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आशुकवि कहलाये थे

जिंदगी का सच
जिंदगी का सच
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आशुकवि कहलाये वो

जब कवि मंच पर आये थे

पता नहीं क्या कमी रह

क्यूं राजनीति में आये थे

कविता के लब्जों में जो

सच दिखाने आये थे

जब कवि मंच पर आये थे||

 

साफ-सुथरी छवि को अपनी

क्यूँ धूमिल करने आये थे

षडयंत्रों के कुचक्र में शायद

खुद को फ़साने आये थे

सच पर अब पर्दा डाल

क्यूँ झूठ बताने आये थे

क्यूं राजनीति में आये थे ||

 

कभी हसातें, कभी रुलाते

कभी मखौल खूब बनाये थे

शब्दों के अपने भाव मिलाकर

वो जग में छाने आये थे

जनता को अपना बनाने और

उसे जगाने आये थे

सच्चाई उजागर करती

कविता के संग जब

कवि मंच पर आये थे ||

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