Menu
blogid : 1662 postid : 1567

“उद्योगपति बिरला के कुल गुरु”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
  • 202 Posts
  • 5655 Comments

दोस्तों आज मैं आप सभी के सामने उद्योगपति  बिरला के बारे में नहीं बल्कि उनके कुलगुरु के बारे में बाते सांझी करना चाहूँगा …. जोकि मैंने अपने बचपन में किसी किताब में पढ़ी थी , आज मुझको उन सभी बातो की थोड़ी बहुत याद है ,  बचपन में पढ़ी हुई उन महात्मा जी की जीवनी से जुड़े  कुछेक किस्से  आपके सामने रखने वाला हूँ ….. हो सकता है की उनकी पुण्यात्मा आत्मा मुझ पर और इस लेख को पढ़ने वालो पर अपनी किरपा किसी ना किसी रूप में बरसा ही दे , इसी कामना के साथ शुरुआत करता हूँ …..

   बिरला के वोह कुल गुरु महात्मा जिस गाँव में रहते थे , एक बार बाजार से गुजरते हुए उन्होंने अपनी मौज में आकर एक दुकानदार से कहा की “ला आज तेरे बेटे की जन्म कुण्डली बना दूँ” …. उस बेचारे दुकानदार ने डरते हुए श्रद्धावश उनके सामने एक कागज और कलम लाकर रख दी ….. अब आप सोच रहे होंगे की वोह बेचारा दुकानदार डर क्यों गया था …. बात दरअसल यह है की उस अभागे के घर तब तक कोई औलाद ही पैदा नहीं हुई थी …. एक साल के बाद जब उसके घर लड़का हुआ तो उसने अपने उस लड़के की जन्म कुण्डली बनवाई …. जब उसने अपने उस नवजात बच्चे की कुण्डली को करीब एक साल पहले उस महात्मा द्वारा बनाई गई कुण्डली से मिलाया तो यह देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह गई की उन दोनों ही कुण्डलियो में लेशमात्र भी अंतर नहीं था , दोनों ही अक्षरश एक समान थी ……

एक बार उन महात्मा जी की गैरहाजरी में उनका कोई भक्त परिवार अपनी किसी  मन्नत के पूरा  होने की खुशी में उनके पास ही रहने वाले एक गरीब परिवार को बिलकुल नई रजाईया अमानत के रूप में सौंप गया …. जब काफी  दिनों तक महात्मा जी वापिस नहीं आये तो उस गरीब परिवार ने वोह सारी रजाईया इस्तेमाल कर ली …. बस उसी दिन से उनके सारे परिवार ने खटिया पकड़ ली …. जब महात्मा जी के वापिस लौट आने पर उस परिवार ने उनके पैरों में गिर कर माफ़ी मांगी तो उन्होंने हँसते हुए ना केवल माफ कर दिया बल्कि वोह सारी रजाईया भी उनको सोंप दी  … बस अगले ही कुछेक पलों में वोह सारा परिवार उस अद्रश्य नामुराद बीमारी की गिरफ्त से छुटकारा पाकर भला चंगा हो गया था …..

  उन महात्मा जी के पास अक्सर ही गाँव के गरीब घर का एक नन्हा मुन्ना बाल गोपाल खेलने आया करता था ….. वोह महात्मा जी अपनी मौज में आकर जहाँ कहीं भी वोह बैठे होते , अपने पास की कच्ची जमीन को अपने नाख़ून से खुरचते और हर बार एक पैसा निकाल कर उस मासूम और “अबोध बालक” को कुछ खाने पीने के लिए दे देते ….. एक बार वोह महात्मा जी सो रहे थे तो उस बालक ने महात्मा जी को जगाना उचित नहीं समझा …. जब महात्मा जी नींद से जागे तो उन्होंने अपने आस पास की कच्ची मिट्टी को अनगनित जगह से कुरेदा + खोदा हुआ पाया …. वोह यह सब देखते ही सारा माजरा समझ गए , हंस कर कौने में खड़े सहमे हुए उस बालक को पास बुला कर कहने लगे की “तुझे भूख लगी है , अगर पैसा चाहिए था तो मुझसे मांग लेता ….. इतना कहने के बाद उन्होंने जहाँ भी सबसे पहली जगह पर अपने नाख़ून से खुरचा ,तो उनके हाथ में एक पैसे का सिक्का आ गया …..

