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“कुछ इस तरह की हमने माता सरस्वती जी की पूजा”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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ओम श्री गणेशाय नम्: + ओम नमः शिवाय

             जहां  पर मैं काम किया करता हूँ , वहां पर पिछले साल माता सरस्वती जी की प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्ति की स्थापना और बाद में उसका भाखड़ा नहर में विसर्जन हुआ था …. इसके साथ ही माता जगत जननी वैष्णोदेवी जी का जागरण भी हुआ था , जिसका की तीन चौथाई खर्च हमारे  बिग बॉस ने उठाया  था ….

                   पिछले साल ही यह तय हो गया था की एक बार शुरुआत करने के बाद कम से कम तीन  साल तक लगातार माता सरस्वती जी की मूर्ति की स्थापना और विसर्जन होगा , क्योंकि यह जरूरी है …… लेकिन जब इस साल माता सरस्वती जी की पूजा करने की बात उठी तो जनाब हमारे छोटे बिग बास व्यापार में घाटे का रौना लेकर बैठ गए और ऐसे किसी भी आयोजन के लिए सिरे से ही कन्नी काट गए …… जब मुझको यह बात पता चली तो मैंने लेबर के ठेकेदार को उकसाते हुए कहा की अगर कोई भी माता सरस्वती जी का पूजन नही करता है तो मैं बाजार से पचास रूपये की एक छोटी सी मूर्ति लाकर ,  खुद ही उनके आगे पूरे छतीस घन्टे जोत जगा करके उसको स्कूटर पर भाखड़ा नहर में विसर्जित कर आऊंगा …… लेकिन इतना तो तय है की मेरे रहते माता रानी का जागरण चाहे ना हो पाए लेकिन उनकी मूर्ति की पूजा हर हाल में होकर ही रहेगी …..

                  मेरे द्वारा इस प्रकार कहने पर उस ठेकेदार की गैरत + भक्ति थोड़ा सा जाग गई  ….. तब मैंने लोहे को गर्म देख कर दूसरी चोट की , मैंने उसको कहा की पहले तुमने बेटे से इजाजत मांगी थी , इस बार उसके बाप यानी की बिग बॉस के भी बॉस से इजाजत मांगो , अगर उस बिग – बॉस ने जोकि हर  तरह के बासों  का बोस है जोकि  नीले आसमान में कहीं पर छुपा बैठा है ,चाहा तो हम जरूर सफल होंगे ….. मेरे द्वारा बात करने के लिए भेजे जाने पर इस बार उसको पूजा करने की सहमती मिल गई …… तब मैंने जरा सी भी देर ना करते हुए उसी समय पांच सौ रूपये एडवांस देकर अठाईस सौ रूपये वाली माता सरस्वती जी की साढ़े पांच फुट की मूर्ति बुक करवा ली …… पूजा से एक दिन पहले मूर्ति को लाने वाले दिन बड़ी जोरो से बारिश होने लग गई …… हम लोग मूर्ति वाले द्वारा फोन करने पर जब मूर्ति लेने सात किलोमीटर का सफर तय करके पहुंचे तो यह देख कर हम हैरान रह गए की उस इलाके में पानी की एक बूंद तक नहीं बरसी थी ……

की है उसके सकारात्मक परिणाम तथा प्रभाव सामने आने लग गए है ….                                                                                                                                        अगले दिन माता रानी की मूर्ति का साज श्रृंगार हुआ , साड़ी तथा आभूषण पहनाए गए …… हम लोगों में से किसी को भी ढोलक बजानी नही आती थी ….. लेकिन तैयारियो के दौरान तथा  पंडित जी के आने से पहले कुछ गुणगान करना भी बेहद जरूरी था …. अब हमारे पास कोई सी.डी .प्लेयर भी नहीं था , उसका मैंने अपने जुगाड़ीया दिमाग से यह हल निकाला की किसी के मोबाइल के मैमरी कार्ड को बिलकुल साफ़ करने के बाद उसमे अपने कम्प्यूटर से भक्ति रचनाये भरने के बाद उसको मोबाइल में डाल कर लाउडस्पीकर के आगे रखकर चला दिया ….. इस प्रकार हमारी एक समस्या तो हल हो गई थी …… फिर  पंडित जी को बुलाकर हवन तथा पूजा पाठ करने के बाद सभी भक्तजनों को प्रसाद वितरित किया गया …..

