इस सम्पूर्ण मिश्रण को उच्च ताप पर इतना गर्म करें ताकि ये सब पिघलकर परस्पर मिल जायें. यदि उच्च ताप की व्यवस्था नहीं हो सकती हो तो प्रज्ञादीप (जिसे शायद चिकित्सा रसायन में पोलिक्रा मेडाथीनिया कहा जाता है) को सम्पूर्ण मिश्रण का एक चौथाई मात्रा मिलाकर मिटटी के बर्तन में कपूर एवं शहद की लेई से भली भांति बंद कर एक सप्ताह तक छोड़ दें. तदुपरांत बर्तन में से द्रव निठार लें और ठोस को लेकर लिंग के सोडियम ट्रिसिलेट के साँचे में रखकर मुहूर्त भर प्रतीक्षा करें उसके बाद उसे निकाल कर प्रथम अग्नि सूक्त, उसके बाद शिव सूक्त और अंत में पुरुष सूक्त से सप्तामृत-दूध, घी, दही, शक्कर (चीनी नहीं), शहद, हल्दी और रक्त चन्दन) से अभिषेक कर तथा उन्ही मंत्रों से हवन कर जागृत-सक्रिय कर लें.
शृणु देवि कालिके इग्दुत्थतमोमेरु प्रस्थाग्नि तथा.
वसोभेषजम भद्रं लिंगमर्चनात नेत्ररसावसूम.
असहयो त्रिदेवास्म त्रैलोक्ये प्रचुरस्चलम.
क्षुद्रखेटा तदंश भूताः यद्विदधे चतुर्दशानि वा.
इस लिंग को भद्रकाली ने निर्मित कर देवराज इंद्र को दिया था जिससे उन्होंने त्रैलोक्य विजयी ऋतसून नामक दैत्य का वध कर राजा सोमकेतु एवं महारानी ऋतू को कुष्ठ रोग से मुक्त किया था.
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