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“इसे खुशी मानू की गम”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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दोस्तों आज मुझको आप सभी को यह बात बहत ही दुःख से बतानी पड़ रही है की हमारे ब्लोगर साथी राजकमल जी की जान को जिन्दगी भर के लिए एक दुःख लगा है ……. आज से करीब बीस दिन पहले उस मरदूद की शादी हो गई है …… किस्मत का अजब खेल देखिए की हम सभी को हँसाने की कोशिश करने वाला राजकमल अब खुद ही खुशियों से महरूम होकर रह गया है …..अपनी व्यस्तता के कारण उन्होंने अपना नया लेख मेरे द्वारा इस मंच पर आप सभी की सेवा में भेजा है ……तो अब मैं आप दोनों पक्षों के बीच में से हटते हुए उन्ही के शब्दों में यह रचना ज्यों की त्यों प्रस्तुत करता हूँ :- शादी की पहली रात को ही हमने ( कुत्ती चीज ने ) अपनी नई नवेली पत्नी से मज़ाक -२ में ही पूछ लिया की शादी से पहले के तुम्हारे मेरे सिवा और कितने दीवाने है …… उस नवयोवना ने मुस्कराते और इठलाते हुए फरमाया कि ‘आप वोह बात क्यों पूछते है , जो बताने के काबिल नही है …… मेरे दीवानों की लिस्ट है बहुत ही लम्बी और यह रात है बहुत ही छोटी …… क्यों नाहक ही मेरा और खुद का मूड तथा इस हसीन रात को खराब करते हो …… जिस काम के लिए यह रात बनी है क्यों नही वोह काम करते हो ….. यह सब सुन कर अपुन का तो भेजा चकराया …… लगा कि किसी ने कानों के पास जैसे कोई परमाणु बम है चलाया …… लेकिन फिर अपनी बात को खुद ही संभालते हुए वोह मोहतरमा बोली कि “सबको ठुकरा कर हमने तुमको अपनाया है , तुम भी भूल जायो जैसे मैंने सुखद भविष्य के लिए अपना दुखद अतीत भुलाया है ….. दोस्तों वोह कहते है ना की सफल गृहस्थी का यह पहला नियम है की एक ने कही और दूसरे ने मानी वाली कहावत पर पूरा अमल करते हुए हमने उसको माफ़ी दे डाली …..
अगले दिन से तीनों समय लगातार सात दिन तक हमको खाने के लिए बैगन की सब्जी मिलती रही …..एक बार जब मैंने सब्जी में आलू छोड़ कर जल्दी -२ से बैगन खा लिए की आलू बाद में खाऊंगा , तब उस नामुराद ने झट से मेरी कटोरी में सिर्फ बैंगन डाल दिए …… अब तो मैंने अपना सिर पिट लिया कि अरी भाग्यवान ! मुझको तो यह बैंगन की सब्जी पसन्द ही नहीं है इसलिए मैंने पहले इसको किसी तरह खत्म किया था , लेकिन तुमने तो उल्टा इसको फिर से भर दिया …… वोह बोली कि मैंने तो यह समझा की यह आपको बहुत ज्यादा पसन्द है इसलिए आप इसको पहले ज़ल्दी -२ से खत्म कर रहे हो ……
इसके बाद वोह मुर्ख बोली की “अजी सुनते हो आज घर में बनाने के लिए बैगन बिलकुल नही है, शाम को आते हुए बैगन ले आना …… अब तो मेरा पारा हाई हो गया , मैंने कुछ गुस्से में कहा कि तुमको किसने बताया है कि बैगन हमारी ‘खानदानी-सब्जी’ है …… तुम इतने दिनों से मुझको इसको खिला रही हो , क्या तुम्हारे बाप ने आते समय दहेज में सिर्फ यह सब्जी ही दी थी …… वैसे तो तुम्हारा बाप कहता था कि हम लोग बहुत ही गरीब है ……. और अब यह बैगन की सब्जी जोकि पेन कार्ड वालों को ही मिलती है …….. मुझ गरीब की जोरू और आप सभी की भाभी तपाक से बोली की मेरे पिता जी ने सच ही बोला था , यह सब्जी उन्होंने नहीं बल्कि तुम्हारी ब्लोगर बहन दिव्या ठेले पर लदवा कर दे गई थी …….
