Menu
blogid : 1662 postid : 816

“यात्रा माता श्री नयना देवी जी की “

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
  • 202 Posts
  • 5655 Comments

https://www.jagran.com/blogs/rajkamal/wp-content/uploads/sites/1662/2011/03/Naina-Devi-Temple-2.jpg

दोस्तों आज मैं आपके साथ महामाई नयना देवी जी की यात्रा की कुछेक यादे सांझा करने चला हूँ ….. वैसे तो मैंने आजतक खलनायक वाले रोल ही किये है जिनको की आपने बेहद पसन्द किया है …..मै उम्मीद करता हूँ की आप मुझ अमरीशपुरी के इस चरित्र रोल को भी पहले की तरह ही पसन्द करेंगे ….. वैसे तो मेरी जिन्दगी कुछ इस तरह से उलझी हुई है की किसी तीर्थ स्थान की तो आप बात ही छोड़ दीजिए , अपने शहर से बाहर किसी रिश्तेदारी में जाना भी बहुत ही मुश्किल लगता है ….. मैं तीर्थ स्थान पर जाने से 24 घन्टे पहले ठोस आहार लेना बंद कर दिया करता हूँ …… क्योंकि देव स्थान की पवित्रता जितनी भी हो सके कायम रखनी चाहिए , ऐसा मैं निजी तौर पर मानता हूँ …….

लेबर के वर्करों और स्टाफ समेत हम कुल मिलाकर 60 – 70 लोग थे ….. एन चलने के वक्त पर दो नवविवाहित जोड़े भी यात्रा में अपनी कामना के पूरा होने की खुशी में माथा टेकने के लिए शामिल हो गए ….. पहले तो मैं उनको साथ में ले जाने के लिए तैयार नही हुआ , लेकिन फिर ठन्डे दिमाग से सोचा की क्या पता माता रानी की किरपा किस रूप में बरस जाए , क्या पता वोह किस रंग में + किस रज़ा में राज़ी है , यह सोच कर हमने उनको भी अपने साथ में ले लिया …… ना केवल माता नयना देवी के बल्कि बाकी की देवियों का भी जय –जयकार करते हुए शाम को पांच बज़े हमारी गाड़ी यात्रा के लिए पटियाला से रवाना हुई ……

अभी मुश्किल से पन्द्रह किलोमीटर ही चले थे की पीछे वाली संगतो ने शौचादि के लिए जबरदस्ती गाड़ी रोकने के लिए कहा ….. ड्राइवर ने जल्दबाजी में थोड़ी सी आगे करके सडक के किनारे गाड़ी को रोक दिया …. इतने में एक वर्दी वाला नशे में धुत पुलिस कर्मी गाड़ी के आगे अपनी मोटर साइकल को लगा कर खड़ा हो गया …. वोह गाड़ी को रात के समय बिना इंडिकेटर चालू किये हुए रोकने पर थाणे में चलने कि धमकी देने लग पड़ा ….. उसकी बातों से घबरा कर सभी उसको थोड़ा बहुत दे दिला कर पीछा छुड़ाने की बात करने लगे ,क्योंकि गलती तो हमारी खुद की ही थी ….

मैंने सोचा की बेटा राजकमल यह तो यात्रा का ‘श्रीगणेश’ ही गलत हो गया ….. मातारानी का नाम लेकर मैंने बातचीत की कमान अपने हाथ में ले ली ….. मैंने उसको समझाया की हम लोग तीर्थ यात्रा पर जा रहे है , सबूत के लिए गाड़ी के आगे लगा बैनर भी टार्च की रौशनी डाल कर दिखलाया ….. तब माता रानी ने उसकी उलटी हो चुकी अक्ल को सीधा किया ….. कहाँ तो वोह पहले हमसे पैसे मांग रहा था , लेकिन अब वोह उल्टा खुद हम लोगों को अपनी दिन भर में इकट्ठी की गई काली कमाई में से सौ रूपये का नौट निकाल कर माता के दरबार में चढ़ाने के लिए दे रहा था …… इस घटना के बाद हमारी श्रद्धा पहले के मुकाबले और भी ज्यादा बढ़ गई थी ….. अब हम सभी लोग दौगुने जोश खरोश से माता रानी का भजन करते हुए और जैकारे लगाते हुए अपनी आगे की यात्रा पर रवाना हो गए ……

