प्रत्येक व्यक्ति, माता-पिता या अभिभावक अपनी संतान का वैवाहिक जीवन सुखमय देखना चाहता है. यही नहीं इसके लिये न चाहते हुए या अपनी कुल परम्परा से हट कर अपने बेटा-बेटी की हर जायज नाजायज इच्छाओं का मूक अनुसरण भी करता है. पहले माँ बाप जिस किसी लड़की से अपने लड़के या अपने लड़के से जिस किसी लड़की की शादी कर दिये उसे संतान शीश झुकाकर सिरोधार्य कर लेती थी. आज पहले संतान अपनी पसंदीदा कुछ जोड़ियों में से अपने लायक “जोड़ी” चुनती है. तथा “घडी डिटर्जेंट टिकिया की तरह पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें” आश्वस्त होने के बाद अपनी पसंद अपने अभिभावक को बताते हैं. और अभिभावक या माँ-बाप वर्तमान समय की इस नाजायज मांग में अपने बेटी या बीटा का सुखी जीवन देखते हुए खुद भी उसके समर्थन में जी जान से जुड़ जाते है, जो उनकी मजबूरी है,
पहले नवविवाहिता बहू अपने सास ससुर या जेठानी आदि से भरसक घूँघट में भी सामने आकर बात नहीं कर पाती थी. किन्तु आज तो नवविवाहिता जोड़ी अपने माँ-बाप से यह कहते हुए भी नहीं झिझकते हैं कि-“पिताजी, सुहाग रात मनाने के लिये थोड़ा फूल वाले को सेज सजाने हेतु बुलवा दीजिये.”
खैर बेटा बेटी ही नहीं बल्कि माँ-बाप भी अपनी कुल परम्परा से हट कर कुछ नया एवं चमक-धमक दिखाकर समाज में अपने आप को ऊँचा एवं इज्जतदार स्थापित करने के लिये धर्म-परम्परा एवं मर्यादा को ताक पर रखते हुए इसे अपनी शादी का एक अति आवश्यक अंग मान चुके हैं. और इस जोश खरोश में यह भूल जाते हैं कि इस परम्परा को स्थापित करने के पीछे ऋषि-मुनि या आचार्यों की क्या मनसा थी जो एक सुखी एवं पवित्र जीवन के लिये अति आवश्यक है.
जो भी हो, अब तो दिखावे की यह व्याधि समाज ही नहीं अपने मन मष्तिस्क में भी बहुत गहरी जड़ जमा चुकी है.
इस सम्बन्ध में मैं अपने पिछले लेखों में इसके कारक ग्रहों का विषद विश्लेषण दे चुका हूँ.
मैं यही इतना कहना चाहूंगा कि आज अपनी बेटी को लोग शादी में गहने, आभूषण या अन्य सामग्री विदाई के समय देते हैं. या अपने बेटे को भी शादी का कुछ न कुछ उपहार देते ही हैं. इस सम्बन्ध में यह कहना चाहूंगा कि उपहार के तौर पर अपने बेटा या बेटी को शादी में “शीर्ष पट्टिका” भी अवश्य बनवा कर दें. इससे लगभग बहुत ज्यादा वैवाहिक जीवन के दुखदायी अवरोध दूर होते हैं. यह एक छोटी पेटी में बनवाकर अपनी बेटी को समर्पित अवश्य करें. इसमें मंगल-शुक्र-चन्द्र तथा राहु के अवरोधक कवच लक्ष्मी, पादुका एवं शैय्या के रूप में बनवाकर रखे जाते है. और लड़की इससे सताकर अपना मंगल सूत्र या सिन्दूर बॉक्स रख सकती है. या यह उनके सिंगार दान सजाने के काम भी आ सकता है.
इसे अपनी क्षमता के अनुसार बनवाया जा सकता है. यद्यपि यह महँगा अवश्य पड़ता होगा. किन्तु जब इतना खर्च एक शादी में किया जा सकता है तो तीस चालीस हजार रुपया उसमें और भी खर्च किया जा सकता है.
इसमें बनवाये जाने वाले पदार्थ-
लक्ष्मी का स्वरुप- इसमें राँगा में कपर्दिक सिन्दूर गलाकर उस में अपनी क्षमता के अनुसार सोना या चांदी या पीतल या ताम्बा उच्च ताप पर पिघलाकर मिलाकर समुद्रफेन में ठण्डा कर लिया जाता है. तथा उससे लक्ष्मी की छोटी आकृति तैयार करवा ली जाती है.
चरण पादुका- नीला थोथा तथा शाखजराव के जारद भस्म में शीशा तथा रसकपूर मिलाकर चरणपादुका तैयार कर ली जाती है तथा उसे गर्म अवस्था में ही मदार (आक) के दूध में ठंडा किया जाता है.
शैय्या- लाल मखमल के कपडे को चिरौन्धा तथा गुड्कंद के रस में भिगोकर सुखा लिया जाता है. तथा पुनः उसे फिटकरी के पानी से धोकर सुखा लिया जाता है तथा उसे उस पट्टिका में बिछ दिया जाता है.
इस पट्टिका को आप अपनी सुविधा के अनुसार आधा फुट या एक फुट लम्बे चौड़े आकार के सुन्दर डिब्बे या पेटी में बनवा सकते हैं.
इसका प्रभाव निर्माण से अगले पंद्रह वर्षों तक रहता है. यदि आवश्यकता या इच्छा हो तो पुनः बनवाया जा सकता है. इसमें ग्रहों की विकिरानात्मक क्षमता से युक्त औषधियाँ रहने के कारण नव विवाहित दम्पति को नियंत्रित रखने में सहायता मिलती है.
आज भी परम्परागत रीति रिवाज से विवाह होने वाले पुराने उच्च घरानों में इसे दहेज़ के रूप में देते हुए देखता हूँ. उसके निर्माण की गुणवत्ता क्या होती है, इसके बारे में मैं कुछ नहीं बता सकता. किन्तु यह एक बहुत ही आवश्यक सामान है जो शादी में अवश्य ही देना चाहिए.
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