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नारी _ हठ !

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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दोस्तों पिछले दिनों ही अखबार के एक कोने में एक खबर पढ़ने को मिली की एक पत्नी अपने पति द्वारा सास और बहु वाला सीरियल ना देखने देने पर इतना कुपित और हताश हो उठी की उसने आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठा लिया ….
यह खबर पढ़ कर यार लोगो का तो भेजा ही फ्राई हो गया …
अब हमने तो अपनी आगामी शादी की दहेज वाली लिस्ट में से टी.वी. पर लाल पेन्सिल से गोल घेरा लगा कर उसको ब्लैक लिस्ट कर दिया है …
ना केवल लिस्ट में से बल्कि अपने दिलोदिमाग से भी उसका ख्वाबोख्याल निकाल फैंका है ….क्योंकि हम तो उस कहावत पर अमल करने वालो में से है की “ना तो नो मन तेल होगा –और ना ही राधा नाचेगी” ….. अब जब ससुराल पक्ष से दहेज में वोह नामुराद शय ही नहीं मिलेगी तो हमारी बेगम उस दूरदर्शन के नजदीक तो क्या दूर से भी दर्शन नहीं कर पाएगी ….क्योंकि अगर हमने उसको दूरदर्शन से दूर रखा , तभी हम उसके पास रह पायेंगे ….
और यह शय तो हमेशा से ही परिवारों को तोड़ने का पावन और पुनीत कार्य समय -२ पर अपने तरीके से करती रही है …..कभी हम सुनते है कि एक स्मार्ट पत्नी ने अपने पति महोदय से यह मांग कर डाली कि हमको तो बस वोह वाली साड़ी ही चाहिए जोकि अमुक सिरिअल में फला नायिका ने पहन रक्खी थी ….जब पति महोदय को उस पूरे शहर में वोह खास साड़ी नहीं मिल पाई तो स्मार्ट पत्नी ने अपने पति को टका सा तलाक दे डाला ….और उस बेचारे को तो जीते जी ही मार डाला इस नामुराद शय ने ….
सच ही कहा गया है नीति शास्त्रों में की औरत का त्रिया चरित्र और नारी हठ कब क्या करा दे कुछ भी कहा नहीं जा सकता ….और औरत का हठ तो शुरू से ही ऐसा रहा है कि जिसके सामने एक आम आदमी की तो बिसात ही क्या …. बड़े -२ राजे – महाराजे और यहाँ तक कि खुद भगवान को भी इनके आगे हार मान लेनी पड़ती है …
उस राजा का किस्सा तो आप सभी जानते ही होंगे कि जिसका अपनी रानी को लाख यह समझाने का भी कोई असर नहीं हुआ था कि वोह उस बेहद अहम राज़ को जानने का हठ छोड़ दे , नहीं तो उसकी जान भी जा सकती है …. और उस नारी को चाहे बाद में अपने महाराज पति की मौत का बहुत ही दुःख हुआ जोकि स्वाभाविक भी था …लेकिन एक बार तो उसने अपनी जिद्द पूरी कर ही ली …फिर चाहे भले ही इस प्रयास में उसके महाराजा पति महाराज की जान चली गई …..
भगवान श्री कृष्ण जी कि दोनों रानियों , रुक्मणी जी और सत्यभामा जी की आपसी तकरार में भगवान को अपनी प्रिय रानी की स्वर्गलोक से परिजात के वृक्ष को लाने की इच्छा को पूरा करने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ा था ….
और भगवान महादेव जी को भी तो माता पार्वती जी का हठ पूरा करने के लिए विश्वकर्माजी को बुला कर सोने का महल ( लंका ) बनवाना पड़ा था …उन पर भी यह समझाने का कोई असर नहीं हुआ था की हम चाहे कोई भी भवन अपने रहने के लिए बनवा ले , वोह हमारे पास रहने वाला नहीं है ….
और माता सीता जी ने भी तो सब कुछ जानते बूझते हुए भी लक्ष्मण जी को वन में सोने के हिरन के पीछे दोड़ाया था ….जबकि हर कोई जानता है की ना तो कोई सोने का मृग हुआ है , और ना ही हो सकता है ….
हम भगवान के बारे में तो यही कह सकते है की यह उनकी कोई ना कोई लीला होती है …कभी वोह किसी का अहंकार तोड़ने के लिए तो कभी विधि के विधान को सच करने के लिए अपनी माया रच कर माँ शक्ति संग भिन्न -२ लीलाएँ रचा करते है …. लेकिन एक आम नारी के बारे क्या कहा जाए .. उसमे तो साफ तौर पर मानवीय कमजोरी होती ही है … और उस मानवीय कमजोरी को बेचारे मर्द को भुगतना पड़ता है , फिर चाहे वोह कोई आम हो या फिर मेरी तरह खासमखास …
त्रिया चरित्र और नारी हठ का शिकार
एक पीड़ित मर्द

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