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‘खतरों का खिलाड़ी मोदी’

राकेश कुमार आर्य
राकेश कुमार आर्य
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मासूम गाजियाबादी कहते हैं-
चरागों में भी गर फिरकापरस्ती की बू आ जाए
दिलों में रौशनी की है जो उस अजमत का क्या होगा
भटक जाए अगर खलकत अदब रस्ते में ले आए
अदब ही गर भटक जाए तो फिर खलकत का क्या होगा
लगता है देश का अदब भटक गया है, जो देश की संसद को चलने नही दे रहा है। संविधान की सौगंध उठाने वाले संविधान के अदब और अजमत दोनों को ही नीलाम कर रहे हैं और बड़े प्रेम से अपने आपको संविधान का रक्षक घोषित कर रहे हैं।
संसद के गतिरोध की कहानी कोई नयी नही है यह पुरानी हो चुकी है। मोदी सरकार के सत्ता में आते ही विपक्ष को लगा था कि मोदी से देश का मुसलमान तो एकतरफा नाखुश है, जिसे रिझाने के लिए वह एक स्थान पर एकत्र होने लगा और मोदी सरकार को साम्प्रदायिक कहकर चलता करने की रणनीति बनाने लगा। यही कारण रहा कि जब जेएनयू में देश विरोधी नारे लगे तो देश के विपक्ष ने उसका राजनीतिकरण करते हुए उसे भी इस प्रकार दिखाने का प्रयास किया था जैसे मोदी सरकार किसी वर्ग विशेष की विरोधी है। आश्चर्य की बात ये है कि जो विपक्षी दल कल परसों तक कांग्रेस के विरूद्घ एकमत होकर भाजपा के साथ मिलकर उसे कोसा करते थे, वही आज अपना दीनों ईमां भूलकर भाजपा के विरूद्घ कांग्रेस का साथ दे रहे हैं।
अब देश की संसद को 500 व 1000 के नोट बदलने की मोदी सरकार की नीति के विरूद्घ देश का विपक्ष एक होकर चलने नही दे रहा है। सारा विपक्ष समझ रहा है कि देश की जनता इस मुद्दे पर अपने प्रधानमंत्री के साथ है, परंतु उसे तो शोर मचाना है इसलिए अपने शोर मचाने के धर्म का पालन कर रहा है।
विपक्ष का कहना है कि वह नोट बदलने के निर्णय से सहमत हैं, पर सरकार की ओर से नोट बदलने की या नोटबंदी की जिस प्रक्रिया को अपनाया गया है वह उसे पसंद नही करता, क्योंकि इससे देश की जनता को परेशानी हो रही है। ममता बैनर्जी कहती हैं कि देश केवल चार दिन तक ही चल सकता है-उसके बाद यदि परिस्थितियां ऐसी ही रहीं तो देश मर जाएगा, मनमोहन सिंह कहते हैं कि सारा कुछ विध्वंस मचाने के लिए कर दिया गया है, मुलायम सिंह कहते हैं कि जो कुछ किया गया है वह तो ठीक है पर नोटबंदी के लिए समय देना चाहिए था। मायावती कहती है कि मोदी घमण्डी हो गये हैं और जनता उनको जवाब देगी। उधर मोदी का कहना है कि जिन लोगों को समझने व संभलने का अवसर नही दिया गया, परेशानी उन्हीं को हो रही है। यदि इन लोगों को 72 घंटे का समय अपने माल को ठिकाने लगाने के लिए दे दिया जाता तो सब कुछ ठीक हो जाता और तब मोदी इनके लिए सबसे बढिय़ा होता।
