पारद भगवान् शिव का स्खलित वीर्य है. सनद रहे, समुद्रमंथन के समय विश्वमोहिनी के लीला में संलग्न कर भगवान् शिव ने अपना वीर्य स्खलित किया था. जो धरती पर गिरा. तथा जहां जहां गिरा वहाँ वहां सोने, चांदी, हीरा, जवाहरात आदि का भण्डार बन गया. कालान्तर में भिषगाचार्यों एवं रस रसायनज्ञों द्वारा पारे से सोना बनाने की विधि स्थापित की गयी.
वास्तव में पारा या mercury जब सोना (Au), चांदी (Ag), ताम्बा (Cu), हीरा (इसमें संभवतः प्लूटोनियम के 1200 तथा कार्बन के 4000 अणु होते हैं.) से संपर्क करता है तो वायुमंडल का फास्फोरस, सोडियम तथा केलिथोलोनिक पैरोसोनोलिया तत्काल घुल जाते हैं तथा सल्फाक्वाड्रोथेलानिल या पोटेशियम ट्रेक्लोनेथालीनिडीन का निर्माण करने लगते है. जो शरीर के रिबोन्युक्लिक पैरामिलिडियम तथा मेताफ़िलिक क्वांड्रम को जला देते हैं .
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार जहां भगवान् शिव का वीर्य रहेगा वहां पर लक्ष्मी, गणेश या सरस्वती का विग्रह कैसे रखा जा सकता है?
यही कारण है कि जहां पर पारद शिवलिंग या पारा की गोलियाँ या पारे से बना अन्य कोई सामान हो वहां पर लक्ष्मी, गणेश या सरस्वती की प्रतिमा या यंत्र न स्थापित करें.
और यदि लक्ष्मी, सरस्वती या गणेश की प्रतिमा या यंत्र स्थापित करना ही हो तो उस घर या कक्ष में घी, या तिल के तेल या सरसों के तेल का दीपक जलावें न कि मरकरी लाईट. और न ही उया घर में पारा या इससे बनी कोई सामग्री ही रखें. यह अनेक तरह का कष्ट, हानि एवं विघ्न देता है.
ध्यान रहे- मेरे ज्योतिष आदि से सम्बंधित लेख आज कल फेसबुक पर ही प्रकाशित हो रहे हैं. पेज का नाम है –वेदविज्ञान
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