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दोस्तों अक्सर ही यह कहा और सुना जाता है की प्रेम अक्सर नफरत के बाद ही पैदा होता है …… क्योंकि कोई भी लड़की बड़ी ही आसानी से किसी लड़के को अपना दिल नही दिया करती है …… हाँ पहली नजर का प्यार इसका अपवाद जरूर कहा जा सकता है …… वोह भी एकतरफा नहीं , बल्कि अगर आग दोनों तरफ से लगी हो तो क्या कहने , सुभान अल्लाह …. लेकिन अगर हम हकीकी प्यार की बात करे तो पायेंगे कि “वोह खुदा” हर किसी को हरेक रूप में स्वीकार करता है और ऐसा साथ निभाता है कि जीते जी की तो बात ही रहने दे , मरने के बाद भी साथ निभाता है …. इस मामले में हम संत मीरा बाई जी का उदाहरण देख सकते है, जिनको की उस सांवरे से पहली नज़र का प्यार हुआ था …..
यह कहा और माना जाता है की प्यार आँखों से किया जाता है , आँखों के रास्ते से ही दिल में उतरा जाता है …… कहा भी गया है कि “आँखे करती है बाते दिल की जुबां नहीं होती”….
महबूब कि इन आँखों में आशिकों और शायरों ने मदिरा देखि और पाई है .. और उस मदिरा पर क्या खूब एक से बढ़कर एक रचनाएं भी रची है ….. मदिरा के बारे में किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि :-
“छूटती नहीं है यह काफ़िर मुंह से लगी हुई”…..
और जिसने आँखों की शराब पी ली तो उसको फिर किसी बात की होश ही कहाँ रहती है ….. दुनिआवी शराब तो कुछ समय के बाद उतर जाया करती है ….. लेकिन महबूब की आँखों की मदिरा का नशा तो सिर पर चढ़ कर कुछ ऐसे असर दिखाता है की आदमी आठों पहर उसी में डूबा रहता है ….. उसको फिर दीन – दुनिया की कोई खबर ही कहाँ रहती है ….. और चाचा ग़ालिब ने इस बिमारी के बारे में बजह फरमाया है कि
“इश्क ने ऐ ग़ालिब निक्कमा कर दिया ,
वर्ना आदमी हम भी थे कभी काम के”
और अगर इस नशे को हम अगर जवानी का नशा कहे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ….. क्योंकि यह नशा बुढापे में और बूढ़े – बजुर्गो को बहुत ही कम चढ़ता है …..
और इस कलियुग में जो प्रभु के नाम के रस की मदिरा का पान कर लेता है तो उसको फिर उस नशे के उतरने का कोई फ़िक्र नहीं होता है …. क्योंकि यह ऐसा नशा है जोकि एक बार चढ़ जाए तो फिर उतरने का नाम नही लेता …. जवानी हो या फिर बुढापा इसके उतरने का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता है …… लेकिन इस नशे की एक खास बात यह होती है की इसको करने के बाद आदमी अपने होश को खोता नहीं बल्कि जन्मों – जन्मान्तरो की खोई हुई सुध को पा लिया करता है …..
दोस्तों आजकल के जिन तथाकथित साधू संत + सन्यासी + महात्मा और धर्मगुरुऑ को हम मीडिया की सजगता के कारण कामवासना और दूसरे विकारों में डूबे हुए पाते है …. मेरे विचार से वोह सभी वास्तव में ही ढोंगी है , उनका सारे का सारा धार्मिक ज्ञान सिर्फ एक ढकोसले बाज़ी से ज्यादा कुछ भी नहीं है … क्योंकि जिसकी कुण्डलिनी वास्तव में ही पूर्ण रूप से सही अर्थो में जाग्रत हो गई हो , वोह हकीकत तो क्या सपने में भी कोई ऐसा वैसा काम नहीं करेगा, एक सच्चे मुसलमान की माफिक ……
क्योंकि जिसने उसके दरबार में कोई दर्ज़ा पा लिया या फिर कोई छोटी मोटी नौकरी भी पा ली तो फिर उस पर आगे बढ़ने की ही धुन हमेशा सवार रहती है …. वोह कभी भी अपने किसी काम से खुद को नीचे नहीं गिराना चाहेगा जिससे की उसके ‘उस दर्जे’ या फिर पद पर कोई भी आंच आये … इस मामले में हम संत तुलसीदास जी का उदाहरण देख सकते है जिन्होंने की उस समय के हाकिम के कारिंदों को टका सा जवाब यह कह कर दे दिया था कि :-
“तुलसी चाकर राम के, का होंगे किसी के मनसबदार”
जो उससे प्रेम करता है उसको फिर किसी और दुनिआवी शय से प्रेम करने कि कोई ज़रूरत नहीं है रह जाती …. उसको किसी का भी डर नहीं रहता है , वोह सिर्फ और सिर्फ अपने मालिक (महबूब ) के सजदे में ही अपने सिर को झुकाता है , उसी के गुण गाता है …….
उसके हकीकी प्यार में खुद को मिटाने की चाह रखने वाला इक तलबगार
राजकमल शर्मा
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