एक अति प्रसिद्द दक्षिण भारतीय सामुद्रिक ग्रन्थ “युग्मविभाष्यम्” जिसके रचयिता गिरिराज माधवन है, में मैंने बहुत पहले पढ़ा था कि भ्रातृस्नेह के कारण जब चन्द्रमा ने पार्थिव औषधियों का समस्त ज्ञान धनवंतरी को दिया तो अपनी सन्निकटता धरती से होने के कारण स्वयं से बनने वाले योगो (नाभस योग, चन्द्र योग, राशि योग आदि) का भी भरपूर ज्ञान दे दिया। जिससे धनवंतरि ने विविध योग-पदार्थो का रासायनिक एवं भौतिक योग (Chemical Compounds & Pharmaceutical Equipment) आविष्कार किया। यदि हम शारंगधर संहिता, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता आदि के श्लोक संगठन को ध्यान एवं गणितीय विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखें तो यह सहज ही स्पष्ट हो जाएगा।
इधर सूर्यवंशी सगर के पुत्रो का चंद्रवंशी एवं सांख्य योग के प्रणेता महर्षि कपिल के शाप से नाश हो गया था. उनके पुत्र भगीरथ ने गँगा को भगवान शिव की जटाओं से प्रवाहित कराकर धरती पर लाने का प्रयत्न किया ताकि चन्द्रमा के द्वारा गंगाजल में अमृत (औषधि) भी मिश्रित हो जाएगा। कारण यह कि चन्द्रमा के पास ही अमृत (औषधि) कलश है. इसीलिए चन्द्रमा को सुधांशु भी कहा जाता है. किन्तु चन्द्रमा ने इससे अपने वंशज कपिल का असम्मान समझा।और गँगा जल में कोई औषधि मिश्रित नहीं किया। भगवान सूर्य क्रुद्ध होकर अपने युग्म पुत्रो – अश्विनी कुमारो को औषधि विज्ञान का ज्ञान दिया। और अश्विनी कुमारो ने बहती गँगा में प्रवाह मार्ग में आने वाली विविध वनस्पतियों, शिलाओं आदि से गँगा जल को औषधिमय बना दिया। देवनदी में पार्थिव रसायनो को मिलाकर इसे पार्थिव बना देने से देवसमुदाय ने अश्विनी कुमारो को “भिषककर्मी” कह कर यज्ञ भाग से पृथक कर दिया। तो इन अश्विनी कुमारो ने स्वर विज्ञान (मन्त्र) एवं खगोलीय चिकित्सा (Radiology) का आविष्कार किया। इसके आगे भी बहुत लम्बी कथा है. अतः विषयांतर हो जाएगा। इस प्रकार तीन चिकित्सा प्रणालियाँ आविष्कृत हुई – स्वर विज्ञान (स्फुरणादनहत्रिनाडिका क्षोभितस्वमपा स्युः), विकिरण विज्ञान (Radiology) एवं जीवाश्म विज्ञान (Herbal & Fungoid Compounds treatment). कालान्तर में भगवान शिव ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को शल्य चिकित्सा (Surgical Treatment) का ज्ञान दिया। इसीलिए शल्य चिकित्सा को आसुरी चिकित्सा का नाम दिया गया है.
इस प्रकार चन्द्रमा के द्वारा एक एवं सूर्य के द्वारा दो नैरुज्य एवं आयु संरक्षण विधान प्रदत्त हुए. चन्द्रमा ने राशि लीला की अवधारणा दी जब कि सूर्य ने लग्न एवं सूर्य लग्न (जो आज कल पाश्चात्य देशो में अपनाई जा रही है) को जीव जगत को प्रदान किया।
अब हम देखते है विविध चिकित्सकीय ग्रंथो के योगो (यौगिकों-Compounds) को जिनके अवयवो को प्रत्येक प्रकाशित एवं अप्रकाशित सौर मंडलीय पिंडो का प्रतिनिधित्व प्राप्त है. और तब पता चलता है कि प्रत्येक वनस्पति-पदार्थ अलग अलग ग्रह नक्षत्रो से सम्बंधित हैं. जिनके सम्यक एवं समानुपाती प्रयोग से भौतिक विकृति (रोग-व्याधि) एवं आतंरिक विकृति (भ्रम-जादू-टोना-नजर आदि) का निवारण किया जा सकता है.
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