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“हमारा वोह यादगारी “वैलेन्टाइन – डे”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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दोस्तों पूरे एक साल के इंतज़ार के बाद आज यह प्रेम का प्रतीक दिन यानी की “वैलेन्टाइन – डे” आया तो एक दिन पहले हमारी सारी की सारी रात इन क्ल्पनाऑ में विचरते हुए गुजरी की कल जब उनके नर्मो- नाज़ुक मरमरी हाथों में गुलाब का फूल थमाऊंगा तो उनका एक्शन + रिएक्शन क्या होगा ?…….
खैर हम अपने गुलाब के फूल वाले हाथ को पीछे किये हुए उनकी गली के मोड़ पर उनका इंतज़ार करते रहे , सुबह से शाम होने को आई , मगर उस ज़ालिम को न आना था न ही वोह आई …… भूख प्यास के मारे हमारा बुरा हाल था , सारा दिन खड़े रहकर हमारी टाँगे भी अब दुखने लगी थी …… यह बात दीगर है की उनका इंतज़ार करने की हमको पुरानी आदत है …. लेकिन तब की बात और थी , तब उनका दीदार देर सबेर को हो ही जाता था और उनके दर्शन और दीदार करके हमारी न केवल सारी थकान दूर हो जाया करती थी बल्कि अंग प्रत्यंग में एक नयी चेतना का संचार भी हुआ करता था ……
लेकिन आज हमारी आस को फल नहीं लगा था और हमारे हाथ में छुपा कर रखा हुआ वोह गुलाब का फूल भी मुरझाने लगा था ….. थक हार के बेहद ही निराशा में हमने अपने घर की राह पकड़ी …. लेकिन थोड़ी दूर पर जो सब्जी मंडी थी उस पर नजर पड़ते ही मुझ धरती धकेल के इस खुराफाती दिमाग में एक धड़ाम धकेल आइडिया बिजली की तरह कौंधा ….. सोचा बेटा राजकमल क्या तू इतना कायर है ?…. अगर आज का दिन यूँ ही बेकार निकल गया तो अगले साल प्रजा तो पता नही किस राजा की होगी , लेकिन इतना जरूर मालूम है की वोह किसी और साजन की सजनी जरूर होगी ….. आज जैसा मौका फिर कभी जिंदगी में शायद ही कभी मिले तुझको ….. जा बेटा चढ़ जा सूली पर , राम भली करेंगे …… कुछ और नहीं तो इश्क में शहीद होने वालो की लिस्ट में सुनहरे अक्षरों में तुम्हारा नाम तो दर्ज हो ही जाएगा ….
खैर हमने अपना जिगरा पहाड़ जैसा करके उनके घर पर पहुँच कर धड़कते हुए दिल से कालबैल बजा ही दी ….. थोड़े से इंतज़ार के बाद दरवाजा खुलने पर उनके पिताश्री को अपने सामने देख कर हम हकलाते हुए कुछ कहने को ही थे की हमारी आशा के विपरीत उस बढ़ऊ ने खुद ही एक और हटते हुए , यह कहते हुए हमको अंदर आने का रास्ता दे दिया की बेटा ! राजकमल, अंदर आ जाओ ….. फिर अपनी पत्नी से बोले की “देखो भाग्यवान ! तुमने जो सब्जी मँगवाई थी उसको यह भलामानुष ले आया है ….. उनकी पत्नी ने पहले तो यही कहना चाहा की मैंने कब कुछ किसी से मंगवाया था , लेकिन पहले अपनी पति की आँखों की तरफ और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा की बेटा ! अब जब आ ही गए हो तो चाय पीकर ही जाना ….. डरते झिझकते मैं उनके ड्राइंगरूम में ‘उसके’ पिता के सामने बैठ गया …..
उसके पिता जी ने बातों ही बातों में मेरी इंटरव्यू लेनी शुरू कर दी ……
बाप :- अच्छा बेटा यह तो बताओ की तुम काम क्या करते हो ?
राजकमल :- जी मैं तो बस ब्लागिंग किया करता हूँ ….. अभी -२ एक प्रतियोगिता में भाग लिया है …. मुझको खुद पर तो विश्वाश नही है लेकिन साथियों को मुझ पर कुछ -२ आस है की शायद कोई इनाम विनाम मिल जाए …..
