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अयोध्या इतिहास के आईने में (भाग २)

MERI NAJAR
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कोटिश जन आकांक्षाओ की श्रधा आस्था व भक्ति से पोषित मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम

की नगरी अयोध्या कही राजनीती के कुटिल षड्यंतो का शिकार तो नहीं हो गयी . तुष्टिकरण
की नीति के पोषण के कारको ने श्रधा चिंतन व भक्ति के जीवंत केंद्र को अपनी साजिशो का
आधार तो नहीं बना डाला .
यह लेख लिखते हुए यह द्वन्द बरकरार है विचारो का प्रवाह अपनी अयोध्या व अपने श्री राम के
लिए कुछ भी लिपि बद्ध कर डालने को उकसा रहा है पर संस्कार जनित धार्मिक मूल्य व सामाजिक
सरोकार सहिष्णुता और सद भावना से पोषित होने के कारण ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत
करने का प्रयास कर रहे है
इतिहास करो के अनुसार अयोध्या में एक फकीरथा . जिनका नाम ख्वाजा
फजल अब्बाश मुषा आशिकान . फकीर साहब का बाबर पर बहुत प्रभाव था और परिस्थिति
विशेष में उसने बाबर से यह बचन ले लिया था की अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर के
स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया जायेगा .बाबर आक्रमण कारी होने के कारण अपनीशक्ति
और राज्य की सीमओं की बढ़ोतरी की लिप्सा को रोक नहीं पाता था .उसे अपनी मुस्लिम फौज में एका व अपना
वर्चस्व कायम रखने के लिए धर्म गुरुओ की जरुरत पड़ती थी और बदले में उन धर्म गुरुवो की ख्वाहिसे पूरी करी पड़ती थी
इतिहास कर लिन्डेन के बाबर सम्बन्धी संस्मरणों में यह लिखा गया है की ८मर्च सन१५२८ को
अयोध्या से तीन कोस पूर्व बाबर ने पड़ाव डाला था
बाबर की आत्मकथा बाबरनामा के पेज १७३ में लिखा है ” हजरत फजल अब्बास मुषा आशिकान
कलंदर साहब की इजाजत से जन्मभूमि को मिस्मार करके मैंने उसी के मसाले से उसी जगह
मस्जिद तामीर की “.
इस तरह खुद बाबर ने यह काबुल किया है की फकीर साहब की इच्छा को पूरी करने के लिए
मंदिर को तोडा गया . इसका अन्य प्रमाण ऐतिहासिक पत्रिका मार्डन रिव्यू ने ६ जुलाई १९३४
के अंक में फारसी लिपि में ” शाही फरमान” ,’ शाही मुहर ” के साथ प्रकाशित किया था .
इसी तरह” आईने अकबरी के अनुसार हिन्दू प्रजा की आस्था को जानकर अकबर ने बीरबल
और टोडरमल की सलाह पर मंदिर के एक भाग पर हिन्दुओ को पूजा की इजाजत दी थी
” अयोध्या के रक्त रंजित इतिहास के लेखक” पंडित राम रक्षा त्रिपाठी के अनुसार १५२८ में राम जन्म भूमि मंदिर को तोडा गया , अयोध्या के राम जन्म भूमि से राम कोट तक बहुत से स्थान अपवित्र किये गए .साक्ष्य और प्रमाणों से अलग हट कर जन भावनाओ और उदगारोंको यहाँ समेटे बिना शायद यह लेख अधुरा होगा .मैश्री कृष्ण मोहन मिश्र जी की अभिवक्ति को यहाँ दे रहा हु जिसमे कोटि कोटि आकांक्षाये प्रति विम्वित हो रही है
[‘एक बात जो मुझसे छूट गयी थी वह ये है कि तमाम मस्जिदें जो कि मंदिरों के तोड़े गये अवशेषों से ही बनी है इसलिये उनकी बनावट में शिल्प में कही न कही मंदिर का वह भाग आ ही जाता है । यहां तक कि बहुत सी मस्जिदों में तो वह पत्थर साबूत लगे हैं जिन पर संस्कृत में उस प्राचीन मंदिर या उस देवी देवता की महिमा में कोई श्लोक लिखा है ।

हम उन तमाम मंदिरों की भी बात नहीं करते लेकिन गलत इतिहास लिख कर और पढ़ा कर आप एक सनातन देश के सांस्कृतिक इतिहास को मिटाने पर तुले हुये हैं] ।
मैंने इस लेख में सिर्फ अयोध्या के ऐतिहासिक संदर्भो को आप तक पहुचने का व विनम्र प्रयास किया है मैंने बहुत ही आभार सहित श्री हर नारायण शर्मा जी के लेख से
बाबरनाम का जिक्र ‘. व श्री कृष्ण मोहन मिश्रा जी की प्रतिक्रिया यहाँ पर लिखी है
मुझे पूरा विश्वाश है . की हमारी धार्मिक सहिष्णुता व सामाजिक भाई चारे पर किसी किस्म का अघात नहीं होगा . न्यायलय के फैसले के बाद भी सामाजिक शांति कायम रहेगी

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