                         शाम को समाना शहर से ढोलकी पर गाने और बजाने वाले आ गए थे ….. शाम से शुरू होकर उनका कीर्तन अगले दिन सुबह तक चलता रहा … ठीक  उसी समय इस जागरण मन्च पर प्रेम के प्रतीक वैलेंटाइन्स  पर एक कांटेस्ट भी चल रहा था …. मुझको दूसरे ब्लागर साथियों के दो दिन के लेखों पर प्रतिकिर्याए देनी थी तथा अपने लेख पर आई टिप्पणियो का जवाब भी देना था ….. इसी चक्कर में रात का डेढ़ बज गया था , और मैं मुर्ख मति उसके बाद थक हार करके नींद की आगोश में न चाहते हुए भी चला गया था ….

उतर कर अपना बकाया काम करने लग गया और मेरी  मूर्ति विसर्जन करने वालों के साथ जाने की इच्छा मेरे मन में ही रह गई …..

          मैं अपने मन ही मन में सोचने लगा की शायद माता रानी मेरे से नाराज़ हो गई है ….. चूँकि मैं रात को ब्लागिंग करते हुए कीर्तन में शामिल नही हुआ था , शायद इसीलिए मातारानी ने नाराज़ होकर मुझको अपनी मूर्ति की विसर्जन यात्रा से दूर कर दिया है ….. लेकिन फिर अगले ही पल मन में यह सकारात्मक ख्याल आया की माता रानी मुझसे  हरगिज़ नाराज़ नही हो सकती , क्योंकि हम बचपन से यही सुनते और मानते आए है की ‘पुत कपूत सुने है ना माता सुनी कुमाता’ …….

  बाद में पता चला की जिस गाड़ी को बिक्री कर विभाग वालों ने पकड़ा था उस पर पूरे चौबीस हज़ार का जुर्माना लगा है ….. अब माता रानी की लीला मेरी समझ में आ गई थी  की उन्होंने अपने जागरण का खर्चा मेरे बिग बॉस से सूद समेत वसूल कर लिया है , वैसे पिछले साल पूरे बाईस  हज़ार का खर्चा आया था …. तो इस प्रकार हमने रोते धोते हुए किसी तरह से माता रानी की मूर्ति की पूजा करने का ढोंग और उसका विसर्जन किया …..

 

                          एक बार मेरी  एक मित्र से इसी विषय पर बातचीत हो रही थी , उनका इस बारे में यही कहना था की कई व्यापारियों को कुदरत की तरफ से यह श्राप मिला हुआ होता है की वोह अपने किसी मुलाजिम को तो उसका बनता हक कदापि नही देंगे + किसी धर्म कर्म के कार्य पर नहीं खर्च करेंगे , लेकिन जब डाक्टर को देने की बात आएगी या फिर सरकार को कोई जुर्माना देना पड़े  तो हंसी खुशी से दे देंगे …… अब अपने भगवान जी भी पूरा हिसाब रखते है , रखे भी क्यों ना उनके पास सुपर कम्प्यूटर जो है जोकि सबके कर्मो का लेखा जोखा रखता है …. उनका भी शायद  यही कहना है की , जहां तक चलते हो चलते चलो बेटा ! …… तुम डाल – डाल तो हम भी पात – पात ,  इस तरह नहीं तो फिर उसी तरह सही ….. और बकरे की मां अपनी लाख खैर मना ले लेकिन उस कुदरत की छुरी देर सबेर उसके गले पर आ ही जाती है , और ऐसी आती है की दिन में तारे तो दिखलाती ही है , साथ में नानी भी याद करवा जाती है …..

                 तो इस प्रकार हमने रोते धोते माता रानी की मूर्ति की पूजा और उसका विसर्जन किया …..

                       “बोलो सरस्वती माता जी की जय”

माता रानी का ढ़ोंगी भगत

राजकमल शर्मा

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