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करवाचौथ
आज हिन्दू समाज एक भावना प्रधान समाज बन गया है।परिणाम स्वरूप हर बात को भावना की कसौटी पर खरा उतारना चाहता है। यह भावना क्या है, इस को समझना होगा। भावना से तात्पर्य यह है कि जो वस्तु जैसी है, उसके विषय में वैसा ही जानना और वैसा ही मानना और उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना होता है। यदि किसी को समझाने का प्रयास करें कि जिन परम्पराओं को आप मानते हैं, वे अंधविश्वास हैँ उन्हें छोड़ दीजिए तो उन्हें ऐसा लगता है कि हम उनकी भावनाओं को आहत कर रहे हैं और उन्हें ठेस पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा ही हिन्दू समाज का एक वर्ग जिसमें करवाचौथ का प्रचलन है, उन्हें बताएं कि करवाचौथ का व्रत वैज्ञानिकता की दृष्टि में भी अंधविश्वास है क्योंकि विज्ञान नहीं मानता कि पत्नी उपवास करे और पति की आयु बढ़ जाए।
अंध विश्वास,अंध श्रद्धा और अंध परम्पराओं की कोटि में करवाचौथ का व्रत भी है। इस व्रत के पालन करने का अधिकार केवल सुहागिनों को ही है।यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इसे व्रत कह दिया जाता है क्योंकि लोग व्रत और उपवास के शब्दों का प्रयोग नहीं जानते। वास्तव में व्रत का अर्थ होता है नियमों का पालन करना और उपवास का अर्थ होता है कुछ काल के लिए भोजन ग्रहण न करना। करवाचौथ व्रत नहीं हो सकता है क्योंकि इसमें नियमों का पालन करने की अपेक्षा नियमों का उल्लंघन किया जाता है। कुछ सीमा तक इसे उपवास कह सकते हैं। इस दिन प्रातः तारों की छाव में कुछ खाने की परम्परा है जिसे सरगी कहा जाता है और फिर संध्याकाल के पश्चात जब चांद दिखाई देता है तो चांद को अर्घ्य देने के पश्चात भोजन कर लिया जाता है।
करवाचौथ का प्रचलन कब हुआ और कहाँ से हुआ, इसके बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता है। इतना तो सभी जानते हैं कि पहले इस करवाचौथ का प्रचलन मुठ्ठी भर लोगों में था। आज से पचास वर्ष पहले के इतिहास का अवलोकन इस तथ्य की पुष्टि करता है।आजकल टीवी के चैनलों पर प्रसारित धारावाहिकों में करवाचौथ को बढ़ावा दिया जा रहा है। शृंगारिक सामग्री की चकाचौंध ने इस दिन को भौतिकता के रंग में रंग कर महिमामंडित कर दिया है। पहले जो स्त्रियाँ करवाचौथ नहीं करती थीं, देखा देखी उन्होंने भी शुरू कर दिया। वे इस भेड़चाल में भला कैसे पीछे रह सकती थी। नव विवाहिता के लिए पहला करवाचौथ विशेष महत्व रखता है। मायके वालों को पहले करवाचौथ की सामग्री बेटी के ससुराल भेजनी होती है और यहाँ भी एक बहुत बड़ा प्रदर्शन किया जाता है जिसका लाभ दुकानदारों को होता है। करवाचौथ से कुछ दिन पहले ही बाजारों की चहल-पहल और रौनक तो बस देखते ही बनती है।उपहारों में दी जाने वाली सामग्री ग्राहकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
विचार करने वाला बिन्दु यह है कि क्या पत्नी के भूखे-प्यासे रहने से पति दीर्घायु स्वस्थ हो सकता है? पत्नी के उपवास रखने से पति की उम्र बढ़ सकती है? यह बड़ा ही हास्यास्पद लगता है। कर्म फल सिद्धांत यह है कि कर्म का फल केवल कर्ता को ही मिलता है,यह सिद्धांत विरूद्ध है कि उपवास का कर्म तो पत्नी करे और फल पति को मिले।पति की आयु बढ़ाने का सरल व सुगम उपाय है कि उस के आहार का समुचित ध्यान रखा जाए।शास्त्रकारों ने स्वस्थ और दीर्घ आयु के तीन स्तंभ बताए हैं।ये हैं आहार, निद्रा, व्यायाम। क्या पंडे, पुजारी जो धर्म के ठेकेदार बने बैठे है, इस बात का पक्का आश्वासन दे सकते हैं कि करवाचौथ पति की आयु को लम्बा करेगा। मन में बार-बार प्रश्न उठता है कि क्या ऐसा होना संभव है? क्या पत्नी भोजन करे, तो उससे पति का पेट भर सकता है? यदि नहीं, तो पत्नी द्वारा उपवास करने से पति की आयु कैसे बढ़ सकती है? यदि यह सत्य होता, तो भारत में ऐसा करवा चौथ का व्रत रखने वाली स्त्रियों में से, कोई भी विधवा नहीं होनी चाहिए। जबकि देश में लाखों विधवाएँ विद्यमान हैं।