रूपनगर से थोड़ा पहले एक ढ़ाबे पर मेरे इलावा सभी लोगों ने रुक कर खाना खाया , जिसमे की पूरा एक घन्टे के करीब लग गया ….. वहां पर हम लोग दो घन्टे आराम करने के बाद आगे की यात्रा तय करते हुए कौला वाले टौबे पर जब पहुंचे तो सुबह के तीन बज चुके थे ….. क्योंकि आगे पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है , आगे जाना खतरे से खाली नही था , इसलिए सभी ने वही पर रुक कर भोर का उजाला फूटने तक का इंतज़ार करना उचित समझा ….. लेकिन मैंने अकेले ने ही वहां पर रुकने की बजाय पैदल ही आगे की यात्रा जारी रखने की ठानी ….. अभी मैंने अति उत्साह में , लगभग दौड़ते हुए पहला मोड़ ही पार किया था की जैसे मेरी अंतरात्मा ने या फिर खुद माता रानी ने मेरे दिमाग में यह बात डाली की दरबार में चढ़ाने वाली भेंट तो मैं गाड़ी में ही छोड़ आया हूँ ….. मैंने उलटे पैर वापिस जाकर गाड़ी में से वोह भेंट उठाई , इसी के साथ दो और लोग भी मेरे साथ आगे की पैदल यात्रा करने के लिए तैयार हो गए …..

जब हम तीनों लोग वहां पर पहुंचे, जहाँ पर से की मैं वापिस हुआ था , यह देख कर मेरे तिरेपन काँप गए की उसके बिलकुल आगे गहरी घाटी थी …… अगर माता रानी मेरे कान में सरगोशी करके मुझको वापिस नहीं बुलाती तो आज ब्लॉग जगत को असहनीय क्षति हो जाती ….. खैर इसके बाद हमने सड़क के बीचो बीच चलने का फैसला किया , और बाद में इसको भी बदलते हुए हमने पहाड़ी वाली साइड के साथ -२ चलते हुए माता रानी का गुणगान करते हुए आगे की तरफ यात्रा बढ़ाई …… मुझको जितनी भी आरतियाँ याद थी वोह सभी मैंने दो बार गा ली थी ….. और जब मेरी सभी आरतियां समाप्त हो गई तो उसी समय हमको माता रानी के भवन पर से लाउडस्पीकर पर बजते हुए भजन सुनाई देने लग गए , और मंदिर की सजावट जगमगाती हुई हमारे मन को रोशन करने लग गई ….. माता रानी के भवन की जगमगाती हुई रोशनियां हम लोगों में बिलकुल उसी तरह उर्जा भर रही थी जैसे की अकबर की शर्त पूरी करते समय नदी के ठन्डे जल में पूरी रात खड़े हुए उस गांववासी को बहुत दूर जगती हुई रौशनी ने उर्जा से भरा था …… आधे रास्ते पर ही सिर्फ एक ही दूकान है चाय की , जहाँ पर की हमने खुद को तरोताजा किया ……

अब कुछ -२ दिन निकलने लगा था ….. लेकिन एक अजीब बात यह हुई की हमको अन्धेरे में तो कोई भी थकावट नहीं हुई , ऐसा लग रहा था जैसे की माता रानी खुद हमारा हाथ पकड़ कर हमको पूरे रास्ते पर मार्गदर्शन करते हुए अपनी छत्र छाया में अपने साथ लेकर आई है …… लेकिन शायद अन्धकार के दूर होते ही माता रानी जैसे लोगों के डर से हमारा साथ छोड़ गई , और हमको बहुत ही शारीरिक थकावट महसूस होने लगी थी ….. लेकिन हमे तो अपने सफर पर आगे ही आगे चलते चले जाना था ….. हमारे पहुँचने के एक घंटा बाद बाकी के हमारे साथी यात्री भी गाड़ी में आन पहुंचे …… माता रानी की एक हजार के करीब सीढियां चढ़ने के बाद हम लोग माता रानी के दरबार में पहुंचे ….. प्रशाद चाहे हमको महंगे रेट पर मिला लेकिन उसको हमने मन्दिर की दूकान से ही खरीदना उचित समझा …..