अब आप देखें कि ममता से लेकर मोदी तक कितनी ‘म’ देश में लड़ रही हैं, देखने वाली बात यह होगी कि इस ‘म’ के युद्घ में कौन सी ‘म’ जीतती है? वैसे इस देश की जनता अपने देश के हित में निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री लालबहादुर के साथ उस समय भी खड़ी हो गयी थी जब वह आधुनिक लोकतंत्र की खुली हवाओं का आनंद लेना ही सीख रही थी। तब उसने अपने पीएम के कहने पर सप्ताह में एक दिन का भोजन करना बंद कर दिया था। आज भी वह देश के हालात सुधारने के लिए और देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए अपने प्रधानमंत्री मोदी के साथ है। वह भूखा रह सकती है, कष्ट सह सकती है और लंबी लाइनों में खड़ी हो सकती है पर उसे देश भ्रष्टाचार मुक्त चाहिए। इससे तो यही लगता है कि देश में चल रही ‘म’ की लड़ाई में पीएम मोदी की ही जीत होगी या कहिए कि जीत हो रही है।
इसके उपरांत भी विपक्ष देश की संसद को चलने नही दे रहा है तो ऐसा क्यों किया जा रहा है? विपक्ष की जितनी भी ‘म’ है, उनके सपनों पर और तैयारियों पर भारी तुषारापात हो गया-मोदी सरकार के नोटबंदी के अभियान से। देश एक बार पुन: चुनावी सुधारों की ओर बढ़ा है, और जिन राक्षसों ने माया के बल पर देश के लोकतंत्र का सौदा कर लिया था-अब यह लोकतंत्र गरीब आदमी का लोकतंत्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यदि भ्रष्टाचार पर और कालेधन पर रोक लगाने में पीएम मोदी सफल हो गये तो देश में फिर किसी झोंपड़ी से निकलकर कोई लालबहादुर देश का पीएम बन सकेगा। ….और यही तो लोकतंत्र का लक्ष्य हो सकता है कि वह झोंपड़ी वालों को राजभवन तक ले जाने का मार्गप्रशस्त करे। लोकतंत्र का धनतंत्र से कोई संबंध नही? आप तनिक विचार करें कि जिस देश में पूंजीपति विधान परिषद की सदस्यता को या राज्यसभा की सदस्यता को करोड़ों रूपयों में (राज्यसभा की सीट को तो 70-80 करोड़ तक में भी) खरीदने को तैयार है तो उन्हें इतनी बड़ी धनराशि में क्यों खरीद रहे हैं? आखिर उन्हें इनसे मिलता क्या है? यही सोचने वाली बात है, निश्चित रूप से ऐसे लोगों को देश को लूटने का प्रमाणपत्र मिल जाता है। व्यापार में दस रूपये लगाकर यदि 100 रूपये कमाये जा सकें तो कोई घाटा नही, ऐसा व्यापार किया ही जाना चाहिए। यदि पीएम मोदी देश की राजनीति के इस प्रकार के व्यापारीकरण के विरूद्घ नोटबंदी से भी आगे जाकर काम करते हैं, तो भी देश की जनता उनके साथ है। पर शर्त यही है कि सारा काम बड़ी पारदर्शिता से तथा बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के होना चाहिए।
विपक्ष को समझना चाहिए कि माल की रक्षा कभी भी चोरों को माल का पता बताकर नही की जा सकती। दूसरी बात यह है कि मोदी नाम खतरों के खिलाड़ी का है। यह आदमी खतरों से खेलता है और उनमें भी मुस्कराता है, यह ‘कमल’ वाला है जो कीचड़ में रहकर भी आनंदित रहता है। पर इस कमल की विशेषता यह है कि यह ‘कीचड़’ का स्वच्छता अभियान चला चुका है। अब कीचड़ के पेट में दर्द हो रहा है कि मोदी ऐसा क्यों कर रहा है? पर देश की जनता सब समझ रही है कि जो कुछ भी हो रहा है वह ठीक हो रहा है-क्योंकि इस देश की जनता ने यह बात हजारों वर्ष पूर्व कृष्ण जी से महाभारत के युद्घ के बीच सुनी थी कि जो हो रहा है वह ठीक हो रहा है-अच्छा हो कि देश का विपक्ष भी इस सत्य को समझ ले।

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