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हे परी लोक की राज कुँअरि

MERI NAJAR
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हे रूप राशि हे मृग नैनी हे दाड़िम दन्तो वाली |

हे कोकिला स्वरी,मृदु बैनी केश राशि काली काली |
हे परी लोक की राजकुअँरि , दर्शनीय अधरो की लाली
हे सुंदरी मदिरा घट ग्रीवा ,कटि केहरि सी मतवाली |
तेरे रुखसारों को छूने ,मै आंसू बन कर बहलूगा |
इन कजरारे नैनों में मै काजल बन रह लुगा |
तेरे रक्तिम अधरो को मै भंवरा बन कर चूमूंगा |
पांवो में पायल बन कर मै छम- छम बज लुगा |
क्या कहु प्रिये मै बनू महावर तलवो में भी सज लूंगा |
होली में तुम जो भी चाहो वह बन कर मै बज लूंगा |
मेरा प्रणय निवेदन गोरी सब होरी की माया है |
भांग नहीं खायी जीवन में बस फागुन छाया है |
( मित्रो फागुन का नशा मुझ पर भंग से भी ज्यादा चढ़ता है | श्रंगार रस लिखते लिखते बहक गया हु | बुरा न मनो होरी है

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