इतिहास के सबसे प्रखर कूटनीतिज्ञ -चाणक्यजी जिन्होंने गणतंत्र की शुरुहात की थी .
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम भारत के सबसे प्रखर कूटनीतिज्ञ चाणक्य जी आज भी उतने प्रासंगित है जितने आपने समय में.उन्होंने ‘अर्थशास्त्र”नामक ग्रन्थ लिखा जिसमे राजनैतिक सिधान्तो का प्रतिपादन किया जो राजनीती,अर्थनीति,कृषी ,समाजनीति आदि का महान ग्रन्थ जो मौर्या कालीन समय के समाज का दर्पण है. जिसका महत्व आज के युग में भी है.कई विश्वविद्यालयो ने इसे अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है.वे एक विद्वान,दूरदर्शी तथा ढ्ढ संकल्प के व्यक्ति थे और अर्थशास्त्र ,राजनीती राष्ट्र भक्ति एवं जनकार्यो के लिए इतिहास में अमर रहेगे.लगभग २३०० वर्ष बीत जाने पर भी उनकी गौरव गाथा धूमिल नहीं हुई और इतिहास के अत्यंत सबल और अदभुत व्यक्तित्व है.उनकी कूटिनीति के आधार पर एक नाटक “मुद्रा राक्षस ‘भी लिखा गया,उनके नाम,जन्मस्थान,मृत्यु के बारे में इतिहासकारों में एक राय नहीं है.जन्म पंजाब में ३७५ ईसा पूर्व और मृत्यु २२५ ईसा पूर्व पाटिलपुत्र में माना जाता है..भगवान् वेदव्यास जी ने ५००० पूर्व श्रीमद भगवत लिखी थी जिसमे कलयुग के राजाओ के वर्णन म चाणक्य,नंद्वश, चन्द्रगुप्त मौर्या के बारे में विस्तार से लिखा था.विष्णु पुराण के अलावा बुद्ध ग्रंथो में भी चाणक्य के बारे में लिखा है.उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ अपने उग्र एवं गूढ़ स्वभाव के कारण कौटिल्य कहे गए. कुटिल कुल में उत्पन्न होने के कारण भी .उनका एक नाम विष्णु गुप्त भी था.उनके पिता ऋषि चंडक और गोत्र चणक के कारन चाणक्य नाम से प्रसिद्ध हुए.शुरुवाती शिक्षा पिता से संस्कृत ज्ञान वेदशास्त्र प्राप्त की उसके बाद उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय से २६ वर्ष की उम्र में अर्थशाश्त्र,राजनीती,और समाज शास्त्र में शिक्षा प्राप्त करने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय में कुछ साल अध्यापन कार्य किया मगध के राजा .नन्द के दरबार में अपमानित होने पर उसके राज्य को नाश करने की प्रतिज्ञा करली.एक सड़क में एक बालक को राजा की भूमिका में बच्चो से शिकायत पूंछते उसमे राजा की झलक दिखाई इसका नाम चन्द्र गुप्त था . उसको ८ वर्ष तक अपने संरक्षण में रख कर वेद शास्त्रों से ले कर युद्ध और राजनीती की शिक्षा दे कर शूरवीर बना दिया.और फिर कूटीनीतिक तरीके से नन्द वंश का नाश कर चन्द्र गुप्त को राजा बना मौर्या वंश की स्थापना की.नन्द वंश का मंत्री राक्षस के नामसे प्रसिद्ध है हारने के बाद नन्द के सबलोग या तो भाग गए या मारे गए मंत्री राक्षस भाग गया लेकिन चाणक्य ने गुप्तचरों की मदद से उसे पकड़ लिया लेकिन उसे मारा नहीं और उससे कहा की तुम चन्द्र गुप्त के दरबार में रहा कर राजा को परामर्श दो.फिर ५०० तक्षशिला युवको की टुकड़ी बना सिकंदर के खिलाफ राजा पुरु की मदद की.और फिर बिखरे राष्ट्र को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर महान राष्ट्र की स्थापना की लेकिन खुद एक साधारण से गंगा किनारे आश्रम में रह कर राज्य की नीति के निर्धारन करने और परामर्श देते थे.और गोबर के उपलों में स्वयं खाना बनाते थे.उनका साम्राज्य पूर्व में बंगाल,उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक विशाल राज्य की स्थापना कर्२४ वर्ष राज्य किया.उनका मानना था राजा और मंत्री को अपने आचरणों से प्रजा के समक्ष एक आदर्श पेश करना चाइये.चाणक्य में सादा जीवन,उच्च आदर्शो और कर्मठता की जिन्दगी जी.एक बार उनके घर में वे एक लैंप जलाये सरकारी कार्य कर रहे थे उस वक़्त कोइ अफसर उनसे मिलने आये उन्होंने वह लैम्प बूझा के दूसरा जलया तब बात चीत की पूछने पर कहा पहला लैंप सरकार का था और सरकारी कार्य कर रहे थे अब मै निजी कार्य कर रहे इसलिए अपने खर्चे का लैंप जला रहे है.!एक बार रास्ते में उनका पैर कुषा नाम की कंटीली घास में पड़ गया और घाव हो गया उनको क्रोध आया और प्रतिज्ञा की जबतक इस कुश को समूल नष्ट करते चैन से नहीं सोयेंगे.उन्होंने कुश उखाड कर जड़ो में मट्ठा डाल दिया जिससे फिर न उग सके.ये उनके संकल्प और लगनशीलता को दिखाता है.उनके हिसाब से ३ अवस्थाये ख़राब निशानी है.