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“मेरे हो चुके पिता (सिर्फ एक ) से मेरी होने वाली औलाद अनेक तक”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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दोस्तों पिछले कुछेक दिनों से सारा ही माहौल पितामय हुआ पड़ा था …… सोचा तो यार लोगों ने भी था की जब पिता रूपी भावनाओं से लबालब गंगौत्री बह रही है तो क्यों ना हम भी लगे हाथ उसमे अपने नापाक हाथों को धो ही ले ….. लेकिन आप तो जानते ही है की मैं तो ठहरा निरा कुत्ते की टेढ़ी पूंछ , उल्टा करने + कहने तथा लिखने वाला ….. इसलिए सोचा की जब यह सारा कारवा गुजर जाएगा + गुब्बार बैठ जाएगा तभी हम अपने मन का गुब्बार कुछ इस तरह से निकालेंगे की जमाना देखेगा …..
लगभग सभी की (कुछेक अपवादों को छोड़कर ) अपने आदरणीय तथा पूज्य पिता जी के बारे में श्रद्धा तथा उच्च कोटि की भावनाए होती है , मेरी भी है ….. लेकिन आज मैं सम्पूर्ण हालात को आपके सामने कुछ अलग नजरिए तथा ढंग से पेश करूँगा ……
हम सभी के माता पिता दुनियादारी + परिवारदारी + आपसदारी तथा शायद एक दूसरे के प्रति किसी हद तक प्रेम के कारण आपस में कुछ इस तरह से मिलते है की हम लोगों का उनकी औलाद के रूप में इस दुनिया में आना हो ही जाता है …..
मैं आज आप सभी से पूछता हूँ की क्या हमारे माँ बाप ने हमारे इस दुनिया में आने से पहले हमारे बारे में कुछ सोचा + विचार किया + कुछ प्लान किया ? नहीं ना ! …. हम एक्सीडैंटली किसी हादसे की तरह से इस दुनिया में और उनकी जिंदगी में अनचाहे रूप में आ जाते है …..
कहते है की औलाद के साथ पिछले जन्म का कोई रिश्ता तथा कोई न कोई लेना देना जरूर ही होता है ….. तो जब हम लोग बिना प्लानिंग के हड़बड़ी में बिना सोचे विचारे + भगवान को हमारे लिए कुछ करने का कोई समय दिए बिना इस प्रकार का स्रष्टि सर्जन का अहम कार्य करते है तो उसका नतीजा हमेशा नहीं तो ज्यादातर गलत ही निकलता है ….. वहां पर ऊपर तो शायद बहुत ही लम्बी लाइन लगी पड़ी है हमारे देनदारों की …. तो जो सबसे आगे खड़ा होता है वोह हमारी जल्दबाजी के कारण हमसे समेत ब्याज अपना कर्ज वसूलने के लिए हमारे घर आंगन में हमारी संतान बन कर आ प्रकट हो जाया करता है …..
आज मशीनी युग में मानव की भावनाएं और संवेदनाए कहीं खो गई है + दब गई है + लुप्त प्राय सी हो गई है ….. या तो आपसी सम्बन्ध रूटीन वर्क के तहत या फिर मौज + मजा + मस्ती की भावनाओं में डूबते – उतरते हुए बनाए जाते है ….. तो ऐसी मानसिकता वाले दम्पतियों की औलाद जब बड़ा होकर कहना नहीं मानती है + आँखे दिखाती है + मनमानी तथा मनमर्जी करती है तो फिर सारे का सारा दोष किस्मत तथा भगवान के उपर पर मढ़ दिया जाता है …..
मैं आप सभी से यह प्रार्थना करता हूँ की आप मेरे लिए एक ऐसी अदद लड़की खोजिये जोकि मुझसे शादी के बाद अगर छह नहीं तो कम से कम दो महीने तो ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए हर रोज भगवान से सुबह शाम यह प्रार्थना करे की हे सर्वशक्तिमान प्रभु ! मेरी कोख में महान नहीं तो कम से कम एक औसत दर्जे की उन्नत आत्मा का प्रवेश करवाना , जिस पर आने वाले कल को देश और समाज को हो चाहे ना हो , लेकिन कम से कम हमारे खानदान को जरूर गर्व हो ……
और वैसे भी आजकल की आधुनिक लड़किया धार्मिक प्रवर्ति की औलाद कहाँ चाहती है ….. उनका तो सीधा -२ यही कहना होता है की उन्हें अपनी औलाद के रूप में कोई साधू संत नहीं चाहिए , फिर भले ही उनकी औलाद कल को बड़ी होकर उनके बुढापे में उनको अपनी मेहनत से बनाए हुए घर के एक कोने में लगा दे + किनारे कर दे , या फिर इन्सानियत के और समाजिक रिश्ते नाते तोड़ कर उनको किसी वर्दआश्रम में भिजवा दे या फिर हैवानियत की सारी हदे पार करते हुए धनदौलत के लिए अपने सगे माता –पिता की जान तक लेने में कोई गुरेज न करे …….
लेकिन मैं तो इस बात से डरता हूँ की कहीं मेरी होने वाली पत्नी वोह मुझे ही गलत समझ कर सब्र ना करते हुए कोई ऐसा वैसा गलत कदम ना उठा ले ….. और मैं सही और उन्नत किस्म की औलाद पाने के चक्कर में अपनी बीवी को ही गलत रास्ते पर चलने पर अनजाने में ही मजबूर करके कहीं उसको ही ना बिगाड़ लूँ …..
.इसलिए मैं कुत्ते की पूंछ भी अपने माता पिता के नक्शेकदम पर चलूँगा , और अपने जैसी ही जाहिल और निकम्मी औलाद पैदा करूँगा …. अरे भाई मुझे भी तो अपने देश + दुनिया + समाज और खानदान की परम्परा को निभाना और आगे बढ़ाना है ……
होने वाली नालायक औलाद का जल्दबाज़ पिता
राजकमल शर्मा
*आप सभी विद्वान और विदुषियो तथा मनीषियो से यह अर्ज करता हूँ की मेरे इस लेख को सिर्फ मनोरंजन के तौर पर हलके से ले + किसी भी अनर्थ का अर्थ न करे …..
*मेरे इस लेख में बताए हुए दकियानुसी विचारों तथा उपाओं पर कतई भी अमल न करे , क्योंकि मेरी कथनी और करनी कभी भी एक नहीं रहती , इसलिए मैं खुद भी दिल से नहीं चाहता की इस देश में अच्छे और गुणी नागरिक पैदा हो

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