बाप :- अच्छा इनाम में क्या मिलने वाला है ?
राजकमल :- यह तो अभी तक ‘राज’ ही है ….. लेकिन अगर कोई छोटा मोटा इनाम भी मिल गया तो शायद खुद को ‘किसी के काबिल’ समझ सकूं और दुनिया की नजर में अपनी भी कोई इज्जत हो जाए ….
बाप :- कुछ तल्खी से बोला की बेटा की सीधे -२ क्यों नहीं कहते की तुम अभी तक ‘बेकार कम बेरोजगार’ हो …..
राजकमल :- सकपका कर , जी ऐसी बात नहीं है , अगर यह वाला इनाम नहीं निकला तो क्या हुआ ? मैंने पंजाब सरकार की मासिक बम्पर वाली लाटरी डाल राखी है …. मुझे अपने भगवान पर पूरा भरौसा है की वोह मेरा कोई न कोई इनाम तो जरूर ही निकालेगा ….. और अगर कोई भी इनाम नहीं मिला + नहीं निकला तो भी कोई गम नहीं है यार लोगो को ….. वोह ‘उपर वाला भगवान’ अपने असर रसूख से किसी न किसी जगह पर मेरी नोकरी तो लगवा ही देगा ….
बाप :- बेटा तुम्हारे रहने और खाने-पीने का क्या इंतजाम है ?
राजकमल :-जी मैं फिलहाल तो अपने दोस्त पियूष के एक फालतू के मकान में रहता हूँ ….. अगर कुछ किसी से मिल जाए तो खा लेता हूँ ….लेकिन मुझको पूरा विश्वाश है की भगवान एक न एक दिन मेरी जरूर सुनेंगे …. और मेरे लिए एक छोटे या बड़े अदद मकान का बन्दोबस्त जरूर करेगे …. जहाँ तक खाने – पीने का सवाल का सवाल है , उसके बारे में भी अब भगवान को ही सोचना है क्योंकि मैं अपनी सारी चिंताए भगवान के उपर ही छोड़ चूका हूँ …..
इतनी देर में उनकी बीवी चाय की ट्रे के साथ पधारी ….. मियां बीवी में आँखों ही आँखों में कुछेक इशारे और बाते हुई ….. जिनको की मैं इस खेल का पुराना खिलाड़ी होने के कारण कुछ -२ समझ गया था …. उसने कमरे में घुसते ही मेरे द्वारा कही गई आखरी लाइन शायद सुन ली थी …. इसलिए अपने पति से पूछने लगी की राजकमल क्या कह रहा था …… उनके पतिदेव बोले की कुछ खास नहीं कहा इसने , यह बेचारा तो मुझको अपना भगवान समझ कर अपने दुःख और तकलीफे बता रहा था ……
तो दोस्तों इस प्रकार हम उस गोभी के फूल की बदोलत घर जमाई बन गए ….. जो काम आज से पहले किसी गुलाब के फूल ने नहीं किया था उसको एक अदद गोभी के फूल ने कर दिखाया …..
खैर यह तो हमको अपनी पत्नी मधु से बाद पता चला की उस दिन उसके पिता जी खास तौर पर छुट्टी लेकर घर पर बैठे थे उसकी पहरेदारी करने के लिए ….. तो उस दिन उसके घर से बाहर न निकलने के कारण अधीर होकर जिन मजनुऑ ने घर पर आकर गुलाब का फूल देने की ‘जहमत कम जुर्रत’ की वोह सभी के सभी दबंग उसके पिता श्री से पिट -पीटा कर गए ….. और मुझको देखते ही ससुर जी सारा माजरा समझ तो गए थे लेकिन यह सोच कर अनजान बने रहे की जब छोकरा शादी से पहले ही अपनी जिम्मेवारी समझता है तो बाद में कहाँ भागेगा ….. ( एक और अहम मगर राज की बात भी मुझको बाद में ही पता चली की मेरे ससुर ‘उपर वाला भगवान’ जी अपने घर के चौबारे में रहते है )
“वैलेन्टाइन –डे” का तारा हुआ एक बेचारा
राजकमल शर्मा

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