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“उनके बचपन की यादें”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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अभी कुछेक दिन पहले इस मंच की आदरणीय ब्लोगर प्रियांका जी से मैंने उनके एक साल के नटखट मुन्ने की शैतानियों के बारे में लेख लिखने की बात की तो उन्होंने यह कहते हुए सिरे से ही इन्कार कर दिया की इसमें ऐसी क्या खास बात है , सभी बच्चे अपने बचपन में ऐसी चुलबुली हरकते करते ही है ….. लेकिन मुझ कुत्ती चीज का मन नहीं माना तो सोचा की अगर वोह अपने अनोखे बच्चे की बाते नहीं बताती है तो क्या हुआ , मैं आपसे अपने बचपन की यादें ही साँझा कर लूँ …… इसका कारण यह कतई नहीं की मैं कोई इतिहास पुरुष बनने जा रहा हूँ या फिर मैं कोई बड़ा या फिर कोई महत्वपूर्ण बच्चा हूँ …. बल्कि इसका जलेबी जैसा सीधा- साधा सा कारण यह है की अपने बचपन की यादों के सहारे मैं आप लोगो को आपकी भूली हुई यादो को याद दिलाना चाहता हूँ ….ताकि आप भी मेरे साथ यह परौडी गाने लग जाए
“भूली हुई यादों , मुझे इतना अब सताओ ,
अब बैचेन कर दो मुझे , मेरे पास आ जाओ”

मेरी मां की सारी रात छत पर मुझको अपने कन्धे से लगा कर नाईट- वाक करते हुए गुजरती थी ….. वोह बेचारी न तो बैठ सकती थी , न ही एक जगह रुक कर खड़ी होकर पल दो पल के लिए आराम कर सकती थी , न ही थक जाने पर एक कन्धे से हटा कर दूसरे कन्धे से लगा सकती थी क्योंकि ऐसा करने पर मैं चीख -२ कर ना केवल सारा मोहल्ला सिर पर उठा लेता था , बल्कि सातवे आसमान पर छुप कर सो रहे भगवान को भी उसकी नींद से जगा देता था ….. पड़ोसी तो यहाँ तक कहते थे की अगर हमारे घर में ऐसा बच्चा जन्म लेता तो हम उसको गली में पटक देते , या फिर गला घोंट कर मार देते , आप पता नहीं कैसे इसको बर्दाश्त करते हो …… लेकिन उन मनहूसों को क्या मालूम था की यही वोह दीदावर है जिसके लिए ही नर्गिस हजारों साल अपनी बेनूरी पर रोती थी ….
एक बात जो कि ज्यादातर बच्चों में आम होती है वोह मुझमे भी थी की हवा ख़ारिज होने पर उसकी गगनभेदी आवाज से डर कर खुद के ही सिर के बाल पकड़ कर जोर -२ से रोने लग जाना ….
थोड़ा बड़ा होने पर गली में एक गोलगप्पे की फेरी लगाने वाले के आने से पहले मुझको सिर्फ दस पैसे का सिक्का ही चाहिए होता था , चव्वनी + अठन्नी या फिर रुपया मिलने पर उसको नाली में फैंक आता था की इसके ‘गप्पे’ नहीं है आते ….. अगर कुछेक सेकंड्स के निर्धारित समय के भीतर ही तत्काल सर्विस के तहत दस पैसे का सिक्का नहीं मिलता तो सामने जो भी सामान आये उसका किर्याकर्म हो जाता था फिर चाहे वोह किसी का गिफ्ट किया हुआ विदेशी लेमन सेट ही क्यों न हो ….. पता नहीं मैं अपने पिछले जन्म में औरत जाति से सम्बंधित था , शायद इसी कारण मुझको बड़ा डोंगा भर कर चटनी वाला पानी चाहिए होता था ….. एक बार जब (गोल) गप्पे वाले ने दुखी हो कर थोड़ा सा ही पानी दिया तो मैंने उसको अपने “शिवाम्बु” से (डोंगे को) पूरा भर लिया था ….. मेरी माँ ने यह देख कर सारा शिवाम्बु वाला पानी गिरा दिया तथा गप्पे वाले ने अपनी गलती मानते हुए फ्री में न केवल उस दिन डोंगा भरा बल्कि आगे से हर रोज भरने लगा …. मेरा बचपन का यह राजकमलिया लक्षण मुझ होनहार बिरवान को मोरारजी देसाई जैसे प्रधानमंत्री के समकक्ष बनाता था ….. हम दोनों में बस इतना ही फर्क था की वोह उसको फिल्टर करके पीते थे और मैं उसको उसके ‘शुद्ध रूप’ में ही ग्रहण करता था ….