जब मैं पहली बार गया था तो उस समय माता के दरबार के बिलकुल सामने प्रशासन की तरफ से दो गोरे चिट्टे वर्दीधारी नगीने खड़े थे ….. अब मुझको तो आप जानते ही है , मैं उनकी खूबसूरती में इस कद्र डूब गया की मुझको यह भी ख्याल नही रहा की मैं कहाँ पर खड़ा हू , और मैं यहाँ पर क्या करने आया हू ….. मुझको अपनी तरफ इस तरह ताकते देख कर उनको इतना गुस्सा आया की उनमे से एक ने मेरी बांह पकड़ कर आगे की तरफ खीचा तो दूसरी ने पीछे से ज़ोरदार धक्का धीरे से दिया ….. और मैं पापी माता रानी के दर्शन फिर मन्दिर के बरामदे में चलते हुए टी.वी. पर ही कर सका ….. दोस्तों अगर देखा जाए तो माता रानी के भवन के आगे रूप का मायाजाल अपने चरम पर फैला हुआ रहता है ….. जो उनमे उलझ जाता है उसका हाल मेरी तरह होता है ,और जो उनके आकर्षण में नही फंसते वोह माता रानी का दर्शन और आशीर्वाद पा जाते है …..

अपने पिछले दुखद अनुभव को याद करते हुए इस बार मैंने उन ( नागिनो ) नगीनों की तरफ देखा तक नही , शायद इसी लिए माता रानी के स्वरूप के आत्मिक तृप्ति वाले दर्शन और दीदार हुए ….. मेरे सामने ही एक भक्त ने पुजारी जी से माता रानी के खज़ाने का पैसा माँगा …… लेकिन मैं नादान संकोचवश + अपनी आदतवश नहीं मांग सका …… बरामदे में बैठकर आधे घन्टे की दिमागी कशमकश के बाद मैंने यह फैसला लिया की मैं दुबारा से लाइन में लगकर पुजारी जी से खज़ाने का पैसा जरूर लूँगा …… लेकिन वहां पर जाकर भी मैंने ‘राजकमलिया- हरकत’ कर दी ….. मैंने जानबूझ कर पैसे माता रानी की गोलक में डालने की बजाय पुजारी जी के चरणों में रख दिए ….. पुजारी जी ने मुझको कहा की “बच्चा ! ‘इस माया’ को हमसे दूर रखो , और ‘उस माया’ से तुम खुद को दूर रखो” ….. मैंने पुजारी जी से बहुत सारी हिम्मत जुटा कर खजाने का पैसा मांग लिया …… उसके बाद वोह दोनों नगीना कम नागिने (माता की भक्तिने ) मुझको किसी का पहले से पड़ा हुआ प्रशाद मेरा कह कर मुझको देने लगी …..पहले तो मैंने इनकार किया , लेकिन फिर भूल सुधार करते हुए उसको माता रानी का खास आशीर्वाद समझ कर , अपना कहकर स्वीकार कर लिया …..

वापसी में ऐसी कोई विशेष बात नही हुई , जिसके लिए मैं आपका कीमती समय खराब करूँ , बस हम सभी माता रानी का दर्शन + दीदार करके उस जगत जननी का आशीर्वाद लेकर लौट कर बुद्धू घर को आये ….

इस यात्रा वर्तान्त को पढ़ने वालों को भी माता रानी की भरपूर किरपा और ममतामयी स्नेह रूपी आशीर्वाद मिले ……

बोलो माता नयना देवी जी की …… जय + बोलो लाटा वाली माता जी की ………जय

बोलो पहाडो वाली माता जी की ………जय + बोलो शेरा वाली माता जी की ……….जय

बोलो जगदिया जोता वाली माता की …जय + बोलो सच्चे दरबार की सदा ही ………जय

बोलो माता रानी के नो स्वरूपों और सभी हो चुके तथा होने वाले अवतारों की जय

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh