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याकूब मेनन की फांसी से उठाते सवाल

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम

आतंकवाद देश की बहुत गंभीर समस्या  है  और हमारा देश पिछले २५ सालो से इसका शिकार है.लेकिन आतंकवादियो के मामले में हमारे देश की न्याय प्रक्रिया बहुत लम्बी है.१९९३ के बम फिस्तोत के मुख्या गुनहगार को फांसी देने में २३ साल का वक़्त लगा और उस्सपर भी आखिर दिन तक अदालत को  देर  रात  तक बैठना पड़ा और राष्ट्रपति  को भी आखिर समय दया याचिका खारिज करनी पडी.एक अदालत आतंकवाद से संभंधित मामले के लिए गठन हो जिस्केफैसले के खिलाफ केवल सर्वोच्च न्यायालय में अपील हो इन सब मामले में २ साल से ज्यादा का समय न लगे.बार बार अदालतों में पुनर्विचार याचिकाए नहीं दायर होनी चैये न्याय प्रक्रिया पारदर्शी  हो परन्तु प्रक्रिया भी जल्दी होनी चाइये ऐसे मामले में रोज़  सुनवाई हो.किसी भी हालत में पुरी प्रक्रिया में २ साल से ज्यादा का समाया न हो.जब एक बार राष्ट्रपतिजी ने दया याचिका खारिज कर दी तो दुबारा भेजने का कोई औचित्य नहीं.और जब राष्ट्रपतिजी ने खारिज कर दी तो राज्यपाल के पास भेजने का क्या औचित्य  है. याकुबू मेनन के मामले में जिस तरह पूरी प्रक्रिया हुई उसने बहुत गंभीर सवाल पैदा कर दी.एक तो बहुत दिनों पहले उसकी फान्सीकी सिओचना देश में प्रचारित हो गयी उसके बाद ही उसे बचने के प्रयत्न शुरू हो गए जिसने न्याय प्रणाली पर सवाल  उठाये.जिस तरह नेताओ और मीडिया ने इसे पुरे देश में प्रसारित किया उससे बहुत गलत सन्देश गया बेकार की व्यान्बज़ी हुई किसने नेताओ.सेक्युलर ब्रिगेड की असलीअत सामने ला दी.हमारे नेता आतंकवाद पर भी वोट बैंक की राजनीती करते हैं.३०० लोगो ने जिसमे विभिन्न समूहों के लोग थे राष्ट्रपति को दया याचिका मंज़ूर करने की प्राथना की गयी ये एक तरह का अनैतिक दवाब बनाने की कोशिश की गयी.याकूब को आतंकवादी से हीरो बना दिया गया इतनी ज्यादा कवरेज की कोई जरूरत नहीं थी,टीवी में कई दिनों तक इसी पर बहस होती रही और मुस्लिम नेताओ के विरोध तो समझ में आते है परन्तु कांग्रेस नेताओ के व्यान याकूब के समर्थन में नहीं आते.इससे विश्व के साथ पाकिस्तान को भी गलत सन्देश जाता है और उनके नेताओ को लगता है की भारत में उसके समर्थक भी है.हम लोग अमेरिका,इजराइल और पच्छिमी देशो से क्यों नहीं सीखते की वहां आतंकवादी मामले में बहुत जल्द सुनवाई पुरी हो जाती ,कोई राजनीती नहीं होती और चुप चाप ऐसी सजा दी जाती की दुसरे लोग घटना करते वक़्त १०० बार सोचे.हमारे टीवी चैनल्स और मीडिया ने याकूब के मामले में इतना ज्यादा दिखया जैसे उसने राष्ट्रीय सम्मान का कार्य किया हो.ये केवल अपनी टी आर पी बढाने के लिए की.पंजाब के गुरदासपुर की आतंकवादी घटना पर जब ग्रेह मंत्री राज्य सभा में घटना की जानकारी दे रहे थे सांसद प्रधान मंत्रीजी के खिलाफ नारे लगा रहे थे जिससे बाहर  और पाकिस्तान में सन्देश गया की देश में आतंकवाद पर भी राजनेता इक्कठे नहीं हो सकते.टीवी डिबेट में देखने और सुनने से सर शर्म के मरे झुक जाता है की हमारे यह कुछ लोग आतंकवाद पर भी राजनीती करती है. पंजाब में एक एस.पी आतंकवादी से लड़ता मारा गया उसके परिवार के कई  लोग आतंकवादी से लड़ते मरे गए ऐसे महँ एस.पी को श्रधांजलि देने और धन्यवाद् देने की जगह राज्य सभा पर नारे लगते रहे और न कुछ सुना न कोई बहस हुआ.टीवी डिबेट में मुस्लिम्स, वामदल ,ईसाई आतंक् वाद पर किस तरह के विचार रखते है वे शर्मनाक है.कांग्रेस के नेता तो बिलकुल आराजकता फ़ैलाने में महिल हके वे सरकार को कोई काम नहीं ककरने देना चाहते .हार से इतने बौखला गए की देश की सुरक्षा से भी खिलवाड़ करने में भी शर्म आती.कुछ बुद्धिजीवी है जी हर आतंकवादी की फांसी की सजा के माफी के लिए राष्ट्रपति को दस्तखत करके भेज देते है ऐसा कसब और अफज़ल गुरु के मामले में किया था,राजनातिक विभिन्नता हो सकती परन्तु जब देश की सुरक्षा के मामले में एक हो कर कठोर सन्देश देना चैये.मुस्लिम नेताओ ने ऐसा व्यावार किया जैसे उनके साथ ही अन्याय हो रहा है.वे दुसरे बहुत से मस्लो पर कार्यवाही चाहते है जो अदालत में लंबित है.जितनी भीड़ याकूब  के दफ़न के समाया जितनी भीड़ थी वेह शुभ संकेत नहीं.पाकिस्तान लगातार सीमा पर गोलिया चला कर आतंकवादियो को घुसपैठ करने की कोशिश में है ऐसे में हम लोगो को एक जुट हो कर बहुत सावधान रहना चैये और देश की सुरक्षा के मामले में एक होना चैये .इसके अलावा इजराइल से सहयोग ले कर सुरक्षा मजबूत करनी चाइये.

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