थोड़ा सा बड़ा होने पर मेरे माता पिता मुझको अपने साथ सैर पर ले जाने लगे ….. पहले ही दिन एक छड़ी के सहारे चल रहे बजुर्ग से मैंने कहा की “बाबा जी” ! उसने कोई उत्तर नहीं दिया तो मैंने फिर कहा की “बाबा” ! ….. लेकिन जब उसने तब भी कोई उत्तर नहीं दिया तो इस जन्मजात कुत्ती चीज ने कहा “ओए बाबे” ! ….. अब बाबा जी भी बोल पड़े की ‘हांजी पुत्तर जी’ ….. तब मैंने डाट पिला रहे अपने मां – बाप को कहा कि देखा अब जवाब दिया है जब ‘ओए बाबे’ कहा है तो ….. उसके बाद मैंने उसको एक गाना सुनाया :-
“बाबा ओए कला मरोड़ नि निक्किये ला दे जोर
धक्का लांदी नू साह चढ़ गया उत्तो गेयर गड्डी दा अड़ गया”
बस बाबा जी मेरी तोतली जुबान में यह दो लाइने सुन कर गदगद हो गए और गुस्सा होने की बजाय ढ़ेर सारे आशीर्वाद दे डाले …..
वोह कहते है न की पूत के पाँव पालने में ही दिखलाई पड़ जाते है यानि की होनहार बिरवान के होत चिकने -२ पात ….. आज आप लोगो को इस मंच पर मुझ नाचीज के जो चिकने पात दिखाई दे रहे है उसके लक्षण तो बचपन में ही दिखलाई देने लग पड़े थे , हाँ यह अलग बात है की आजकल तो भगवान जी सभी बच्चों को चिकने पात से लैस करके ही इस धरती पर भेजते है शायद ही कोई अभागा बच्चा पैदा होता होगा जिसके की पात खुरदुरे होते होंगे ….
एक बार हमारी कलोनी की औरत मेरी माता श्री से लड़ने झगड़ने आ गई की बहिन जी आप के बिट्टू ने मेरे सन्नी को गड्ढे में गिरा दिया है …. मेरी मां के लाख मना करने + समझाने पर + भगवान की कसम खाने पर भी उसको विश्वाश नहीं आया बल्कि इसकी बजाय मेरे पिता जी की उस ‘हसीन पड़ोसन’ ने मेरी मां पर मेरी तरफदारी करने और गुनाह पर पर्दा डालने तथा घर में छुपाने का इलज़ाम लगा दिया …. लेकिन जब मेरी माँ ने घर उसको घर के अन्दर बुलाकर 102 डिग्री बुखार से तप रहे अपने तथाकथित बिट्टू को दिखलाया तब कहीं जा कर उस खिसिआनी बिल्ली को विश्वाश आया , और यह कहते हुए उसने अपने घर की राह पकड़ ली की बहिन जी मेरी आँखों को ही धोखा हुआ होगा …. यह वाकया इस बात का गवाह है की बदनामी वाला नाम हमारी किस्मत में शुरू से ही जुड़ा रहा है … (मेरे बिट्टू नाम की कहानी जानने के लिए मेरा पिछला ‘उपन्यास’ “नाम का फंडा” देखे )
और जब स्कुल जाने का समय आया तो जहाँ दूसरे बच्चे स्कुल जाने के नाम से डरते थे , मैं आंधी तूफान में भी जिद्द करके स्कुल जाता था और मेरे माता पिता को आंधी तूफान में भी मुझको स्कुल में छोड़ कर आना पड़ता था …..
