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संस्कार

apnibaat अपनी बात
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लघुकथा
(Contest)

राजेश त्रिपाठी

किशोर बाबू कंप्यूटर के मानीटर पर उम्मीद से नजर गड़ाये बेटे चंदन के वीडियो चैट पर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पता नहीं क्यों उसे आज चैट पर आने में देर हो रही थी और किशोर बाबू की चिंता बढ़ती जा रही थी। वे सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहे थे।
पत्नी सरिता ने देखा तो बोली-‘पहले ही सेहत का कबाड़ा कर चुके हो अब सिगरेट पर सिगरेट क्यों घूंट रहे हो। परेशान न हो, आ जायेगा।’
‘परेशान क्यों न हूं। हजारों किलोमीटर दूर है बेटा। क्या हुआ। चैट में आ जाता तो शांति मिलती।’
किशोर बाबू के मन में शंकाएं घुमड़ने लगीं। वे उस दिन को कोसने लगे जब उन्होंने अपने इकलौते बेटे को विदेश जाकर काम करने की अनुमति दी थी।
किशोर बाबू को पहला झटका उस दिन लगा जब चंदन ने उन्हें चैट पर अपने साथ काम करनेवाली सिंथिया की तस्वीर दिखाई।
एक दिन अचानक चैट पर चंदन ने सिंथिया को लाते हुए कहा-‘बाबू जी इसे आशीर्वाद दीजिए, यह अब आपकी बहू है।’ किशोर बाबू को यह दूसरा जोरदार झटका लगा। वे चंदन का रिश्ता अपने दोस्त विकास की बेटी सुजाता से किये बैठे थे।
सिंथिया से चंदन की शादी को न किशोर बाबू ही पचा पाये न ही चंदन की मां सरिता। लेकिन बेटे की खुशी के लिए उनको मन मसोस कर मानना पड़ा।
किशोर बाबू इसी उधेड़बुन में थे कि चैट बाक्स पर चंदन की तस्वीर उभरी और स्वर भी-‘बाबूजी प्रणाम।’
‘अरे बेटे कहां थे। मैं चिंतित हो गया था।’
‘कुछ नहीं बाबू जी। सिंथिया के पिता जी की तबीयत खराब थी, मैं अस्पताल गया था। उनका मेरे और सिंथिया के अलावा कोई नहीं।’
‘ओह!’ किशोर बाबू ने जैसे आह भरी, मन ही मन बुदबुदाये और हमारा कौन है बेटे।
चंदन का स्वर उभरा-‘बाबू जी आपने देश लौटने को कहा था। वह अब असंभव लगता है। हमारे वापस आने से सिंथिया के पिता अकेले पड़ जायेंगे और फिर सिंथिया के संस्कार भी उसे दूसरे मुल्क में जाकर रहने की इजाजत शायद ही दें।’
किशोर बाबू जैसे आकाश से गिरे। उनके शब्द ‘और बेटे तुम्हारे संस्कार।’ जैसे होंठों के भीतर ही कैद होकर रह गये।
पति की नम आंखें, उदास चेहरा देख सरिता ने कहा-‘कहा था किसी से उम्मीद मत रखना। उम्मीद टूटती है तो बहुत दुख होता है। चिंता क्यों करते हो, हम दोनों एक-दूसरे का सहारा बन जाया करेंगे।’

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