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रचना की लाश मेरे सामने ही सफ़ेद कफ़न में लिपटी हुई पड़ी थी ….और मेरा जी तो यह चाह रहा था की सारी उम्र उस के सीने पे अपना सर रख के यूं ही आंसू बहाता रहूँ ….वेसे भी उस का मुझ पर एक ना चुकाया जा सकने वाला क़र्ज़ है ….क्योंकि उसने अपने जीते जी कभी भी मेरे लबो को सूखने नहीं दिया ..हमेशा गीला ही रखा …तो अब उसकी मौत के बाद मेरा भी तो यह फ़र्ज़ बनता है की में अपनी आँखों के आंसुओ को कभी सूखने न दू …उनको हमेशा गीला ही रखूं ……
आपने देखा ही होगा की जैसा की आमतौर पर ऐसे हालात में होता है…सभी को अपने काम धंदे की पड़ी होती है …किसी को किसी के दुःख से कोई भी मतलब नहीं होता ….सभी लोग जोर दे रहे थे की रचना का अंतिम संस्कार जल्द से जल्द कर दिया जाए ….उनमे से सबसे आगे थे …सभी रचना नाम की २२ से ५० साल तक की औरते …और उन के समर्थन में कंधे से कंधा मिला कर खड़े थे हमारे श्री अरविन्द पारिख जी ….तो उन सभी ने आपस में सलाह मशविरा कर के अपनी नेता के तौर पर सीमा जी को हमारे पास इस काम को अंजाम देने और अफ़सोस प्रकट करने के लिए भेजा ….
हम तो गमजदा थे और गुमसुम से बेठे थे ….उन्होंने आते ही सबसे पहले तो हमारी तारीफ के पुल बांधे की हमने रचना के जीते जी उसका बहुत ही ख्याल रखा…हम आँखे बंद कर उनकी की हुई तारीफ़ का आनंद ठीक ले भी न पाए थे की अचानक ही उन्होंने अपने दोनों ७ नम्बर के सेंडिल उतार के पानी की भरी हुई बाल्टी में से अच्छी तरह से भिगो कर ताबडतोड़ हम पर बरसाने शुरू कर दिए …..हमारा तो जो हाल हुआ सो हुआ ..उसका हमें गम नहीं …असली दुःख तो इस बात का है की अपनी रचना पर जो भी हमने लिख कर डायरी में रखा था …उस डायरी के भी पुर्जे -२ कर दिए …..अब हम रह गए हक्के –बक्के …दर्द से चीखे और चिल्लाये …..हमारी करुण पुकार सुन कर हमारे कुछ मित्रगण हमें बचाने दौड़े चले आये ….अब तो सीमा जी के होश ठिकाने आये ….वोह खूब पछताए की क्यों किसी के बहकावे में आकर जोश में आकर उन्होंने यह सभी कदम उठाये….
मैं तो सभी को ही पहले से कई बार सावधान कर चूका हूँ की मुझको कमेंट्स का कोई लालच नहीं है …..अब जो बहुत ही ज्यादा समझदार है वोह तो मुझको पढ़ने की गलती ही नहीं करते है ….जो उनसे थोड़ा कम समझदार है वोह मुझको पड़ते तो है ..लेकिन बिना कमेन्ट किये ही पतली गली से निकल जाते है …क्योंकि उनको मेरी फितरत का अच्छी तरह पता है की मैं कितनी कुत्ती चीज हूँ …जिसका कोई भरौसा नहीं कब और कहा पर किसी को काट ले ….लेकिन कुछेक सीमा जी की तरह आ बैल मुझको मार वाली गलती किसी के बहकावे में आकर कर जाते है …. खैर करुणा तो नारियो में कूट -२ कर भरी होती है …उन्होंने भी अपनी करुणा दिखाई …झट से अपने बड़े से जालिमलोशन वाले बाम के ड्रम का ढक्कन खुलवा कर मुझ ज़ालिम के जख्मो पर लगाना शुरू कर दिया ….अब वोह पछतावे की आग में जलती हुई मुझको जोश दिलाने लगी …हिम्मत न हारने की और फिर से लिखने की ……
अब यही पर उनसे सी. पी. ऍम. वाली हिमालियाई गलती हो गई ……अगर वोह मुझको इस मंच पर रुकने को न कहती मेने तो यक़ीनन चला ही जाना था ….और उनका रास्ता साफ हो जाना था …फिर वोह लेडी प्रधान मंत्री बन कर सवर्गीय इन्द्रा गाँधी की तरह सारी जागरण की जनता पर जूते की नोक पर राज़ करती ….लेकिन अफ़सोस की वोह इस ऐतहासिक मौके को भुना नहीं पाई …..
खैर सभी की भावनायों की कद्र करते हुए हमने अपनी प्राणों से भी प्यारी रचना का जनाज़ा उठवाया …..और हम सभी स्वर्गधाम आश्रम पहुँच गए …वहाँ पर भी सभी को अपने -२ घर जाने की जल्दी थी ….अभी रचना पर डाली हुई लकडिया जलने भी न पाई थी लोगो ने अपने -२ घरों को जाना शुरू कर दिया था ….वोह जो की सारी जिंदगी मुझको गीली लकड़ी की तरह जलाती रही ….वोह खुद कहाँ इतनी जल्दी जल जाती ….उस पर दुबारा से और लकडिया डाली गयी …मेरे अज़ीज़ चातक जी + निखिल जी + राज जी + परशांत जी और सीमा जी ही आखिर तक वहाँ पर मेरे साथ खड़े रहे …लेकिन उनका मकसद मेरे गम में शरीक होना ही नहीं था …बल्कि वोह नहीं चाहते थे की मैं रचना की चिता में उस के साथ ही जल कर सता { सत्ती का सता } हो जाऊं…
शौलो के बुझने पर वोह सभी तो चले गए ….और मैं रह गया वहाँ पर अकेला …अपनी रचना से बाते करने के लिए ….में सोचने लग गया की अब से हर हफ्ते मैं यहाँ पर जरुर आया करूँगा ….यहाँ पर अपनी रचना की याद में कम से कम एक पेड़ ज़रूर लगाऊंगा ….और किसी जंगल से भी भयानक इस शमशान को अपने श्रमदान द्वारा जंगल से मंगल में तब्दील कर दूँगा ….
ऐसा इस लिए नहीं की मेरी रचना का अंतिम संस्कार यहाँ पर हुआ था …बल्कि इसलिए की हम सभी की सोच ही उलटी है …हम लोग सोचते है की जो भी मरता है ..उसको साथ के साथ ही स्वर्ग या नर्क का टिकट थमा दिया जायेगा …अब मेरे जेसे लोग भी है ..जिसने की इस मंच पर सभी की टांग खिचाई जेसे जघन्य अपराध किये है …और भविष्य में भी ना जाने और कितने पाप करने है …..उसको किसी लोक में जाने से पहले ना जाने कितना भटकना पड़ेगा ….तो मुझ जेसे त्रिशंकु को उस खास समय में रहने के लिए कोई ढंग का ठिकाना तो चाहिए ही …कितनी हेरानी की बात है की हम दुनिआवी घर को तो बनाते + सवांरते और सजाते है ..लेकिन उस आखरी घर की तो छोड़ ही दे ..उस से पहले वाले अस्थाई घर की सवांरने के बारे में बिलकुल ही नहीं सोचते है ….
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