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नया राजकमल शर्मा “गधा”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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दोस्तों  वैसे  तो  यह  खबर  पुरानी  है  लेकिन  इसकी  रोचकता  और  विचित्रता  ने  मुझको  किसी  अल्हड़  कुंवारी   हसीना  की  तरह  इसकी  तरफ  आकर्षित  किया ….   उस  विचित्र  खबर  के अनुसार  हमारे  पड़ोसी  देश  नेपाल  में  सच्चाई  +  इमानदारी  +  भलमनसाहत+ मेहनतकश  के  प्रतीक  गधों  और  खच्चरों  के  निस्वार्थ  परिश्रम  को  सम्मान  देने  के  लिए  नेपाल  में  अब     इन  बेजुबान  और  निरीह  जानवरों  को  हफ्ते  में  एक  दिन  का  साप्ताहिक  अवकाश  मिला  करेगा …..

                           

                                यह  देख  कर  यार  लोगों  ने  रब्ब  से  जो सबसे  पहली  फरियाद  की  वोह  यही  थी  की  “या  रब्ब !  मुझको  तू  अगले  जन्म  में  गधा  ही  बनाना  लेकिन  जन्म  नेपाल में  ही  देना …… यारों ! मुझको  तो  उन  गधों  के ऐशो – आराम  से  बेहद जलन  होती  है  …..  अब  मैं  भी  क्या  करूं  ? ,  खुदा  ने  शरीर चाहे मर्दों वाला लेकिन दिल  और  दिमाग तो औरतो वाला  ही   दिया   है  की , ईष्र्या  और  जलन  तो  झट  से  पैदा  हो  जाती  है  …….  कहाँ  तो  हम  २४  घंटे  में  पूरे  अठारह  घन्टे  जागते  है  ,   इश्क  में  नही  बल्कि  काम  की  वजह  से  ……  आदमी  की जून  में  होते  हुए  भी  हमको  गधों  से  भी  ज्यादा  काम करना  पड़ता  है  …….   और  अब  तो  ऐसा  लगता  है  की  गधे  भी  मुझसे  हमदर्दी  कर  रहे  होंगे  ……  अब  तो  अगर  कोई  गुस्से  में  या  फिर  बददुआ  के  रूप  में  ही  अगले  जन्म में  गधा  होने  की  गाली  निकले  तो  हमारे  लिए  वोह  भी  शाप  की  बजाय  वरदान  के  समान  होगा …….. 

                                              यहाँ  भारत  में  तो  स्वर्गीय  राजीव  गाँधी  ने  पश्चिम  की  नकल  करते  हुए  नौकरशाही  के  लिए   पांच  दिन  के  कार्यदिवस  और  सप्ताह में  शनिवार  और  रविवार  दो  दिनों  का  अवकाश  घोषित  किया  था  …..  उससे  पहले  सभी  सरकारी  प्राणी  चाहे  अपनी  मनमर्जी  से  काम  करते  थे  ,  लेकिन उनकी  जून  गधे  के  समान  ही  कही  जाती  थी  …….  सभी  लाफिताशाही करने वाले नौकरशाह  कहलाते  चाहे  सरकार  के  जमाई  थे  लेकिन  उनके काम के  घन्टे  किसी  गधे  के  समान  ही  थे  …… अब जब  बेचारों  को  ओवरटाइम  ही  नहीं  मिलता  तो  उन पर  हफ्ते  के  सातों  दिन  काम  का  बोझ  क्यों  …….   इसीलिए  इन सभी को स्वर्गीय राजीव गाँधी को उनके  इस  ऐतहासिक   और  क्रांतिकारी  कदम  के  लिए  उनका  पिंड  दान  करके  आभार  प्रकट  करना  चाहिए ……..

