लड़कियों के ही होते हैँ…लड़कों के नहीं। तो आखिर!..इसमें गलत ही क्या है? कोई कुछ कहे ना कहे लेकिन मेरे जैसे लोग तो डंके की चोट पे यही कहेंगे कि अगर लड़का पैदा होगा तो….वो बड़ा हो के कमाएगा…धमाएगा…खानदान का नाम रौशन करेगा।

ठीक है!..मान ली आपकी बात कि आजकल लडकियाँ भी कमा रही हैँ और लड़कों से दुगना-तिगुना तक कमा रही हैँ लेकिन…ऐसी कमाई किस काम की जो वो शादी के बाद फुर्र हो अपने साथ ले चलती बनें?ये भला क्या बात हुई कि चारा खिला-खिला बाप बेचारा बुढा जाए और जब दुहने की बारी आए तो….पति महाश्य क्लीन शेव होते हुए भी अपनी तेल सनी वर्चुअल मूछों को ताव देते पहुँच जाएं बाल्टी के साथ? मज़ा तो तब है जब…जो पौधे को सींचे…वही फल भी खाए। “क्यों?…है कि नहीं।खैर छोड़ो!…हमें क्या?….अपने तो सारे बेटे ही बेटे हैँ।…जिसने बेटी जनी है…वही सोचेगा।

आप कहते हैँ कि हम इलाज के दौरान हायजैनिक तरीके इस्तेमाल नहीं करते हैँ जैसे सिरिंजो को उबालना…दस्तानों का इस्तेमाल करना वगैरा वगैरा…तो क्या आप के हिसाब से पैसा मुफ्त में मिलता है?…या फिर किसी पेड़ पे उगता है? आँखे हमारी भी हैँ…हम भी भलीभांति देख सकते हैँ….अगर सिरिंजें दोबारा इस्तेमाल करने लायक होती है तभी हम उन्हें काम में लाते हैँ..वर्ना नहीं। ठीक है!…माना कि कई बार जंग लगे औज़ारो के इस्तेमाल से सैप्टिक वगैरा का चाँस बन जाता है और यदा कदा केस बिगड़ भी जाते हैँ। तो ऐसे नाज़ुक मौकों पर हम अपना पल्ला झाड़ते हुए मरीज़ों को किसी बड़े अस्पताल या फिर किसी बड़े डाक्टर के पास रैफर भी तो कर देते हैँ।

अब अगर कोई काम हम से ठीक से नहीं हो पा रहा है तो ये कहाँ का धर्म है? कि हम उस से खुद चिपके रह कर मरीज़ की जान खतरे में डालें। आखिर!…वो भी हमारी तरह जीता जागता इनसान है…कोई खिलोना नहीं।

-ट्रिंग…ट्रिंग…

-हैलो…

-कौन?…

-नमस्ते…

-बस..यहीं आस-पास ही हूँ। …

-ठीक है!…आधे घंटे में पहुँच जाऊँगा।…

-ओ.के!…सारी तैयारियाँ कर के रखो…फायनली मैँ आने के बाद चैक कर लूँगा।

-हाँ!..मेरे आने तक पार्टी को बहला के रखो कि डाक्टर साहब ‘ओ.टी’ में एमरजैंसी आप्रेशन कर रहे हैँ।…

-एक बात और!…कुछ भी कह-सुन के पूरे पैसे एडवांस में जमा करवा लेना।…बाद में पेशेंट मर-मरा गया तो रिश्तेदारों ने ड्रामा खड़ा कर नाक में दम कर देना है। पहले पैसे ले लो तो ठीक…वर्ना…बाद में बड़ा दुखी करते हैँ…

अच्छा दोस्तो!….कहने-सुनने को बहुत कुछ है।…फिलहाल!….जैसा कि आपने अभी सुना…शैड्यूल थोड़ा व्यस्त है…तो फिर!..मिलते हैँ ना ब्रेक के बाद…फिर से नए शिकवों…नई शिकायतों के साथ…कुछ आप अपने मन की कहना…कुछ मैँ अपने दिल की कहूँगा।

“जय हिन्द”

“भारत माता की जय”

***राजीव तनेजा***

rajivtaneja2004@gmail.com

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