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फ़ेंगशुई एक धोखा, भारत को बचाइए।

चिंतन के क्षण
चिंतन के क्षण
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अंध विश्वास
फेंगशुई एक धोखा, भारत को बचाइए

हमारे देश की अर्थ व्यवस्था पर चीन चहुँ ओर से प्रहार कर रहा है।अपने लुभावने उपहारों से भारत की मार्केट में अपनी पकड़ को सुदृढ़ बनाने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपना रहा है।यह हर्ष की बात है कि दिवाली जैसे त्योहारों के समय अब देशवासी चीनी सामान का बहिष्कार करने लगे हैं।चीन ने हमारे देश के लोगों को भावनात्मक ढंग से अपने चंगुल में फँसाने और अच्छे भले लोगों को अंधविश्वास में जकड़ने के लिए उपहारों की एक योजना बना डाली है,जो अर्थ व्यवस्था पर तो चोट करती ही है,व्यक्ति की तर्क व वैज्ञानिक सोच पर प्रहार करती है, जिस कारण व्यक्ति अंध विश्वास के चंगुल में फँसता जा रहा है। इस संदर्भ में अपने एक परिचित की आपबीती आप सबके साथ उन्हीं की ज़ुबानी बताने का प्रयास करके सतर्क व सावधान रहने का संदेश भी दे कर अपना कर्तव्य निभा रही हूँ।
“यह किस्सा मेरे नए मकान लेने की खुशी में दी गई पार्टी का है। किसी बड़े शहर में खुद का मकान होना मानो एक सपने की तरह होता है। और अगर यह सपना आपकी जवानी में ही साकार हो जाए तो खुशी दुगुनी हो जाती है। मेरे परिवार ने भी इस खुशी को बांटने के लिए अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों को शाम को डिनर पर बुलाया था। हसी-मजाक और मस्ती के वातावरण में समय कैसे बीत गया,पता ही नहीं चला।

शिष्टाचारवश जाते समय मित्रों ने नए घर के लिए उपहार भेंट किए। अगली सुबह जब हमने उपहारों को खोलना शुरू किया तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था! एक दो उपहारों को छोड़कर बाकी सभी में लाफिंग बुद्धा, फेंगशुई पिरामिड, चाइनीज़ ड्रेगन, कछुआ, चाइनीस फेंगसुई सिक्के, तीन टांगों वाला मेंढक, और हाथ हिलाती हुई बिल्ली जैसी अटपटी वस्तुएं भी दी गई थी।जिज्ञासावश मैंने इन उपहारों के साथ आए कागजों को पढ़ना शुरू किया जिसमें इन फेंगशुई के मॉडलों का मुख्य काम और उसे रखने की दिशा के बारे में बताया गया था। जैसे लाफिंग बुद्धा का काम घर में धन, दौलत, अनाज और प्रसन्नता लाना था और उसे दरवाजे की ओर मुख करके रखना पड़ता था। कछुआ पानी में डूबा कर रखने से कर्ज से मुक्ति, सिक्के वाला तीन टांगों का मेंढक रखने से धन का प्रभाव, चाइनीस ड्रैगन को कमरे में रखने से रोगों से मुक्ति, विंडचाइम लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, प्लास्टिक के पिरामिड लगाने से वास्तुदोषों से मुक्ति, चाइनीज सिक्के बटुए में रखने से सौभाग्य में वृद्धि होगी ऐसा लिखा था।

यह सब पढ़ कर मैं हैरान हो गया क्योंकि यह उपहार मेरे उन मित्रों ने दिए थे जो पेशे से इंजीनियर डॉक्टर और वकील जैसे पदों पर काम कर रहे थे। हद तो तब हो गई मेरे एक डॉक्टर मित्र ने मुझे रोग भगाने वाला और आयु बढ़ाने वाला चाइनीज ड्रैगन गिफ्ट किया! जिसमें लिखा था “आपके और आपके परिवार के सुखद स्वास्थ्य का अचूक उपाय”!
इन फेंगशुई उपहारों में एक प्लास्टिक की सुनहरी बिल्ली भी थी जिसमें बैटरी लगाने के बाद, उसका एक हाथ किसी को बुलाने की मुद्रा में आगे पीछे हिलता रहता है। कमाल तो यह था कि उसके साथ आए कागज में लिखा था “ मुबारक हो, सुनहरी बिल्ली के माध्यम से अपनी रूठी किस्मत को वापस बुलाने के लिए इसे अपने घर कार्यालय अथवा दुकान के उत्तर-पूर्व में रखिए!”
दिमाग को चकरा देने वाले इस पागलपन पर मुझे गुस्सा और हंसी दोनों आ रहे थे। मैंने इंटरनेट खोलकर फेंगशुई के बारे में और पता लगाया तो कई रोचक बातें सामने आई जिसे यहां मैं आपके लिए लिख रहा हूँ।

भारत से दुनिया के अनेक देशों में कहीं न कहीं फेंगशुई का जाल फैला हुआ है। इसकी मार्केटिंग का तंत्र इंटरनेट पर मौजूद हजारों वेबसाइट के अलावा, tv कार्यक्रमों, न्यूज़ पेपर्स, और पत्रिकाओं तक के माध्यम से चलता है।

