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दोस्तों प्रेम का एह्सास अपने आप में सम्पूर्ण और अद्वितीय है ….. क्योंकि हकीकत तो क्या सपने में भी आप यह नही कह सकते की मैं तुम से आधा या चौथाई प्रेम करता हूँ ….जब प्रेम होता है तो दिल में अनगनित फुल खिल उठते है और पुरे शरीर में रक्त का हरेक कण उत्तेजना से भर जाता है और प्रत्येक सांस शरीर में एक नयी ताज़गी का संचार करती है …. प्रेम की अनुभूति एक ऐसे दिव्य और अध्यात्मिक आनंद से परिचित करवाती है जिसको की ‘एक गूंगे के द्वारा गुड़ का स्वाद’ की तर्ज पर शब्दों में व्यक्त करना नामुमकिन है ….
यह हमारा बहुत बड़ा भरम है की उम्र के बीतते -२ परस्पर प्यार कम होते -२ खत्म हो जाता है ….. ऐसी गलत धारणा सिर्फ उन्ही लोगो की हो सकती है जो की प्यार को सिर्फ शारीरिक स्तर तक ही मानते और समझते है …. जबकि सच तो यह है की असली प्यार प्रगाढ़ ही शारीरिक तल से उपर उठ कर होता है और नयी -२ उंचाईया छूता है ….. अधेडावस्था और बुढ़ापें में ही पति पत्नी को एक दूसरे को सही तरीके से और ज्यादा गहराई से समझने की जरूरत होती है …..
बेशक तब उस दम्पति का रिश्ता पति पत्नी के रिश्ते के साथ -२ आपस में और भी बहुत से गरिमापूर्ण मगर जिम्मेवारी से युक्त रिश्तों के एहसास लिए रहता है ….. क्योंकि तब वोह पति पत्नी के साथ -२ दादा – दादी + नाना – नानी भी हो जाते है ….तब उनके प्यार और दुलार का दायरा विस्तृत और विशाल हो जाता है ….. बेटे बेटियों के अतिरिक्त उनका प्यार अपने नाते – नातियों और पोते – पोतियों पर भी बरसता है …… बेशक आजकल पहले जैसे सयुंक्त परिवार नही होते और नोजवान पीढ़ी में विदेश जाने की चाह में और देश मे ही घर से दूर किसी और जगह पर पैसा कमाने की चाह और मजबूरी के कारण अधिकतर बच्चों को अपने दादा दादी तथा नाना नानी का प्यार भरा स्नेह नही मिल पाता ….. एकल परिवार की परिपाटी के रुझान का भी इसमें अहम भूमिका है ….
आजकल के नौजवान जोड़ो को पहले से ज्यादा आजादी चाहिए …… उनको अपने किसी भी मामले में किसी भी किस्म की दखलंदाजी और रोकटोक मंज़ूर नही है ….. क्योंकि वोह खुद को अपने अनुभवी बजुर्गो से ज्यादा समझदार मानते और समझते है ….. उनके इस रविए का खामिआज़ा हमारी आने वाली नयी पीढ़ी को चुकाना पड़ता है ….. आज उनको अपनी गोद में दुलारते हुए कहानी सुनाने वाला ज्यादातर घरों में बजुर्ग ही नही है ….. और माँ – बाप ! उनके पास पैसा कमाने से ही फुर्सत नही है तो वोह बेचारे अपने बच्चों को कोई कहानी कहाँ से सुनायेंगे ….. यह खबर हाल ही में एक यूरोपीय देश में किये गए सर्वे से भी साबित हो गई है ….. लेकिन मैं तो यहाँ तक मानता हूँ की यह सर्वे ही अधूरा है ….क्या किसी ने यह भी पता लगाने की कोशिश की है की माँ बाप को वास्तव में ही कोई कहानी आती है ? + क्या उनको अपने बचपन में सुनी हुई कोई कहानी याद भी है की नही ….. हमको घबराने की जरूरत नही है , अगर ऐसा ही हाल रहा तो वोह समय भी बहुत ही जल्दी आ जाएगा ….
और तब हमारे पास होगी परिवारिक मूल्यों तथा खानदानी संस्कारों से विहीन पीढ़ी जो की अपने माँ बाप के लड़ाई झगड़े देख -२ कर ही बड़ी होने के कारण उद्दण्ड + जिद्दी होने समेत अनेको बुराइयों से लबालब होगी …. क्योंकि उनके बचपन में उनको अपने घर में ना तो किसी बजुर्ग की छाया रूपी साया ढंग से मिलेगा….. जिसके अभाव में उनकी जिंदगी एक सूखे मरुस्थल समान होगी , जिसमे की दूर -२ तक छाया नही होती …. अगर होता है तो सिर्फ और सिर्फ भरम , नखलिस्तान के होने का ….
राजकमल शर्मा
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