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लोहड़ी और मकर संक्रान्ति

सत्य सहज है
सत्य सहज है
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मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है , सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि मे प्रवेश करता है , मकर राशि का स्वामी शनि होता है , भगवान सूर्यदेव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके स्वामित्व राशि मकर मे प्रवेश करके सूर्य देव दक्षिणायन से उत्तरायण होकर शनि देव के घर मे प्रवेश [आना] करते हैं जब सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करता है तभी मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है,,, मकर संक्रान्ति एक ऐसा त्योहार है जो जनवरी मास के 14वें या पंद्रहवे दिन धनु राशि को छोड़कर मकर राशि मे प्रवेश करता है ,सूर्य 14 जनवरी 2015 की मध्यरात्रि 1:20 बजे धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेगा। , 14 जनवरी की मध्यरात्रि सूर्यका मकर मे प्रवेश करने के कारण सुबह 15 जनवरी 2015 मकर संक्रान्ति तारीख 15 सन 2015 पांचवा दिन गुरुवार का अनुपम संयोग है,,,, रामचरित मानस मे तुलसीदास ने माघ मकर का मार्मिक वर्णन किया है= माघ मकर गति रवि जब होई,,,, तीरथ पतिहि आव सब कोई,,,,
मकर संक्रान्ति का पावन पर्व सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है , दुल्हन के मायके से उनके परिजन तिल गुड से बने मिष्ठान नाना प्रकार धन -धान्य और उपहार प्रदान करते हैं,,,,,, मकर संक्रान्ति के दिन सुबह -सुबह चीचड़ा [अपामार्ग] की दातून करते हैं स्नानोपरांत तिल दान की परम्परा रही है,,,,मकर पर्व पर पवित्र नदियों मे स्नान करके तिल गुण आदि दान करते है, माघ के पावन पर्व पर देश -विदेश से लाखो श्रद्धालु पतित पावनी मा गंगा के पावन प्रांगण प्रयाग क्षेत्र मे कल्पवास करते हैं,, श्रद्धा , , भक्ति ,ग्यान , विश्वास और अनुराग को झंकृत करने वाली गंगा , जमुना , सरस्वती का पावन संगम और उनकी अविस्मरणीय धारा जन जन मे नव उत्साह का संचार कर देता है,, तीर्थराज प्रयाग की महत्ता का वर्णन करते हुये रामचरित मानस मे गोस्वामी तुलसीदास ने बड़े मार्मिक शब्दों मे लिखा है ,,, को कहि सकहि प्रयाग प्रभाऊ , कलुष पुंज कुंजर मृग राऊ,,,/ अस तीरथपति देखि सुहावा,, सुखसागर रघुबर सुख पावा,,,[अयोध्याकाण्ड 105/1-2 ] तीर्थराज प्रयाग के पावन प्रांगण मे पतित पावनी मा गंगा जमुना , सरस्वती के संगम मे मकर स्नान का विशेष महत्व है ,,,,,,,,, भोले भंडारी शिव बाबा की नगरी काशी और गंगासागर के स्नान विशेष महत्व है ,,,,,,,गंग सकल मु द मंगल मूला , , सब सुख कर नि हर नि सब सूला// [रामचरित मानस /अयोध्याकाण्ड 80/ 4]
तमिलनाडु मे पोंगम और असम मे बिहू त्योहार के रूप मे मनाया जाता है ,,,, कर्नाटक , केरल और आंध्रप्रदेश मे संक्रान्ति के रूप मे मानते हैं,,,
हरियाणा और पंजाब मे मकर से 1-2 दिन पहले 13 जनवरी को लोहड़ी के रूप मे मानते है, इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव को तिल ,गुण और भुने हुये मक्को की आहुति देते हैं,, गजक और रेवड़ियाँ बांट कर उत्साह मय खुशियों की अनुभूति करते हैं , वक्त बदला अब उनका स्थान मिष्ठानो ने ले लिया है बाजार की चकाचौंध हलवाई की दुकान [ मिष्ठान प्रतिष्ठान] अंजीर , खजूर की मिठाईयाँ कजूकतरी आदि की मिठाईयाँ मकर संक्रान्ति के पावन पर्व का उत्साह और रौनक बढ़ा देती हैं,,,,, लोकगीत , और परम्परागत नृत्य गायन का अनुपम समन्वय देखने को मिलता है,,,,,
लोहड़ी पूस की सर्दी की आखिरी रात के रूप मे मनाये जाने वाला फसली त्योहार तक ही सीमित नही है धनु राशि से मकर मे प्रवेश करने वाले आरोग्य देवता भगवान भास्कर [सूर्य] से स्वास्थ्य , समृद्धि ,सुख-शान्ति और वंशवृद्धि की मंगल कामना करते है, जम्मू काश्मीर , हिमाचल , पंजाब ,उतराँचल , वासियों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है
जिसे देखकर दिल बाग़ -बाग़ हो जाता है ,,,, मन मयूर नाच उठता है ,,,,, वाह क्या संस्कृति है मेरे भारत की,,,, तभी तो भारत भूमि पर देवता जन्म लेने के लिये उत्सुक रहते है,,,,,मकर संक्रान्ति के पावन पर्व की खुशियाली का आभास गुजरात की पतंगबाजी से लगाया जा सकता है ,,,,,,आज प्रतिस्पर्धा का युग है पतंग कटना कौन नही चाहता ? अपनी पतंग कौन नही बचाना चाहता ? लेकिन पतंग काटने , कटवाने की प्रतिस्पर्धा मे चीन से आये हुये माझें जीव -जंतुओं से लेकर जन मानव के जान के खतरे बन गये है ,,,,प्रशासन के मना करने के बाद भी चीन के माझें उपयोग कर लेते है उनकी धार की चपेट बेज़ुबान आ जाते हैं,,,/ खुशी और उत्साह को मानवता , दया सहिष्णुता , के रूप मे मानकर भाईचारे को प्रोत्साहित करें,,,
मकर संक्रान्ति मनाये जाने के पौराणिक और ऐतिहासिक कारण= 1= सतयुग मे अंशुमान पौत्र राजा दीलीप के पुत्र भागीरथ अपने पूर्वज सूर्यवंशीय राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के तरन-तारण के लिये ब्रह्मा और शिव की तपस्या कर गंगा जी को पृथ्वी पर लाये गांगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुये कपिलमुनि के आश्रम से होकर सागर [गंगासागर] मे मिली थी,,,, कहावत है- सब तीरथ बार -बार गंगासागर एक बार,,,,
[2] द्वापर मे महाभारत पर्व से चंद्रवंशीय राजा शान्तनु पुत्र भीष्म पितामह सर शैय्या पर पड़े रहे अपने प्राण त्यागने के लिये सूर्य देव के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा किया ,,,,,,,
लोहड़ी और मकर संक्रान्ति के पावन पर्व पर सभी ब्लागर बन्धु , प्रतिक्रिया देने वाले और पाठक बन्धुओं को लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की हार्दिक मंगलमय कोटि -कोटि शुभकामनाएं

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