अनुमानत: भारत में इस का कारोबार लगभग 200 करोड रुपए से अधिक का है। किसी छोटे शहर की गिफ्ट शॉप से लेकर सुपर माल्स तक फेंगशुई के यह प्रोडक्ट्स आपको हर जगह मिल जाएंगे।

फेंगशुई का सारा माल भारत सहित दुनिया के अलग-अलग देशों में चीन से बेचा जाता है। अभी अभी दरिद्रता और गुलामी के युग से उभरे हमारे देश में जहाँ आज भी लोग रोग मुक्ति, धन दौलत और प्रेमी को वश में करने के लिए गधे से शादी करने से लेकर समोसे में लाल चटनी की जगह हरी चटनी खाने तक सब कुछ करने के लिए तैयार हैं, उनकी दबी भावनाओं और इच्छाओं के साथ खेलना, शोषण करना और अपनी जेब भरना कौन सा कठिन काम है?
विज्ञान की क्रांति के इस दौर में भी जहाँ हर तथ्य का परीक्षण मिनटों में शुरू हो सकता है, आंखें मूंदकर विज्ञापनों के झांसे में आना और अपनी मेहनत का पैसा इन मूर्खताओं पर बहा देना क्या यही पढ़े लिखे लोगों की समझदारी है?

चीन में फेंग का अर्थ होता है ‘वायु’ और शुई का अर्थ है ‘जल’ अर्थात फेंगशुई का कोई मतलब है जलवायु। इसका आपके सौभाग्य, स्वास्थ्य और मुकदमे में हार जीत से क्या संबंध है?

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिपेक्ष्य से भी देखा जाए तो कौन सा भारतीय अपने घर में आग उगलने वाली चाइनीस छिपकली यानी dragon को देख कर प्रसन्नता महसूस कर सकता है? किसी जमाने में जिस बिल्ली को अशुभ मानकर रास्ते पर लोग रुक जाया करते थे; उसी बिल्ली के सुनहरे पुतले को घर में सजाकर सौभाग्य की मिन्नतें करना महामूर्खता नहीं तो क्या है?

अब जरा सर्वाधिक लोकप्रिय फेंगशुई उपहार लाफिंग बुद्धा की बात करें- धन की टोकरी उठाए, मोटे पेट वाला गोल मटोल सुनहरे रंग का पुतला- क्या सच में महात्मा बुद्ध है?

क्या बुद्ध ने अपने किसी प्रवचन में कहीं यह बताया था कि मेरी इस प्रकार की मूर्ति को अपने घर में रखो और मैं तुम्हें सौभाग्य और धन दूंगा? उन्होंने तो सत्य की खोज के लिए स्वयं अपना धन और राजपाट त्याग दिया था।

एक बेजान चाइनीस पुतले ( लाफिंग बुद्धा) को हमने तुलसी के पौधे से ज्यादा बढ़कर मान लिया और तुलसी जैसी रोग मिटाने वाली सदा प्राणवायु देने वाली और हमारी संस्कृति की याद दिलाने वाली प्रकृति के सुंदर देन को अपने घरों से निकालकर, हमने लाफिंग बुद्धा को स्थापित कर दिया और अब उससे सकारात्मकता और सौभाग्य की उम्मीद कर रहे हैं? क्या यही हमारी तरक्की है?

अब तो दुकानदार भी अपनी दुकान का शटर खोलकर सबसे पहले लाफिंग बुद्धा को नमस्कार करते हैं और कभी-कभी तो अगरबत्ती भी लगाते हैं!

फेंगसुई की दुनिया का एक और लोकप्रिय मॉडल है चीनी देवता फुक, लुक और साऊ। फुक को समृद्धि, लुक को यश-मान-प्रतिष्ठा और साउ को दीर्घायु का देवता कहा जाता है। फेंगशुई ने बताया और हम अंधभक्तों ने अपने घरों में इन मूर्तियों को लगाना शुरु कर दिया। मैं देखा कि इंटरनेट पर मिलने वाली इन मूर्तियों की कीमत भारत में ₹200 से लेकर ₹15000 तक है, जैसी जेब- वैसी मूर्ति और उसी हिसाब से सौभाग्य का भी हिसाब-किताब सेट है।

क्या हम अपनी लोककथाओं और कहानियों में इन तीनों देवताओं का कोई उल्लेख पाते हैं? हमारे पौराणिकों ने देवताओं की संख्या तेंतीस के स्थान पर तेंतीस करोड़ कर दी है,इन तेंतीस करोड़ों में भीगने तथा कथित का नामों निशान नहीं है। क्या भारत में फैले 33 करोड़ देवी देवताओं से हमारा मन भर गया कि अब इन चाइनीस देवताओं को भी घर में स्थापित किया जा रहा है? जरा सोचिए कि किसी चाइनीस बूढ़े देवता की मूर्ति घर में रखने से हमारी आयु कैसे ज्यादा हो सकती है? क्या इतना सरल तरीका विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अब तक समझ में नहीं आया था?
इसी तरह का एक और फेंगशुई प्रोडक्ट है तीन चाइनीस सिक्के जो लाल रिबन से बंधे होते हैं, फेंगशुई के मुताबिक रिबिन का लाल रंग इन सिक्कों की ऊर्जा को सक्रिय कर देता है और इन सिक्कों से निकली यांग(Yang) ऊर्जा आप के भाग्य को सक्रिय कर देती है। दुकानदारों का कहना है कि इन सिक्कों पर धन के चाइनीस मंत्र भी खुदे होते हैं लेकिन जब मैंने उनसे इन चाइनीस अक्षरों को पढ़ने के लिए कहा तो ना वे इन्हें पढ़ सके और नहीं इनका अर्थ समझा सके?