अब तो मेरा पारा आसमान को छूने लगा था , मैंने कहा कि वैसे भी तेरा बाप दहेज देना तो दूर कि बात है , तुमको सिर्फ तीन कपड़ो में विदा करने वाला था ….. तुम सारे का सारा खानदान साला लकीर का फकीर , अगर तेरे बाप के भरौसे बैठा रहता तो तू अभी तक घर में ही बैठी रहती ….. ससुरा कहता था की हमने तो लड़की को सिर्फ तीन कपड़ो में ही विदा करने की बात की थी और उससे किसी भी हालत में मुकरेंगे नही …… उस घनचक्कर को यह भी पता नही था की तीन कपड़ो वाला नियम तब बना था जबकि इन्सान जंगल में रहता था , लेकिन अब तो वोह मंगल पर पहुँच चूका है …… वोह तो भला हो हमारे ब्लोगर साथियों आदरणीय शाही जी + मिश्रा और वाजपाई जी का जिन्होंने की तीन कपड़े और अपनी बहु को दिए , जिनकी बदौलत हम उस आफत की पुड़िया को अपनी मान्द में ले कर आने में सफल हुए ……
कमबख्त ऐसी बेशर्म कम मुर्ख है की अपनी सास से पूछने लगी की मांजी नया बच्चा इस दुनिया में कितने महीनों में आता है …… मुझ मजाक चंद की माँ ने भी मज़ाक में कहा की बेटी औरो का तो मुझको मालूम नहीं लेकिन हमारे खानदान में तो सिर्फ नो महीनों में ही नया बच्चा इस संसार में अपनी आँखे खोल पाता है …… उस कलमुंही ने मेरी माँ से कहा की मांजी आप भी कैसी दकियानूसी बाते करती है ….. अब जब मैं आ गई हूँ तो इस बार आपको अपनी वोह पुरानी रिवायते बदलनी ही होगी ….. आपको यह जानकर बेहद खुशी होगी की इस बार आपके खानदान में नया बच्चा सिर्फ छठे महीने में आने वाला है ……
दोस्तों रब्ब -२ करके ‘हमारा’ वोह नोनिहाल भी इस दुनिया में आ ही गया ……. ऐसा लगता था की जैसे वोह अपनी माँ यानी की आफत की परकाला पर गया है …… आप तो बेगम मजे से टाँगे पसार कर सोती रहती है , और ‘हमारे सांझे बच्चे’ को सारी सारी रात को जाग कर मुझको बहलाना पड़ता है …… लेकिन एक दिन तो हद ही हो गई , जब साहिबज़ादे किसी भी तरीके से चुप ही नही हुए तो मैंने बेहद तंग आकर मज़े से सो रही उस हुस्न परी को झिंझोड कर जगाते हुए कहा की “बेटे को चुप कराने में मेरी कुछ तो मदद करो जानू , आखिरकार यह आधा बेटा तुम्हारा भी तो है” …… वोह भला कहाँ उठने वाली थी , अपने सुरमई नशीले नैनों को बिना खोले ही बोली की “मेरे वाला आधा तो चुप है केवल तुम्हारे वाला आधा ही रो रहा है , अब तुम जानो और तुम्हारा काम ……
दोस्तों शादी के बाद कुछ इस तरह हमारी जिन्दगी बसर हो रही है …… इसलिए अगर आप से कभीकभार मिल ना पाऊं तो मेरी मजबूरी को समझकर माफ करते हुए एडजस्ट कर लेना …..
तो दोस्तों यह थी हमारे ब्लोगर साथी राजकमल की दुःख भरी दास्तान ….. आइये इस दुःख की बेला में उनके प्रति अपनी सहानभूति प्रकट करने के लिए कम से कम दो मिनट का खड़े होकर मौन धारण करे …….
एक अनाम ब्लोगर

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