एक बार एक अमीर आदमी उन महात्मा जी के पास बहुत ही बढ़िया कपड़े का कौरा (बिलकुल नया )  पूरा थान लेकर आया …. कहाँ तो वोह यह सोच कर आया था की महात्मा जी उसको अपने सिर पर लपेटेंगे , लेकिन यह देख कर उसकी हैरानी की कोई हद ना रही की वोह महात्मा उस कपड़े के थान को जमीन पर रख कर उसको अपने पैर के अंगूठे पर लपेटने लग गए ….. अब उस सेठ से रहा ना गया और वोह बीच में बोल ही पड़ा की महाराज मै तो इस कपड़े के थान को आपके ओढ़ने – पहनने के लिए लाया था , लेकिन आप तो इसको अपने पैरों में ही लपेटने लग गए ….. अब महात्मा जी उस पर थोड़ा गुस्सा  होते हुए बोले की “अरे मूर्ख ! मैं तो थारी मौत को बांध रिया था , पर तूने बीच में ही बोल करके सारा काम ही बिगाड़ के रख दिया” ….. इतना सुनना था की  उस सेठ की सिट्टी पिट्टी गुम  हो गई  …. वोह तुरंत उन महात्मा जी के चरणों में गिर पड़ा और लगा रो -२ कर उनसे अपनी भूल की माफ़ी मांगने …. लेकिन महात्मा जी बोले की वोह समय निकल गया , अब कुछ नही हो सकता , अब तो इतने दिन बाद तेरी म्रत्यु होनी ही है  और उसको तो अब मैं भी नही रोक सकूंगा  …..

एक बार पूर्णमाशी की रात को बिरला के पूर्वज रथ में उनसे मिलने गए तो वोह महात्मा जी उनसे बोले की जाओ और इसी समय वापिस लौट जाओ …. अब वोह मन में सोचने लगे की मैं इतनी दूर से इनसे मिलने आया हूँ और यह मुझको इतनी रात गए उल्टे पैर वापिस भेज रहे है …. खैर वोह मन मसोसकर वापिस अपने घर को चल दिए ….. थोड़ी दूर जाने पर ही उन्होंने देखा की एक सफेद रंग का अजगर रूपी सांप पूरा रास्ता रोके हुए सामने पड़ा हुआ था ….. यह देख कर किसी अनहोनी की आशंका के मद्देनजर उन्होंने अपना रथ वापिस उस महात्मा की कुटिया की तरफ मौड़ लिया …. उनको वापिस आया हुआ देख कर वोह महात्मा थोड़ा नाराज़गी से बोले की “मैंने तो तेरा अच्छा समय देख कर तुझको वापिस भेजा था , और तू है की फिर से वापिस मेरे पास चला आया है ….. जा अभी भी समय है वापिस चला जा , तेरा अच्छा समय अभी भी तेरा इंतज़ार कर रहा है ….. वोह दिन और आज का दिन , उसके बाद तो उस महात्मा का आशीर्वाद बिरला परिवार पर कुछ इस तरह से बरसा की उन्होंने व्यापार के हरेक क्षेत्र में बेहिसाब प्रगति की , और आज भी उनका बिजनेस दिन दोगुणा और रात चोगुना फल- फूल  रहा है ….

आखिर उनका बिजनेस इतना फले फूले भी क्यों ना ? जब उनपर इतने तगड़े महापुरुष का आशीर्वाद बरस रहा है ….. मैं आप सभी से यह गुजारिश करता हूँ की आप अगर उन महात्मा से जुड़ा हुआ कोई भी और किस्सा जानते है तो मेरे साथ जरूर सांझा करे , क्योंकि वक्त की धूल ने मेरे मन मस्तिष्क से उनकी बाकी की यादों को मिटा दिया है ….. अंत में मैं यही कामना करता हूँ की आप सभी पर उस महान पुण्यात्मा की किरपा और मेहर भरी दृष्टि बरसे , क्योंकि ऐसे महापुरष अपनी देह चाहे त्याग दे लेकिन उनका अस्तित्व हमेशा ही रहता है , बस फर्क इतना हो जाता है की तब वोह स्थूल रूप में ना होकर के सुक्ष्म रूप में विधमान रहते है ….. उनका लक्ष्य हमेशा ही प्रभु की भक्ति और मानवता की सेवा ही रहता है …. आइये उस महान महात्मा को मन ही मन नमन करे …

                                 

एक पापी और भटकती हुई आत्मा

 

                                             राजकमल शर्मा

                             

“टाटा के प्रतिद्वंधी बिरला के कुल गुरु” 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh