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लक्ष्मी पूजन – वैदिक, पौराणिक एवं तांत्रिक विधान

वेद विज्ञान
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अश्विन शुक्ला दशमी को भगवान राम ने दशानन रावण का वध कर विविध स्थलों एवं तीर्थो का दर्शन करते हुए कार्तिक कृष्ण अमावश्या (दीपावली) को अयोध्या पहुंचे थे. जनक पुर से अयोध्या आते समय भगवान राम एवं लक्ष्मी (सीता) को मगध क्षेत्र (बिहार) के कर्मनासा के दक्षिणवर्ती तट जो भगवान शिव ने कापालिको एवं अन्य निन्दित कर्म करने वालो के लिए काशी क्षेत्र से काट कर दे दिया था, उधर से गुजरना पडा. ज्योही लक्ष्मी (जानकी) के साथ भगवान राम ने इस निन्दित क्षेत्र में प्रवेश किया, पापकर्मा दरिद्रता को मौक़ा मिला एवं वह अयोध्या में प्रवेश कर गया. और लक्षी (जानकी) को भगवान राम के साथ चौदह वर्षो के लिए अयोध्या का परित्याग करना पडा.
इधर जब अयोध्या में पता चला कि लंका विजय के पश्चात आज अमावश्या को भगवान राम नगर में प्रवेश करने वाले है, गुरु वशिष्ठ ने ढिढोरा नगर में पिटवा कर यह सख्त हिदायत कर दी कि समूचे नगर में एक भी कोना ऐसा नहीं बचना चाहिए जहा तृण भर भी अन्धेरा बच जाय. अन्यथा लक्ष्मी (जानकी) पुनः अयोध्या छोड़ देगी. इस आदेश का सख्ती से पालन हुआ. प्रत्येक व्यक्ति ढूंढ कर ह़र अँधेरे स्थान पर दीपक जला कर उजाला करता गया. अयोध्या में एक धोबी रहता था. वह एक आँख से अंधा था. उसने भी अपने पूरे घर में दीपक जला कर उजाला कर दिया. केवल उसकी एक आँख जो खराब थी उस आँख क़ी दिशा में उसे दिखाई नहीं दिया. और वह वहा पर उजाला नहीं कर पाया. दरिद्रता को मौक़ा मिला वह अपने अन्य सहयोगियों झूठ, पाखण्ड, लोभ, तृष्णा, पाप, वासना, क्रोध, मोह, घमंड आदि के साथ धोबी के घर के उस अँधेरे स्थान में प्रवेश कर गया. और आगे क़ी कथा सर्व विदित है कि उस धोबी ने पाप से प्रभावित अपनी बुद्धि से भगवान राम एवं लक्ष्मी (जानकी) के प्रति बड़े ही तीखे एवं उलाहना भरे शब्दों का प्रयोग किया. उसने अपनी पत्नी से कहा ” मै राम नहीं हूँ जो एक महीना तक अपनी पत्नी दूसरे व्यक्ति के पास भेज दू. तथा फिर उस अश्लीला, चरित्रभ्रष्टा औरत को वापस अपने पास रख लू. मै सीधा ऐसी औरत को घने जंगल में छोड़ दूंगा.”
पाप प्रेरित इस उग्र शब्दवाण से मर्माहत हो भगवान राम ने अयोध्या से लक्ष्मी (जानकी) का परित्याग कर उनको जंगल में भेज दिया.
तभी से दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा. दीपावली के दिन घर का एक भी ऐसा कोना नहीं बचना चाहिए जहा पर गन्दगी एवं अन्धेरा हो. अन्यथा लक्ष्मी दूर भाग जाती है. इस दिन तो ऐसे ही रात पूर्णतया अंधेरी होती है. क्योकि आज अमावश्या होती है. उसमें भी यदि गन्दगी फ़ैली हो तो ऐसे में दरिद्रता को और भी मौक़ा मिल जाता है. अतः यही प्रयत्न करना चाहिए कि घर का कोई भी कोना ऐसा नहीं बचना चाहिए जो गन्दा या अँधेरे में हो. पुनः लक्ष्मी के प्रति आदर भाव एवं श्रद्धा का भाव प्रदर्शित करते हुए भक्ति भाव से पूजा पाठ करना चाहिए. लक्ष्मी क़ी पूजा के तीन विधान बताये गए है.
१. वैदिक विधान-दश अंगुल लम्बे चौड़े भोज पत्र पर तीन लाल, पीला एवं हरा रंग में रंगा चावल त्रिकोण के रूप में फैला कर उस पर कमल के फूल ऊर्ध्व मुखी रख कर शुद्ध हो कुश के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठे. ताम्बे के पात्र में शुद्ध जल भी पास रखना चाहिए. घी मिश्रित धुप क़ी दश बत्ती बना कर जला देवे. तीनो फूलो के आगे घी के तीन दीपक जला कर रखे. सब कुछ करने के बाद हाथ में चावल एवं सुपारी लेकर यह संकल्प लेवे कि आज अपनी दरिद्रता एवं कष्ट निवारण हेतु त्रिगुण संपन्ना लक्ष्मी क़ी वैदिक विधान से पूजा करूंगा. उसके बाद तीनो फूलो पर व्युत्क्रम पूर्वक एक में महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती क़ी कल्पना करे. तीनो को बारी बारी से धुप, दीप एवं जल चढ़ावे. उसके बाद निम्न मंत्र का सस्वर उदात्त एवं अनुदात्त विधान से एक सौ आठ बार जाप करे. प्रत्येक मंत्र के उच्चारण के बाद तीनो देवियों पर जल गिराता जाय. मंत्र निम्न प्रकार है-
“ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वेनक्षत्राणी रूपमश्विनौ व्यातम्म. ईष्णम्मीषाण मुम्म ईषाण सर्व लोकम्मीषाण. ॐ श्री लक्ष्म्यै नमः”
उसके बाद इसी मंत्र से एक सौ आठ बार आहुति देवे. और उस पूजा स्थल क़ी परिक्रमा कर पूजा का समापन करे. किन्तु यह एक बहुत ही टेढा कार्य है. क्योंकि वैदिक मंत्र का उच्चारण जनसाधारण के लिए कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है. यह कार्य एक अति कुशल वेद पाठी ही कर सकता है. अतः सामान्य व्यक्ति को यह पूजन प्रक्रिया नहीं अपनानी चाहिए.
२. पौराणिक विधान-सर्व प्रथम फल, फूल , मिठाई, धुप, घी, दूध, शहद, दही, कुश क़ी पवित्री एवं कुशासन, प्रवाहित करने योग्य गणेश एवं लक्ष्मी क़ी प्रतिमा- ध्यान रहे लक्ष्मी एवं गणेश क़ी प्रतिमा किसी भी स्थिति में दश अंगुल से ऊंची नहीं होनी चाहिए यदि केवल अपने व्यक्तिगत घर में पूजा करनी हो, नौ रंगों में चावल, प्रवाहित करने योग्य कलश, नारियल, सुपारी, पान पत्ता, पंचमेवा, तीनो चन्दन (लाल, सफ़ेद एवं गोपी चन्दन), गणेश एवं लक्ष्मी के वस्त्र तथा दीपक. पहले विधान से संकल्प लेकर कलश स्थापन करे. कलश के ठीक आगे गणेश एवं गौरी को स्थापित करे. उसके आगे नवो रंगों वाले चावल तीन तीन क़ी पंक्ति में रखे. यह इस प्रकार रखना चाहिए कि कलश इसके बीच में पड़े. फिर इन्ही चावलों के बीच गणेश एवं लक्ष्मी क़ी प्रतिमा स्थापित करे, दीपक में घी आदि ड़ाल कर उसे जला ले. धुप भी जला लेवे. तथा अंत में कुशासन पर बैठते हुए पवित्री का मंत्र पढ़ते हुए बैठ जाय.सर्व प्रथम कलश के सन्निकट स्थित आदि गणेश एवं गौरी क़ी पूजा कलश के साथ करे. उसके बाद चावलों पर नवोग्रहों क़ी पूजा करे. कलश के ऊपर अपने पितरो क़ी पूजा करे. इस प्रकार सब समस्त देवी देवता आ जाय तब अंत में पार्थिव गणेश एवं लक्ष्मी क़ी पूजा करे. यदि इस गणेश एवं लक्ष्मी क़ी प्रतिमा के सामने सोने एवं चांदी के गहने या सिक्के रख कर पूजा क़ी जाय तो और भी अच्छा होता है. क्योंकि यह साक्षात लक्ष्मी का रूप है. किन्तु भूल कर भी इस प्रतिमा के सामने कागज़ के रुपये न रखे. किन्तु आज कल यह एक परम्परा चल चुकी है कि लोग रुपये को भी इस प्रतिमा के आगे रख कर पूजा करने लगते है. क्रम इस प्रकार है-
नद्यार्षानि तीर्थानि त्रिमुखं गणगौरिश्चेती. खेटायमाश्रिता यः पालय लोक दिशिस्थानभिः.
नालेपनाक्षतश्चरसनीतम पुष्पोपरी वस्त्राणि च. अभिषेकोपरी दीपमनादद्यु विशेशें श्री पूजने.
