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दोस्तों कुछेक दिन पहले हमारे प्रिय साथी श्री चातक जी ने मुझ को यह हुक्म दिया की मैं “अस्मिता के लुटेरों” पर कुछ भी लिख डालू …. अब मैं कमअक्ल तो बस इतना ही जानता हूँ कि एक अदद नारी कि सबसे कीमती शय को अस्मत कहते है और हम सबकी भारत माता कि इज्जत को अस्मिता कहते है ….
जब भी हम इस अस्मिता के बारे में कोई भी लेख लिखते है या फिर पढ़ते है तो हमारी सोच जय चन्द और मीर जाफर से ही शुरू होती है …लेकिन खत्म पता नहीं कहाँ पर जाकर होती है …..
लेकिन आज मैं इसपर बिलकुल अलग अन्दाज़ में बात करूँगा ….. आज मैं आपको दो भाईओ कि सच्ची कहानी सुनाऊंगा … और मेरी आप से यह गुजारिश है कि इस कहानी में से ही आप “अस्मिता के लुटेरो” को खोजें ….आप कि सुविधा के लिए उनमे से एक भाई तो मैं ही बन जाता हूँ …..और मेरी आप से यह गुजारिश है की दूसरे की जगह पर आप खुद को ही रख ले तो कहीं ज्यादा बेहतर होगा …
यह कहानी उन दो भाईयों की है जिनके पिता का देहान्त होने के बाद उनकी माँ ने बहुत से कष्ट सह कर उन दोनो की परवरिश की …. जब तक उन भाईओ के पिता जी जीवित थे उनकी माँ की राजनितिक और धार्मिक आस्था उनके पिता जी से ही मिलती –जुलती थी …. लेकिन अपने पति के अचानक देहान्त हो जाने के तुरन्त बाद मेरी माँ की धार्मिक आस्था बिना अपने धर्म को बदले किसी दूसरे धर्म में हो गई …. हमेशा से ही जिस राजनितिक पार्टी को हम इस हद तक मानते थे की उसकी सोच के कारण गली मुहल्ले में कई बार लड़ाई झगड़ा भी हुआ ….. अब मेरी माँ और मेरा दूसरा भाई तथा मेरी बहन मेरी माँ की इस नई विचारधारा में पूरी तरह से रंग गये थे ……
अपने स्वर्गीय ईमानदार पिता के असूलों और सिद्धान्तों पर दृढ़तापूर्वक डटे रहने के कारण मैं अपने ही घर में इस हद तक अलग थलग पड़ गया कि कल तक जो अपने थे , उनके लिए मैं एकदम से बेगाना हो गया …..हमारी विचारधारा में उन्नीस और बीस का नहीं बल्कि जमीन और आसमान तक का अंतर था …. इस खाई को पाटना और हमारे बीच की “दिवार” को गिराना किसी के भी बस में नहीं है …..
जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच में क्रिकेट का कोई मैच होता है …मैं उन पाकिस्तानी खिलाड़ियों को जानबूझ कर मुस्ले + कुत्ते कहता हूँ ….यह बात मेरे परिवार को इतनी नागवार गुजरती है कि इसके बाद मेरे साथ मेरे ही घर में मेरा बायकाट जोरशोर से शुरू हो जाता है …और कोई भी घर में मुझ से कम से कम 15 – 20 दिनों तक कोई भी बातचीत नहीं करता …..
यह तो सभी जानते है कि भारत और पकिस्तान के समय के बीच में लगभग आधे घन्टे का अंतर है …. शायद और यकीनन इसी कारण हमारे घर की दिवार घड़ी के समय में पन्द्रह मिनट का अंतर हमेशा होता है …. और मेरी अपने ही घर में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उस दिवार घड़ी के समय को सही कर सकूँ …..
मेरे भाई और मेरी विचारधारा में इतना ही अंतर है जितना कि दीवार फिल्म के अमिताभ और शशि कपूर के बीच में था ….. अब मेरा भाई मेरी माँ और मेरी बहन के संग अलग रहता है और मैं उन सबसे अलग , किसी दूसरी जगह पर इतनी दूर कि भूले से भी कभी हमारा आमना सामना ना हो जाए ….
