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मृग लोचनि नयना द्वय कारे

MERI NAJAR
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मृग लोचनि नयना द्वय कारे |

नभ   अषाढ    छाए घन कुंतल ,मुख   मंडल       लट डारे |

छवि ललाट लखि अरध चन्द्र ज्यो,बिंदिया मोहनि मारे |

दीठि   उठनी   छवि  पलक पलटि,चितवनि   वार करारे |

रक्तिम    अधर   मनोहर   नाशा,   चिबुक    बड़े   मतवारे |

रूप   लोभ   तिल    बनि बसिगे , भ्रमर    ये      कारे कारे |

दंतावलि   चपला सो         चमकति, मेघन तोरि किनारे |

ग्रीवा गढ़नि      सुरा घट केरी , मद          के बहत पनारे |

कटि कंचन बल खाति चपल बनि ,अवनि जबहि पग डारे |

पायल   छम्म छमा छम बाजति , मनहि     बांसुरी     वारे |

राधा          रानी         रूप      सलोना , मोहन   जादू    डारे |

मन अंखियन छवि लख्यो मातु री नयन न “रमेश” उघारे |

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