अर्थात लक्ष्मी पूजा में विशेष रूप से सर्व प्रथम कलश, आदि गौरी गणेश, नवग्रह, पृथ्वी, पितर, लोक पाल, दिक्पाल, भूत प्रेत, चुड़ैल, हाकिनी, डाकिनी तथा अंत में पार्थिव गणेश एवं लक्ष्मी क़ी पूजा करनी चाहिए. चन्दन चढाने के बाद हल्दी, दूध चढाने के बाद घी, दही के बाद शहद, पुष्प के बाद वस्त्र, अभिषेक के बाद दीप एवं अक्षत के बाद सुपारी नहीं चढ़ाना चाहिए. पान के पत्ते पर लौंग इलायची के साथ कभी भी साबूत सुपारी नहीं चढ़ानी चाहिए. हमेशा उसे तोड़ कर एवं धो कर ही चढ़ाना चाहिए. फूल कभी नहीं धोना चाहिए, दूर्वांकुर बिना धोये नहीं चढ़ाना चाहिए. पीसी हुई सूखी हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए.
३- तांत्रिक विधान- एक पानी वाला नारियल, एक नारियल का गोला, सुहागा, माजू फल, समुद्रफेन, मयूर पंख, अनार क़ी डंडी, मृग चर्म, आदि. पहले सत्तासी गेहू के दाने तवा पर इतना भूनें कि वह जल जाय. फिर उसे पिस लें. उसमें केले के पत्ते का रस मिला कर स्याही बना लें. एक छटाक कपूर में एक छटाक शहद खूब पिस कर घोट लें, तथा उसे कपास क़ी रुई में लपेट कर बत्ती बना लें. कमल के पांच साबूत पत्ते लेवें, उस में एक पर दो समुद्र फेन के टुकडे को माजू फल के साथ पिस कर दो गोली बना कर रख दे. गेहू के आटे में गोरोचन मिलाकर उसे गूथ लें. तथा उसकी टेढी मढी जैसे भी हो दो कल्पनात्मक गणेश एवं लक्ष्मी क़ी प्रतिमा अंदाज़ पर बना लें. तथा उसे एक कमल के पत्ते पर विराज मान करा दें. दोनों के बीच में एक मयूर पंख रख देवे. घी मिश्रित धुप में गूगल एवं लोबान मिला लें. एक मिट्टी के दीपक में पानी भर ले. तथा उसमें ऊपर बनायी गयी बत्ती खड़ी कर जला दे. इसके बाद मृग चर्म पर बैठ जाय. सबसे पहले जो पत्ते पर दो समुद्र फेन के गोले बनाए गए है, उन पर थोड़ा शहद गिरा कर कुछ चावल के दाने चिपका दें. उसे धुप एवं दीप दिखायें. तथा निम्न मन्त्र पढ़ें-
” ॐ ह्रौं ह्रीन्ग ह्रूंग फट प्रकाशय”
उसे थोड़ा फल फूल दिखा कर एक केले पत्ते से ढक कर रख दे. वास्तव में ये दोनों दरिद्र देवता एवं व्याधि देवता है. उसके बाद जो आटे क़ी प्रतिमा बनी है उसकी पूजा करे. गूगल एवं लोबान का जो धुप बनाए है उसे दिखायेइ. उसके बाद जो कपूर एवं शहद का दीपक बनाए है उसे दिखायें. उसके बाद धार दार चाकू से नारियल का गोला काटें. ध्यान रहे नारियल का गोला काटते समय एक बार जब चाकू रगडना शुरू करें तो तब तक उसे रगड़ते रहे जब तक वह कट न जाय. चाकू को बार बार निकाल कर न रगडें. रगड़ते वक्त निम्न मंत्र पढ़ते जाय-
“ॐ क्लीं कमला प्रसीदय ह्रीं हरण भय मोचन ऐं परित्राणय श्राम शरणम चम् हम क्लम लक्ष्मी स्थिरा भव.”
उसके बाद उस नारियल के दो टुकडे हो जाने पर वह गणेश एवं लक्ष्मी को दिखाए. फिर लौंग इलायची आदि चढ़ाए. उसके बाद उन दोनों प्रतिमाओं को दूध से स्नान करावे. फिर घी का दीप जला कर दिखाए. उसके बाद उदुम्बर (गूलर) एवं खदिर (खैर) क़ी लकड़ी पर केवल घी में काले तिल को मिलाकर उपरोक्त मंत्र को पढ़ते हुए एक सौ आठ बार आहुति डालें. जब तक लौ न फूटे आहुति न डालें. यः सब हो जाने के बाद ष कटा सँ में उस आहुति कि परिक्रमा करे. और ज्यो ही आधी रात से एक प्रहर व्यतीत हो जाय पहले दरिद्र एवं व्याधि देव को घर से दक्षिण दिशा में गाव के बाहर जमीन में दबा दे. और वापस आकर रात के ही समय पुनः स्नान कर लक्ष्मी एवं गणेश को धुप दीप आदि दिखा कर वही पर सो जाय. प्रातः काल समस्त सामग्री बहते पानी में प्रवाहित कर दे. यह तांत्रिक विधान है.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग
9889649352

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