१ बुढ़ापे में पत्नी का मरना क्योंकि वही सहारा होती है.२.आपका धन आपके शत्रुओ के पास चला जाए,३.जब आप किसी के आश्रित हो जाए इससे स्वतंत्रता ख़तम हो जाती है.!राज्य के लिए ७ प्रमुख अंग बताये. १.राजा(स्वामी):- बुद्धिमान,कुलीन,साहसी धैर्यवान,संयमी ,दूरदर्शी ,तथा युद्ध कला में निपुण .२.मंत्री :(-राजाकी आँखे ) जन्मजात नागरिक,उच्चकुल से सम्बंधित,चरित्रवान,योग और विभिन्न कलाओ में निपुण,और स्वाभिमानी होना चाइये.इसमें प्रसाशनिक अधिकारी भी शामिल है.३.भूमि,जनपद और प्रजा :- राजा को प्रजा के हित में कार्य करना चाइये जबकि प्रजा को राजा की आज्ञा पालन करना चाइये.४.किला:- राज्य की रक्षा के लिए विभिन्न स्थानों में प्रथ्वी,पानी,वन,आदि में किलो का निर्माण करना चाइये.५.कोष ;-राज्य के सञ्चालन के लिए जरूरी है !६.दंड:-शत्रुओ और प्रजा को नियंत्रण के लिए सेना,पुलिस,अदालते,का निर्माण करके उचित दंड दिया जाए.७.मित्र:- शांति और युद्ध काल में सहायता करते !यदि राजा के मित्र लोभी,कामी और कायर होंगे तो विनाश अवश्यंभावीहै.!आदर्श और कृतिम मित्रो में भेद होता है. चाणक्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए गुप्तचर के विशाल संगठन की ज़रूरी बताया.शत्रुनाश के लिए विषकन्या,वैश्या,मंत्रो आदि अनैतिक और अनुचित उपायों की वकालत की इसलिए कुछ लोग चाणक्य की तुलना यूरोप के प्रसिद्द लेखक और राजनैतिज्ञ “मैकियावली से की जिसने अपनी पुस्तक “प्रिंस”में राजा को लक्ष्य प्राप्ति के लिए उचित अनुचित सभी साधनों लेने का उपदेश है.! मृत्यु :- मृत्यु के बारे में दो कहानी है .अ.चाणक्य चन्द्रगुप्त को खाने के साथ थोडा विष देते थे जिससे वे ज्यादा मजबूत हो सके एक बार धोखे से उनकी रोटी उनकी रानी ने खा ली जिससे उसकी तबीयत बहुत ख़राब हुई उस वक़्त वह गर्भवती थी तब उसके पेट से बच्चे को निकलवा लिया और इस तरह राज बंश की रक्षा की जब ये ही बालक बिन्दुसार राजा हुआ तो मंत्री ने उसे बताया की चाणक्य की वजह से उसकी माँ की मृत्यु हुई जब चाणक्य को पता चला की राजा उससे नफरत करने लगे तो वे महल छोड़ कर राज से बहार चले गए और अन्न जल त्याग दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी.उधर दाई ने जब राजा को सच बताया तो राजा ने चाणक्य को बुलाया लेकिन मना कर दिया.दुसरी किवदंती के अनुसार बिन्दुसार के मंत्री सुबंधु ने चाणक्य को जिन्दा जलवाने में सफल रहा.! चाणक्य की कुछ नीतिया बहुत प्रसिद्द है और उनपर अम्ल करने की शिक्षा दी जाती है.
१. आलसी मनुष्य का वर्तमान और भविष्य नहीं होता.!२.दुसरो की गलतीयों से सीखो अपने ही अनुभवों से सीखने में आयु कम पड जायेगी.!३ व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है ऊंचे स्थान में बैठने से नहीं.!४.इतिहास गवाह है की जितना नुक्सान हमें दुर्जनों की दुर्जनता से नहीं होता उससे ज्यादा सज्जनों की निष्क्रियता से होता है.५.नौकर को बाहर भेजने पर,भाईबंधुओ को संकट के समय,दोस्तों को विपति के समय और स्त्री को धन के नष्ट होने पर परखा जा सकता है !६.सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा और कष्टकारी होता है!७.भाग्य उनका ही साथ देता है जो हर संकट का सामना करके अपने लक्ष्य के प्रति द्दढ रहते.८.मूर्खो की तारीफ़ सुनने से बुद्दिमानो से डाट सुनना ज्यादा बेहतर है !९.जो लोगो को कठोर सजा देता वह लोगो की निगाह में घिनौना बन जाता जबकि नर्म सजा लागू करता तुच्छ बनता लेकिन जो योग्य सजा को लागू करता वह सम्मानित कहलाता है !१०.शिक्षा ही ऐसी सम्पति है जिसे आप से कोइ चुरा नहीं सकता ,इसलिए आपके पास जितना भी ज्ञान है उसपर गर्व करे और ज्यादा से ज्यादा सीखने की कोशिश कर उसे बढ़ाये !जो मनुष्य शिक्षित है उसकी हर जगह इज्ज़त होती है.११.इस धरती पर ३ रत्न है आनाज,पानी और मीठे शब्द.!१२.स्वयं से कोइ भी कार्य करने के पहले ३ प्रश्न करो मै क्यों कर रहा हूँ,इसके परिनाम क्या हो सकते है और मै सफल होऊंगा और जब गहराही से इन प्रश्नोका उत्तर मिल जाए तभी काम करना चाइये.
इस महान विद्वान आज कल भी उतना की प्रासंगित है जितना आपने समय में था और इनकी नीतिओ की चर्चा हर जगह होती है. ! रमेश अग्रवाल,कानपुर
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