 

                                          अब गधे के मालिकों के सीने पर जलन के मारे सांप लोटेंगे , जब वोह उन बेजुबान और निरीह प्राणियों को बिना काम के पूरे दो दिन ऐश से खाते पीते और आराम करते हुए देखेंगे ….. इधर एक हमारा बिग बॉस है की हमे उसके सामने एक चाय का कप पीते  हुए भी घबराहट होती है ….. कोई अचरज की बात नही होगी कल को अगर यह खबर भी हमको सुनने को मिल जाए की उन दो दिनों में गधों का मन बहलाने के लिए उनको पिकनिक पर ‘जोड़ो’ के रूप में ले  जाया जाए ……. और अगर कोई ऐसा प्रस्ताव रखेगा तो और कोई चाहे न करे लेकिन हम तो  उसका पुरजोर समर्थन करेंगे ….. तथा अगर किसी ने इस प्रकार का प्रस्ताव नहीं रखा तो हम खुद ऐसा प्रस्ताव पूरे जोर शोर से रखेंगे ……. वोह इसलिए क्योंकि हमको अच्छी तरह मालूम है की जिस तरह के हमारे कर्म  है हमको अगला जन्म में गधे की योनि ही मिलेगी ……  और  आप लोग अपना अगला लोक सवांरने में लगे  हो क्योंकि आप यह भली भांति जानते है की आपको आपके उच्च कर्मो के कारण फिर से आगे कोई मनुष्य जन्म ही मिलेगा ……. लेकिन हमे तो यह मालूम है की हमारे कारनामों की वजह से हमको आदमजात की नहीं बल्कि किसी जानवर की योनि ही मिलेगी ….

                                  नया राजकमल शर्मा “गधा”

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इधर  भी गधे  हैं,  उधर भी  गधे  हैं    , जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं

 

गधे  हँस  रहे,  आदमी  रो  रहा  है     , हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है

 

 जवानी  का आलम गधों  के  लिये है   , ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है

 

 ये  दिल्ली,  ये पालम गधों के लिये है   , ये संसार सालम गधों के लिये है

 

 पिलाए  जा  साकी, पिलाए  जा डट के   , तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके

 

 मैं  दुनियां  को  अब  भूलना चाहता    , गधों की तरह झूमना चाहता हूं

 

 घोडों  को  मिलती  नहीं  घास  देखो    , गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो

 

 यहाँ  आदमी  की  कहां  कब बनी  है   , ये दुनियां गधों के लिये ही बनी है

 

 जो गलियों में डोले वो कच्चा  गधा  है   , जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

 

 जो  खेतों  में  दीखे वो फसली गधा  है  , जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

 

 मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं  , नशे की पिनक में कहां बह गया हूं

 

 मुझे  माफ  करना  मैं  भटका हुआ  था , वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था

 

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(यह आदरणीय श्री ओम प्रकाश आदित्य जी की कविता मुझको हमारे ब्लागर साथियों वाहिद कशिवाशी जी और रजिंदर रतूडी जी से प्राप्त हुई है )                

दोस्तों मैंने यह लेख जिस समय लिखा था उस समय इस लेख में वर्णित मंच के दो सदस्य प्रिय राजिंदर रतुरी (जुबली कुमार जी ) और प्रिय वाहिद काशीवासी जी इस मंच से नदारद थे , इसलिए ज्यादातर ब्लागर उस अमी इनके बारे में जानते नहीं थे ….. लेकिन क्योंकि अब यह दोनों महानुभाव इस मंच पर पुनः अपनी -२ तशरीफ़ की टोकरियो सहित आसन जमा चुके है ….. इसलिए आप इनको भली भांति जानते है …..

मुझको यह बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है की न केवल इन्होने खुद को इस मंच पर पुनर्स्थापित किया है बल्कि आज यह दोनों इस मुकाम पर पहुँच गए है की अपने पुनर आगमन के लिए मुझको इनके नाम का सहारा लेना पड़ रहा है …..

                                         यारों का यार          

                                       राजकमल शर्मा

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