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“पूज्यनीय गुरुदेव शाही जी पधारो म्हारे देश –जागरण जंक्शन में”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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मेरी उनसे इस मंच पर पहली मुलाकात मेरे द्वारा लिखे गए लेख बिजली रानी पर उनके कमेन्ट “बिजली रानी की जय बोल दिया” के माध्यम से हुई थी …..

उसके  बाद तो दोतरफा आपसी समझ और हंसी मजाक द्वारा हमारा आपसी रिश्ता दिनोदिन मजबूत होता चला  गया ….. जहाँ पर मुझको अपने हरेक लेख पर उनके कमेन्ट रूपी कीमती उद्गारों का इन्तजार रहता था वहीँ पर मन के किसी कोने में यह डर भी समाया  रहता था की उनकी विनोदपूर्ण और हास्य से भरपूर टिप्पणी का जवाब उचित ढंग से मैं दे भी पाऊंगा की नहीं ? …..

                 हमारे बीच दो भाइओ वाला आपसी प्यार  परवान चढ़ता चला गया ….. लेकिन तभी इसी बीच इस मंच पर हमारे दो प्रिय साथियों वाहिद काशीवासी जी और राजेन्द्र रतूड़ी (जुबली कुमार ) जी का आगमन हुआ ….. जिन्होंने मेरे कारण+ उनके गुणों के कारण  ही आदरणीय रविन्द्र नाथ शाही जी को अपना गुरु मान लिया और इन दोनों गुरु भाइओ के कारण ही मेरा भी उनसे रिश्ता भाई से ट्रांसफर  गुरु शिष्य वाला रिश्ता कायम हो गया …..

अब मैं तो ठहरा नासमझ + अनजान और अबोध बालक ….. भाई वाला रिश्ता तो किसी तरह जैसे तैसे निभा लिया था लेकिन गुरु शिष्य का रिश्ता मुझ कलयुगी शिष्य से सही तरीके से निभाया नहीं गया …. और कुछेक ऐतहासिक महान गलतियों की वजह से  हम गुरु – शिष्य तथा गुरु भाई ( भानुमती विद हिज  कुनबा ) सभी बिखर कर रह गए ….. पहुंची वहीं पर ख़ाक जहाँ का खमीर था की तर्ज पर सभी ईंटें और रोड़े बिखर कर नामालूम किस -२  जगह पर  चले गए ……

अपने एक लेख “जागरण मेरी बीवी भई सबकी सरकार” में एक जगह पर मैंने लिखा था कि मेरी यह बीवी सफेद बालो वाले ब्लागरों पर अपनी विशेष किरपा दृष्टि रखती है …. लेकिन मेरे गुरुदेव के सिर पर ना तो काले और ना ही सफेद बाल , बल्कि कोई भी बाल ही विराजमान नहीं है ….. लेकिन फिर भी उनके उच्च  कोटि के लेखन कि वजह से जागरण के सम्पादक मंडल को उनका लिखा हुआ कोई भी लेख फीचर्ड करने में एक पल के लिए भी सोचना नहीं पड़ता  है …..

उनके इस मंच से चले जाने के बाद भी मेरे अनेको शिष्य पैदा हुए है ….. लेकिन इन सभी को अपने दादा गुरु जी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है …..जब भी यह मुझको अपने दादा गुरु जी के बारे में पूछते है तो मैं इन सभी से झूठ मूठ बोल दिया करता हूँ कि तुम्हारे  दादा जी हिमालय की  कन्दराओ में तपस्या करने गए है तथा इसके साथ -२ वहां पर जल रहा दिया बुझाने गए है ताकि भविष्य में और शिष्य ना पैदा हो सके ….. लेकिन असली बात तो सिर्फ और सिर्फ मैं ही जानता हूँ कि वोह काली पहाड़ी पर अपना पुराने  वाला धन्धा , जो की ब्लागिंग के कारण पड़ गया था मंदा , को पुनर्जीवित करने गए है …..

मैं यह नहीं कहता की  मेरे गुरु भाई प्रिय जुबली कुमार जी और वाहिद काशीवासी जी ‘सक्षम’ नहीं है और ना ही हमारी सबकी सांझी जागरण बीवी में ही कोई ‘कमी’ है …… असल कारण है की मेरे गुरु भाई ब्लागिंग को पूरा समय नहीं दे पा  रहे है ….. अब जब तक  इन दोनों के शिष्य नहीं होते हिमालय की कन्दराओ में वोह दिया जलता ही रहेगा और उसका परिणाम जाने अनजाने और अनचाहे मुझको भी भोगना ही पड़ेगा ……

आपने वोह वाला चुटकुला तो सुना ही होगा कि जिसमे एक लड़की कक्षा के सभी लड़को द्वारा  खुद को भुआ -२ (बुआ ) कह कर चिढ़ाने कि शिकायत करने पर जब मास्टर जी उसको बुआ कह कर चिढ़ाने वाले क्लास के सभी लड़कों को बैंच के उपर खड़ा होने कि सजा देते है तो एक सिर्फ एक ही लड़के के अपनी सीट पर बैठे रहने पर जब मास्टर जी उस लड़के से बैठे रहने का कारण पूछते है  … तब वोह लड़का कहता है कि मास्टर जी मैं तो सारी क्लास  का “फुफ्फड़” हूँ …. कुछ इसी तरह से मेरी भी दिली ख्वाहिश और तमन्ना है कि कोई तो ऐसी लड़की हो जोकि मेरे सभी शिष्यों को + सारी दुनिया को ताल ठोक कर कह सके  कि हाँ मैं तुम सभी की  “गुरु- माता” हूँ …..