मेरे पिता जी के पास एक लेबर वाला बेचारा समाना शहर से लगभग 25 किलोमीटर साइकल चलाकर आता था ….. उस को आराम देने के मकसद से मेरे पिता जी ने उसकी डयूटी में हम दोनों भाईओं को स्कुल छोड़ने और ले जाने जाना शामिल कर दिया …. एक बार वोह बाकि के साथियों के साथ काम कर रहा था की एक जहरीला सांप बाकि के आदमियों को छोड़कर सिर्फ उसी के पीछे पड़ गया ….. उस जहरीले सांप को बाकि के लोगों ने मिलकर चाहे लगभग अधमरा सा कर दिया था , लेकिन सांप द्वारा बुरी तरह पीछे पड़ जाने से शिव के मन में कहीं गहरे से डर बैठ गया था ….. इसलिए मेरे पिता जी ने उसको उसी समय घर चले जाने की इज़ाजत दे दी ….. वोह बेचारा अपनी साइकल उठा कर घर की तरफ चल दिया ….. एक कहावत आपने सुनी होगी की “जाको राखे साइयां मार सके न कोय” ….. लेकिन यहाँ पर तो बिलकुल इसके उल्टा हो रहा था ….. इसे कुदरत का दुखद करिश्मा कहिए या फिर मौत यानी काल का खतरनाक खेल कि उस अधमरे हुए सांप को एक चील उठा कर ले गई तथा उसको कुछ इस प्रकार गिराया कि वोह सीधा अपने घर कि तरफ साइकल पर जा रहे शिव के गले में जाकर गिरा , और उस आयातित मौत रूपी जहरीले अधमरे सांप के काट लेने पर तुरन्त ही शिव कि मौत हो गई ….. उसके साथ हर रोज स्कुल आने जाने के कारण उससे कुछ विशेष लगाव हो जाने के कारण उसकी मौत ने मेरे बालमन पर बहुत गहरा असर डाला था …..
स्कुल में दूसरी कक्षा में प्रार्थना के समय से पहले , ग्राउन्ड में दो लड़किया जो की पांचवी कक्षा में पड़ती थी (तरुण और पूनम) वोह जब मैडम को स्वेटर दे रही थी बस तभी मुझ अबोध बालक को उन दोनों से हकीकी इश्क हो गया ….. कहाँ तो लोगो को जवानी में बड़ी मुश्किल से किसी एक से इश्क होता है वहीँ पर मुझको बालपन में ही एक नहीं बल्कि दो -२ बला की खूबसूरत विष- कन्यायो से प्यार हो गया था ….. शायद तब मेरी समझ भी इतनी विकसित नहीं थी , लेकिन इसको सिर्फ अच्छा लगना भी नहीं कह सकते थे , बस वोह प्यार के नरम + नाज़ुक और कोमल एह्सास थे जिन पर की आज भी सोच कर खुद पे ही हंसी आती है …. आप मेरे पहले राजदार है जिनसे मैंने यह राज की बाते सांझी की है , और मेरी आप सभी से यह गुजारिश है की इनको राज ही रखना – किसी और को बता कर राजफाश मत करना ….. अगर आपके पड़ोस में कोई बाल बच्चे वाली तरुण + पूनम नाम की लड़की रहती है तो उस पर शक मत करना क्योंकि वोह बेचारिया तो मेरे एकतरफा प्रेम की बाबत जानती भी नहीं थी ……
अच्छा तो अब चलता हूँ इजाजत दीजिए मुझको , बाकि बाते अगले जन्म में , जब में दुबारा से जन्म लेकर फिर कोई ऐसी या वैसी हरकत करूँगा ….
तब तक के लिए GOOD BYE
दो जुड़वाँ बहनों (तरुण +पूनम) के मस्त -२ चार नयनों कि शराब पीने वाला सिर्फ एक
राजकमल शर्मा (शराबी)
नोट :- इस लेख को आप सभी के लिए मज़ेदार बनाने के उद्देश्य से मैंने थोड़ी सी बेईमानी की है – अपने खुद के और मेरे भाई के , दोनों के ही बचपन की , यादे सिर्फ अपने नाम से बताई है , इसीलिए इस लेख का शीर्षक “उनके बचपन की यादें” रखा है….

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