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opera
महाभारत में एक प्रसंग है। गुरु द्रोणाचार्य ने जब अपने सभी शिष्योँ को शिक्षा दे दिए तो उन्होंने उन शिष्योँ को जाँचने के लिए एक परीक्षा का आयोजन किए।
पेड़ की एक ऊँची डाली पर मिट्टी से बनी एक चिड़िया को रखा गया। सभी शिष्योँ को उस चिड़िया के आँख को निशाना बनाने के लिए कहा गया। जब सभी शिष्योँ ने लक्ष पर निशाना साध लिया तो गुरु ने बारी-बारी से उन शिष्योँ से प्रश्न पूछेँ,”तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?”
सभी शिष्योँ ने अलग-अलग उत्तर दिया। किसी ने कहा कि उसे पेड़ दिखाई दे रहा है तो किसी ने कहा कि उसे पत्ता दिखाई दे रहा है। किसी ने कहा कि उसे आसमान दिखाई दे रहा है तो किसी ने कहा कि उसे जमीन दिखाई दे रहा है। किसी ने तो यहाँ तक कह दिया कि उसे गुरु जी के चरण दिखाई पड़ रहा है।
अंत में जब अर्जुन से पूछा गया तो उसका जवाब था कि उसे केवल चिड़िया की आँख दिखाई पड़ रहा है।
इस जवाब से गुरु जी प्रसन्न हुए और उसे तीर चलाने के लिए कहा। अर्जुन ने तीर चलाया और तीर निशाना पर जा कर लगा।
निष्कर्ष:- अगर हम केवल एक लक्ष ले कर चलें तो उसे अवश्य साधा जा सकता है।
वर्तमान शिक्षा के परिपेक्ष में इस कहानी की प्रासंगिकता को लेते हैं तो इसकी अहमियत समाप्त होता नजर आता है। आज शिक्षा विभाग को शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के अलावा शेष सब कुछ नजर आ रहा है, जैसे- मध्याह्न भोजन, पोशाक, साइकिल, छात्रवृत्ति, निःशुल्क शिक्षक, निःशुल्क रसोइया, आदि। ऐसे में शिक्षा के मुख्य लक्ष को कैसे साधा जा सकता है?
एक सवाल और, जब गुरु द्रेणाचार्य के कुल अनुमानित एक सौ छः शिष्योँ (कौरव 100 + पांडव 5 + अश्वत्वथामा=106) में से केवल एक शिष्य सफल हुए। अगर इस आँकड़ा को प्रतिशत के पैमाने पर देखें तो यह आँकड़ा 0.94% होता है। जो कि कोई खास सफलता की सूचक नहीं है फिर भी उनकी योग्यता पर कोई सवाल नहीं तो आज के दौर में हमारी योग्यता पर संदेह क्यों? जबकि आज के गुरु के द्वारा कुछ ज्यादा ही बेहतर परिणाम दिया जा रहा है!
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