हम दोनों भाईओ के बीच में यह इकरारनामा हुआ था कि ठीक पन्द्रह साल के अन्तराल के बाद हम दोनों रात के बारह बजे पीपल वाली गली के चौंक में मिलेंगे …. अब ज्यों -२ वोह समय नजदीक आता जा रहा है , मेरी रातो कि नींद और दिन का चैन कहीं खो सा गया है …बस यही एक चिंता हरदम खाये जा रही है कि जब मेरा भाई मुझसे यह कहेगा कि “आज मेरे पास बंगला है + गाड़ी है + जिन्दगी जीने के लिए हर ऐशोआराम का सामान है” ….तब मैं उसके जवाब में क्या कहूँगा ? ….क्योंकि तब मैं तो यह भी नहीं कह सकूंगा की “मेरे भाई मेरे पास माँ है” , क्योंकि मेरी माँ भी तो अब उसी के साथ ही रहती है ….
मैं यह भली भांति जानता हूँ की मेरे भाई की चाल और चरित्र बिलकुल कट्टर मुसलमानों की तरह है …. कल को अगर वोह कहीं पुलिस या फौज में भारती हो गया तो वोह देशद्रोहियों वाले ही काम करेगा … उसका ईमान सिर्फ और सिर्फ पैसा ही है … अगर वोह कल को कोई नेता बन गया तो हमारे देश का ही अन्दरखाते सौदा करके उसको भी बेचने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा ….
हम दोनों ही भाईओ की परवरिश एक ही जैसे माहौल में हुई … एक जैसे ही हमको संस्कार देने की कोशिश की गई …. फिर क्या कारण रहा की हम दोनों के बीच की दीवार इतनी बड़ी हो गई … और हमारी राहे और सोच बिलकुल जुदा हो गई है ..
मेरे भाई के बाजू पर किसी ने भी नहीं लिखा है की “मेरा बाप चोर है” …… लेकिन उसके कुत्सित इरादे और नीच करम ही इतने ज्यादा है की अब सब जान गए है की यह सबसे बड़ा चोर है ….मैं भगवान से दिन – रात यही प्रार्थना करता हूँ की मेरे भाई का कभी इतिहास में नाम ना आ जाए , अपने किसी कारनामे की वजह से …. और वोह अगर इतिहास पुरुष ना ही बने , तब ही इस देश और समाज का भला होगा ….
उसमे एक और कट्टर मुसलमानों वाली खासियत है कि जब तक उस का तशरीफ़ का टोकरा गर्म तवे पर रहेगा तब तक तो वोह आपकी हर बात मानेगा …हर तरह के इकरार करेगा , लेकिन मज़बूरी के दूर होते ही वोह गिरगिट अपने असली रंग में फिर से आ जाता है ….. अगर मेरा बस चले तो मैं उसको गोली मारकर खुद फांसी पर चढ़ जाऊँ , देश का कुछ तो भला होगा …..
लेकिन सवाल तो यह है कि क्या यही इसका असली हल है ? ….मैं तो अपने एक भाई को मार कर खुद फांसी पर चढ़ जाऊँगा , क्योंकि मेरे लिए मेरे वतन पहले है और बाकि के रिश्ते नाते बाद में ….उस जैसे अनगनित भाई जो कि हमारे इस समाज में हमारा ही एक हिस्सा बन कर रह रहे है … हमारी + हमारे समाज की + हमारी अर्थव्यवस्था की जड़े दिन रात अपने पूरे तन और मन से खोखली कर रहे है , उनको उनके असली मुकाम तक कौन पहुंचायेगा ….
आज मैंने अपने इस समाज के जटिल ताने बाने को इस सच्ची कहानी के द्वारा समझाने कि कोशिश की है …. और मुझको फिल्म दिवार के निर्माता की सोच पर रश्क होता है कि उसने हमारे सामने इतनी बड़ी हकीकत इतने रोचक ढंग से रक्खी …. सच में यह हमारे समाज में ऐसी दीवारे है कि जिनकी गहराई पाताल तक है और इनकी ऊँचाई सातवें आसमान से भी ऊँची है ….
आज मैं इस देश और समाज के सभी सुधारको और विचारकों को यह खुला चैलेंज करता हूँ कि अगर आप में हिम्मत है तो हमारे इस समाज को बदल कर दिखाओं ….मेरा दावा है कि यह नहीं बदल सकेगा अगर खुद खुदा भी ज़मीन पर आ जाये ….
फिल्म दिवार का बिन माँ का
अमिताभ बच्चन
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