एक बार की बात है नारद जी घूमते फिरते सूत जी के पास पहुचे . सूत जी ने मुनि का खूब स्वागत सत्कार किया फिर कहा हे देव ऋषि आज आपको देख कर यही लग रहा है की आप किसी कार्य से यहाँ आये है ? आप अपने संकोच को त्याग कर अपनी समस्या मुझे बताये ताकि मै आपकी कुछ मदद कर सकू . उनकी बात सुन कर नारद जी अति प्रसन्न हुए और बोले “श्रीमन आप तो जानते ही है की मै हर लोक में बिचरन करता रहता हु अभी कुछ दिन पहले मै धरती के अपने भक्क्तो से मिलने गया था .मैंने वहा देखा की बेचारे पुरुष ,नारियो को खुश नहीं कर पा रहे जिसके कारण विवाहितो का घर में पत्नी से मन मुटाव प्रेमी प्रेमिका में अनबन होती ही रहती है जिसके कारण लोग दुखी रहते है आप कृपा कर कोई उपाय बताये जिस से समाज में शांति लायी जा सके . उनकी बात सुनकर सूत जी बोले हे उदार मना मुनि आप वाकई धरती वासियों के लिए बहुत चिंतित लग रहे है पर अब आप चिंता छोड़ दीजिये मै इसका निदान बता रहा हु यह निदान ब्रम्भा जी ने राजा प्रीतिजित को बताया था . मगर प्रीतिजित को इस निदान की क्या जरुरत आ पडी थी ? नारद जी ने पूछा . सूत जी हसे फिर बोले हे नारद तुम भी तो बिस्वमोहिनी के फेर में पड गए थे न . उसी तरह राजा प्रीतिजित भी शिकार खेलते वक्त भील राज कुमारी स्नेहलता के नैनों का तीर खाकर राजधानी लौटे . उस भीलनी की खातिर राजा राज काज से बिरत अन्न जल त्याग कर उदास हो गए . तब सारी बातो को जानकर राज पुरोहित उस राज कुमारी से मिलने गए ,मगर उसने राजा से विवाह करने से इंकार कर दिया .इधर राजा की हालत दिनों दिन गिरने लगी .राज पुरोहित के प्रयास से ब्रम्भाजी ने यही ब्रत बताया और इस प्रकार स्नेहलता का राजा से प्रेम हुआ जो जीवन पर्यंत बना रहा . हे नारद अब इस ब्रत का बिधान सुनो कलिकाल में जो पुरुष इस ब्रत को निष्ठां पूर्वक करेगा उसे सांसारिक भय व कलह का सामना नहीं करना पड़ेगा . नारद पत्नी या प्रेमिका को प्रसन्न करने वाले इस अमोघ ब्रत को शुरू करने के पहले घर को गाय के गोबर से लीपना चाहिए फिर बम्ह मुहूर्त में उठ कर उस स्थान पर जाकर खड़ा होना चाहिए जहा से उस नारी का दरसन प्राप्त हो जाय. दरसन के उपरांत यदि संभव हो तो उसके चरणों की रज लाकर एक डिब्बी में भर कर रख लेनी चाहिए इस रज से दिन में तीन बार तिलक करने से लाटरी मुकदमा आदि जीतने का प्रबल योग बनता है इसके बाद पत्नी या प्रेमिका की तस्बीर और सैंडिल लेकर नया कपडा बिछा कर उस पर रखना चाहिए इसके उपरांत दूध जलेबी का भोग लगा कर प्रशाद बाटने का बिधान कहा गया है यदि मौका मिले तो उस नारी के घर पर कुछ दिन झाड़ू पोछा का काम जरुर करना चाहिए उसके कपडे धोने के बाद जो जल बचे उस से स्नान करने से भाग्ग्योदय बहुत जल्दी होता है हे नारद हे मुनि श्रेस्ठ कलि काल में जो पुरुष इस प्रकार बिधि पूर्वक स्नान कर ने केबाद भोजन बना कर पत्नी या प्रेमिका को खिलाता है उसको अखंड प्यार की प्राप्ति होती है . इसके उपरांत उस बची हुयी जूठन को प्रसाद स्वरुप ग्रहण करने के बाद चरण चापन का बिधान बताया गया है इक्कीस दिनों तक इस ब्रत को करने वाला पत्थर दिल वाली नारी के ह्रदय को मोम कर उसका प्यार प्राप्त कर सकता है इसमें तनिक संदेह नहीं है हे मुनि जो पुरुष इस कथा को खुद पढ़ कर अपने पाँच मित्रो को पढ़ायेगा उसे गृह कलह की चिंता करने की जरुरत नहीं रहेगी . नारदजी ने संसार की भलाई के लिए यह कथा मुझ तक पहुचाई है कोई भी बिधि बिधान के लिए संपर्क में सकोच न करे
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