फेंगशुई के बाजार में एक और गजब का प्रोडक्ट है तीन टांगों वाला मेंढक जिसके मुंह में एक चीनी सिक्का होता है। फेंगशुई के मुताबिक उसे अपने घर में धन को आकर्षित करने के लिए रखना अत्यंत शुभ होता है। जब मैंने इस मेंढक को पहली बार देखा तो सोचा कि जो देखने में इतना भद्दा लग रहा है वह मेरे घर में सौभाग्य कैसे लाएगा?मेंढक का चौथा पैर काट कर उसे तीन टांग वाला बनाकर शुभ मानना किस सिरफिरे की कल्पना है?
क्या किसी मेंढक के मुंह में सिक्का रखकर घर में धन की बारिश हो सकती है? संसार के किसी भी जीव विज्ञान के शास्त्र में ऐसे तीन टांग वाले ओर सिक्का खाने वाले मेंढक का उल्लेख क्यों नहीं है?
इस प्रकार के अंध विश्वास क्या हमें अकर्मण्य बनाकर और अधिक भाग्यवादी नहीं बना रही है? क्या चाइनीस सिक्के वाला यह मेंढक और इसके जैसे अन्य फेंगशुई प्रोडक्ट्स हम भारतीयों की निर्धनता को दूर करने व समृद्धि बढ़ाने में कोई मदद कर सकते हैं?
प्रश्न यह है कि क्या चीन में गरीब लोग नहीं रहते? क्यों चीनी सरकार स्वयं हर नागरिक के पर्स में यह सिक्के रखवा कर अपनी गरीबी दूर नहीं कर लेती? हमारे देश के रुपयों से हम इन बेकार के चाइनीस सिक्के खरीद कर न सिर्फ अपना और अपने देश का पैसा हमारे शत्रु देश को भेज रहे हैं बल्कि अपने कमजोर और गिरे हुए आत्मविश्वास का भी परिचय दे रहे हैं।
दुख की बात तो यह है कि हमारी कोमल भावनाओं तथा लालची प्रवृति का शोषण अब हमारे अपने लोग भी करने लगे हैं। नई डिबिया और पुराना माल की तर्ज पर हमारे देश में भी कुबेर कुंजी, लक्ष्मी पादुका, सौभाग्य ताला नजर सुरक्षा कवच, और सैकड़ों तरह की है यंत्र ताबीज के लुभावने विज्ञापनों के जाल में फँसते जा रहे हैं।चर्चित tv कलाकारों को पैसा देकर गंडे ताबीजों की महिमा में ऐसी ऐसी बातें बताई जाती है कि मेहनत ईमानदारी और पसीना बहाकर काम करने जैसी बातें हमें बेवकूफाना लगने लगती है। क्या हमारे विकासशील और संघर्ष करने वाले ही इस देश को इस प्रकार की वैज्ञानिक सोच लाभ पहुंचा सकती है?
पढ़े-लिखे लोग भी जब इन झासों के शिकार बने हुए दिखते हैं तो गांव के निरक्षर आदिवासियों को हम किस मुंह से झाड़ फूंक और जादू टोने से ऊपर उठने के लिए कह सकते हैं?

फेंगशुई से सौभाग्य की गारंटी देते ये धोखेबाज हमारे समाज में कैंसर की तरह पनप रहे हैं। समय रहते अपनी वैज्ञानिक सोच को जागृत करना और इनसे पीछा छुड़ाना अत्यंत आवश्यक है। आप भी अपने आसपास गौर कीजिए आपको कहीं ना कहीं इस फेंगशुई की जहरीली और अंधविश्वास को बढ़ावा देती चीजें अवश्य ही मिल जाएगी। समय रहते स्वयं को अपने परिवार को और अपने मित्रों को इस अंधेकुएं से निकालकर अपने देश की मूल्यवान मुद्रा को चाइना के फैलाए षड्यंत्र की बलि चढ़ने से बचाइए।

हम अपने-अपने परिवारों ,परिजनों एवं मित्रों के साथ इस फ़ेंगशुई को अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें तथा भारत को एक वैज्ञानिक विकसित देशबनाने में हमारी मदद करें।
अंधविश्वास को मिटाते चलें, पाखंड को हटाते चलें । देश के विकास में सतर्कता से क़दम बढ़ाते चलें।
राज कुकरेजा /करनाल
Twitter@RajKukreja16

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