इस व्रत की कहानी अंधविश्वासपूर्ण है और भय उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा अज्ञानवश व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते हैं। यह महिलाओं को अंधविश्वास और आत्मपीड़न की बेड़ियों में जकड़ने का कुछ स्वार्थी, ढोंगी, कपटी पंडे पुजारियों की सोची समझी चाल है।भय एक ऐसी भावना है जो अच्छे तार्किक बुद्धि वाले लोग होते हैं, उनकी भी बुद्धि हर लेती है।अर्थात् वे भी भ्रष्ट बुद्धि बन जाते हैं।
अधिकतर महिलाएं जो उच्च शिक्षित हैं वे भी इस अंधपरम्परा के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं रखती अपितु संकीर्ण दृष्टिकोण रखती हैं। तर्क बुद्धि से नहीं, भावनात्मक बुद्धि का आश्रय लेती हैं। जब ऐसी महिलाओं से इस व्रत के बारे में चर्चा की और उनका मानना हैं कि यह पारंपरिक और रूढ़िवादी व्रत है जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ संयोग से कुछ हो गया तो उसे ही इस अनहोनी का शिकार बनाया जायेगा, इसी डर से वह इस व्रत को रखती हैं।
दक्षिण भारत में इसका महत्व ना के बराबर हैं, करवाचौथ दूसरे देश नहीं मनाते।और तो और भारत में ही केवल उत्तर में इस को मनाने की प्रथा है। क्या उत्तर भारत के महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत के पति से अधिक होती है? इस बात का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि इन सभी स्थानों पर जहाँ करवाचौथ मनाने की परम्परा नहीं है वहाँ के पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालों के पति की अधिक। यदि करवाचौथ का उपवास करने से पति की आयु लम्बी होती हो तो उत्तर भारत की हिन्दु महिलायें कभी विधवा न होतीं। इस व्रत को सैनिकों की पत्नियों के रखने से उनके पतियों की उम्र अधिक हो जानी चाहिए और कोई भी हमारा सैनिक शहीद नहीं होना चाहिए। करवाचौथ को अंधविश्वास कहना अतिशयोक्ति नहीं है और न ही किसी की आस्था व भावना की पराकाष्ठा को अाहत करना है। एक सज्जन ने अपने विचारों को इन शब्दों में व्यक्त किया है कि माना कि करवा चौथ अंधविश्वाश है मगर उस में मुझे तो पत्नी का पति पर प्यार दिखता है। अपने पति के लिए पत्नी की शुभ कामना दिखती है। परंपरा या रीती रिवाज पर टीका टिपण्णी करने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती है।
भारत का पुरुष प्रधान समाज द्वारा केवल नारी से ही सब प्रकार की अपेक्षाएँ रखी जाती हैं। पति परमेश्वर है, इसलिए पत्नी के लिए पति परमेश्वर के समान पूज्य है। सम्पूर्ण नारी जगत ॠषि दयानंद सरस्वती जी की ॠणि है क्योंकि ॠषि जी ने नारी को पुरूष की सच्चे अर्थों में अर्धांगिनी स्वीकार किया हैं और नारी का सम्मान करना चाहिए ऐसा धर्म शास्त्रों के आधार पर प्रमाणित किया है। दोनों पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं और पत्नी के के लिए पतिदेव पूज्य है तो पति के लिए पत्नी पूज्या है।
करवाचौथ जैसे व्रत को सभी महिलाओं का मानना एक विवशता नहीं है। एक बहुत बड़े वर्ग समूह जिसमें डाक्टर,इंजीनियर व वैज्ञानिक महिलाएं हैं, वे करवाचौथ को अंधविश्वास भी मानती हैं और इस व्रत को भी करती हैं, ऐसी महिलाओं का मानना है कि वे इसे अन्य उत्सवों के समान मनाती हैं और कई पतियों का कहना है कि वे भी अपनी पत्नी के साथ व्रत पालन में गर्व अनुभव करते हैं।इस दिन को पति पत्नी परस्पर अपनी भावनाओं के आदान- प्रदान के रूप में, एक दूसरे के प्रति समर्पित भाव के रूप में मनाते हैं।
अंधविश्वास से घिरे वर्ग समूह को अन्य अंध परम्पराओं के समान और करवा चौथ जैसी अंध परम्परा के आधार पर जो समाज मे अंध श्रद्धा, अंध विश्वास, कुरीति,पाखंड फैला हुआ है, उसको दूर करने के लिए सभी पुरुषों के साथ महिलाएं कंधे से कंधा मिला कर जड़ से उखाड़ने में अपनी पूरी उर्जा लगायें तो यही समाज व देश के हित में रहेगा। देश की गणना शीघ्र ही विकसित देशों में होगी।
परमेश्वर से प्रार्थना है कि देशवासियों को सुबुद्धि प्रदान करे कि प्रत्येक नागरिक सत्य और असत्य को समझ कर सत्य को ग्रहण करे और असत्य का त्याग करे।
राज कुकरेजा / करनाल
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