एक बात और कहनी चाहूँगा इक अजीब इतेफाक के बारे में ….. मेरे ब्लॉग पेज पर मेरे बच्चे की लगी फोटो,  जोकि मेरे लेख “करिश्मा कुदरत का” के जुड़वाँ बच्चो से ली गई है,  की शक्ल हुबहू अपने ‘दादा जी’ से मिलती जुलती है …..

                                         एक कहावत आपने सुनी होगी की बाप पर पूत और पिता पर घोड़ा ज्यादा नहीं तो थोड़ा थोड़ा ….. इस कहावत के मुझ नाचीज पर लागू होने के कारण मैं अपने गुरुदेव पर ही नहीं गया बल्कि घुटनों के बल चलते चलते एक सामान्य कलयुगी शिष्य की तरह उनसे भी आगे निकल गया…. इसी के साथ आपने एक और कहावत भी सुन रखी होगी की चोर को मत मारो बल्कि उसकी माँ को मारो …… इसलिए मैं आज सभी से यह गुजारिश करता हूँ की आजतक जिस किसी की भी शान में मैंने अपने व्यंग्य के द्वारा गुस्ताखी की है + दिल को ठेस पहुंचाई है , वोह सभी मेरी सभी हरकतों + करतूतों के लिए मुझको जिम्मेवार न समझते हुए मेरे पूज्यनीय गुरुदेव श्री रविन्द्र नाथ शाही जी को फेसबुक पर जाकर पकड़े  ….

                        इस लेख को काफी समय पहले तब लिखा गया था जबकि आदरणीय शाही जी वैकल्पिक अवकाश पर थे ….. लेकिन बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की आज इस लेख को पोस्ट करते समय वोह इस मंच पर से अपना ब्लॉग डिलीट करके, हमेशा के लिए तो नहीं शायद दिमाग ठण्डा -ठण्डा कूल-कूल  होने तक तो चले ही गए है …..    

                           वैसे मेरे फितूरी दिमाग  में एक प्रबल आशंका भी कुलबुला रही है की कहीं ऐसा तो नहीं की जाना था हमसे दूर बहाने बना लिए की तर्ज पर परम आदरणीय गुरुदेव ने सिर्फ जाने के लिए ही कोई शगूफा खड़ा करके हम सभी से किनारा करके हमे अपनी किरपा दृष्टि और रहनुमाई से वंचित कर दिया हो …. क्योंकि इस उम्र में दिखाई भी कम देने लगता है + दिमाग के सोचने समझने की शक्ति भी कमजोर होने लग जाती है …. इसलिए अब हमको यही मानना पडेगा की अपनी अक्षमता की वजह से ही हमारे परम पूज्यनीय + प्रातः वन्दनीय गुरुदेव जी इस मंच को अलविदा कहते हुए  हमको बेसहारा और अनाथ करके चले गए है …..  वर्ना ऐसा कोई कारण मुझको नहीं दीखता है जिकी वजह से  दाता- बन्दीछोड़ जी को रणछोड़ बनना पड़ा…..  

                मेरा यह मानना है की मेरी गैरहाजिरी में आप सभी ने उनको रोकने + मनाने की सभी कोशिशे जरूर की होंगी …. मेरे इस लेख को भी मेरी तरफ से उनको मनाने की ही एक छोटी सी कोशिश के रूप में देखा जाना और समझा जाना चाहिए …. आप सभी की ही तरह मैं भी मन वचन और करम  से यह चाहता हूँ की गुरुदेव इस मंच पर दुबारा वापिस लौट आये …. और पुनः हम सभी पर अपना स्नेह बरसाते हुए हम सभी के बीच में खिलखिलाएं +हँसे मुस्कराए और किलकारिया लगाए …..

                      जब भी कोई मुझ 38 साल के एंग्रीयंगमैन को गुरु जी कहता है तो मेरी पहले से ही मलिन और नापाक आत्मा पर ढेर सारा  बोझ चढ़ जाता है + बढ़ जाता है ….. इसलिए मैं आज हर खास और आम को सूचित करना चाहता हूँ कि आज से मैंने अपना नाम राजकमल कि बजाय “गुरुदेव” रख लिया है ….. ना रहेगा बांस और ना बजेगी  बांसुरी …. अब चढ़ाओ मुझ पर + मेरी आत्मा पर बोझ …… ना नो मन तेल होगा और ना ही राधा नाचेगी – अब चढ़ा कर दिखाओ  मुझको चने के झाड़ पर ….

                                 अपने तथाकथित सच्चे  शिष्यों का

                                    पाखण्डी  गुरुदेव { राजकमल शर्मा }

                (“ पूज्यनीय गुरुदेव शाही जी पधारो म्हारे देश –जागरण जंक्शन में” )

*कैमरामैन :- वाहिद काशीवासी

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