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महिलाएं और उनका पहनावा

सत्य सहज है
सत्य सहज है
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प्राचीन वैदिक काल मे नारी को देवी जैसे शब्दों से अलंकृत किया जाता था , उनके आचार- विचार , संस्कार , लज्जा और शालीनता की प्रतिमूर्ति थी मा , बहन और बेटी के समान स्नेह प्राप्त था , वक्त बदला वक्त की नजाकत बदली विचार और संस्कार के वट वृक्ष की शाखाओं मे संस्कार और विचार की शाखाएं विलुप्त होने लगी ,,, युग बदला , विचार बदले, सहानुभूति भातृत्वभाव की विशालतम डालियों पर राहु- केतु के ग्रहण की विभीषिका का ताण्डव नृत्य के कुत्सित मेघ नीलगगन को ढक लिया , दशों दिशाओं मे अंधकार के बादल का संवेग को पवन का तीव्र झोकों ने नवीन उत्साह का संचार कर दिया ,,, समय -समय पर भारतीय संस्कृति के नाम पर नारी के अधिकारों पर अतिक्रमण किया गया , मशहूर गायक के.जे येसुदास [[[[[जब कोई महिला जींस पहनती है तो लोगों को जींस के अलावा देखने का दबाव बनता है]]]] नभाटा 4अक्टूबर2014 P. NO-1]जनाब गौर कीजिये = निगाहें बुरी नहीं होती, विचार बुरे होते हैं,, हम इन्ही निगाहों से अपनी मा ,बहन , बेटियों को देखते निगाहे वही होती है, निगाहों का काम है देखना , आयना से बढ़कर कोई मित्र नहीं होता वह कभी भी झूठ नही बोलता वह आपके प्रतिविम्ब की वास्तविकता का बोध करता है फिर मुझमे उन जींस मे अलग से देखने का कैसे दबाव बनता है? मित्रों आप भी सोचिये यदि किसी के घर [मन] मे चोर है , तो सर्वप्रथम अपने मन रुपी घर की झाडू [विचार] से अंत ;करण रुपी प्रांगण मे उफनते हुये क्रिमि [कीडे] को फिनायल से साफ कीजिये , इसके कीटाणु , एडस और कैंसर से ज्यादा भयानक हैं, हम देखते हैं लोग रास्ते भटक जाते हैं जाना था इलाहाबाद , भाई साहब पहुंच गये फैज़ाबाद ,,, कभी – कभी दिशाभ्रम हो जाता है , महिलाओं को नसीहत देते समय काश अपने विचारों पर नियंत्रण रखते तो काश कुछ और होता , नर और नारी समाज के दो कारक हैं , एक रथ के दो पहिये है , जिनके वगैर सुसंस्कृति की कल्पना करना दिवा स्वप्न है,,

दामिनी गैंग रेप शक्ति मिल कैंपस गैंग रेप के बाद पहनावें पर हमारे राजनेता अपने बेतुके बोल के झोल मे नारी को गुनहगार बना दिये ,,, उनकी नजर मे रेप का प्रमुख कारक पहनावा है ,, काश हमारे नेता विचार और संस्कार का पाठ की शुरुवात अपने घर [मन,आत्मा] करते और अपने लाडलों के पहनावों संस्कार , उनके आचार -विचार मित्रमँडली , और उनकी विलासिता की पृष्ठभूमि का अध्यन करते तो मा भारती के पावन प्रांगण मे भारतीय संस्कृति की अनुपम ,आलौकिक शंखनाद होता ,,,,,,

,नारी नर की जागीर नहीं है ,
बदलते हुये भारत की तस्वीर यही है
, मा बहन , बेटी बनकर प्यार लुटाती है नारी,
द्रोपदी और सीता बन नव सीख सिखाती है नारी
जयहिन्द , जयभारत ,
राजकिशोर मिश्रा

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