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सेना, सैनिक और सेना के अधिकारी की सच्चाई

वेद विज्ञान
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सेना में एक सैनिक की जिंदगी क्या होती है, यदि सच्चाई जान जायें तो सारी देशभक्ति, देशप्रेम और राष्ट्रप्रेम की भावना दुम दबाकर भाग खड़ी होगी। जी हां, सेना में सैनिक आज की तारीख में अपने सीनियर अधिकारियों का या तो घरेलू नौकर होता है, या फिर घुटन तथा पीड़ा में भयंकर शराबी बन जाता है या फिर यह सोचकर कि “यदि सेना में नौकरी नहीं करूंगा तो बाहर और कोई नौकरी है नहीं, क्या करूंगा”। यह सोचकर बस अपना फ़र्ज़ एक खानापूर्ति के रूप में करता है, यदि मजबूरी आ जाय तो फिर बचाव में गोली तो चलानी ही है। अन्यथा ऐसे यदि गोली चला दिया तो उसे कोर्ट के चक्कर लगाने में ही अपनी सारी छुट्टी तथा महीने का वेतन वकील और कचहरी में दे कर आना पड़ता है।
सहज ही देखा जा सकता है कि सुबह के समय एक सैनिक अपने अधिकारी के कुत्ते टहलाता किसी भी छावनी या यूनिट के रोड पर मिल जायेगा। यद्यपि सरकार उसे सैनिक के कार्य के लिये सेना में भर्ती कर रखा है तथा लाखों रुपया उस सैनिक पर सेना और सरकार खर्च करती है। किन्तु यदि यही बात उसने यदि अधिकारी से कह दिया तो उसकी कोई Casualty पब्लिश नहीं की जायेगी। उसे आवश्यक न होते हुए भी TD के नाम पर इस शहर से उस शहर इतना दौडाया जाएगा कि वह या तो कोई घातक काम कर बैठे या फिर नौकरी से इस्तीफा दे दे और यदि वह कुत्ता टहलाता रहता है तो कोई उसे नहीं पूछने वाला। उसे समय से छुट्टी मिलती रहेगी, यदि छुट्टी समाप्त हो गई है तो उसे फरलो लीव दे दिया जायेगा। तथा उसके बाद उस साल उसकी एक महीने की छुट्टी भी एनकैश पब्लिश कर दी जायेगी।
एक जवान यदि छुट्टी जाता है और उसकी गाड़ी यदि सुबह के समय है तो वह अनिवार्य रूप से शाम को सेना की गाड़ी से फेमिली बच्चों के साथ प्लेटफार्म पर जाकर रात बिताएगा और सुबह ट्रेन पकड़ेगा। उसे सुबह यूनिट से कोई गाड़ी नहीं दी जायेगी, ताकि वह अपने बच्चे बीबी के साथ प्लेट फ़ार्म पर गाड़ी पकड़ने जाय। किन्तु उस अधिकारी के बच्चे को स्कूल छोड़ने के लिये यूनिट की गाड़ी जायेगी। जिसमें एक ड्राइवर, एक डंडा मैन तथा एक सेवादार अर्थात तीन सैनिक होगें। जब की एक सैनिक एक भारी रकम देकर किराए पर किसी टेम्पो आदि से अपने बच्चे को स्कूल भेजता है. यही नहीं यदि उस अधिकारी की बीबी बाजार “शापिंग” करने जाती है तो एक ड्राइवर, एक सेवादार और एक डंडामैन तीन सैनिक उसे बाजार घुमाने ले जायेगें और जब तक मेम सा’ब बाजार में इस दूकान से उस दूकान कुल्फी खायेगीं, वे तीनो गाड़ी लेकर उनके पीछे पीछे चलते रहेगें–भले रात के बारह बज जायें।
क्या आप को पता है कि सेना के एक अधिकारी का लड़का तो हमेशा सेवादारों के भरोसे रहा, विविध माल और बार में घूमता रहा. पढ़ाई से उसका कोई मतलब रहा नहीं. आर्मी स्कूल में पढ़ा जहां पर केवल सेना के अधिकारियों की ही बीबीयाँ पढ़ाती हैं. दिन भर उन्हें विविध पार्टी, खेल और ऐसे ही कार्यक्रम कराने का ही शौक रहता है या उन लोगों ने केवल इसी काम के लिये विद्यालय में नौकरी ही की हैं, ऐसी ही अनपढ़ और फैशनेबुल बीबियाँ क्या खाक पढ़ायेगी? किन्तु परीक्षा केंद्र पर विशेष व्यवस्था के द्वारा उन्हें किसी तरह नक़ल कराकर पास करा देने की व्यवस्था हो जाती है। किन्तु वह लड़का किसी कम्पटीशन में तो भाग ले नहीं सकता. क्योंकि उसने कभी पढ़ाई की ही नहीं है. इसके अलावा वह फ्री का राशन खाकर मोटा भोंडा शरीर का हो जाता है। अतः क्योंकि उसका बाप सेना में अधिकारी है, अतः उसने भर्ती अधिकारी से कहकर उसे सेना में भर्ती करवा देता है तथा वह सर्वथा अयोग्य लड़का सेना में अधिकारी बन कर तनख्वाह लेना शुरू कर देता है। देखा जा सकता है कि सेना के अधिकारी का लड़का सिवाय सेना में अधिकारी के वह म्यूनिसिपैलिटी में एक चपरासी के भी काबिल नहीं होता है। वह न तो दौड़ पायेगा, न तो उससे सेना की BPT, PPT आदि हो पाएगी। किन्तु चूँकि यह टेस्ट करवाने वाला भी सेना का ही अधिकारी होता है, अतः वह इन सब सारे टेस्ट्स में पास कर दिया जाता है। किन्तु एक सैनिक का लड़का इतने प्रतिबंधों से होअक्र गुजरता है कि यदि उसे सेना के अधिकारी की कमान दे दी जाय तो शायद सेना का कायाकल्प हो जाय. क्या देखा है कि किसी भी आपरेशन में यदिगालाती से कोई अधिकारी साथ में गया तो वह पीछे से आदेश देगा , आगे नहीं जायेगा और यदि वह गलती से आगे गया तो स्वयं भी मारा जायेगा और साथ के सैनिकों को भी मरवा देगा।
सेना में आर्डिनेंस से बनी वर्दी मिलती है. किन्तु वह सैनिक बेचारा उसे नहीं पहन सकता. उसे निर्धारित दुकानदार के यहाँ से ही कपड़ा खरीद कर वर्दी सिलवाना है। उस दुकानदार से उस अधिकारी को कमीशन मिल जाता है। इसके अलावा वह दुकानदार उस अधिकारी को फ्री में उसके लिये तथा उसके पूरे परिवार के लिये कपडे देता है. फिर वह यूनिट में टेलर से जिसे उस अधिकारी ने यूनिट में डिटेल कर रखा है। वह सैनिक कपड़ा सिलवाता है।  दुसरे टेलर के यहाँ वह अपनी वर्दी नहीं सिल्वा सकता। इसके बदले में वह टेलर उस अधिकारी को कमीशन तो देता है, इसके अलावा उस अधिकारी के पूरे परिवार के विविध माडल के कपडे फ्री में सिलता है। आज अधिकारियों के फ्रेश राशन को बंद कर दिया गया है. इसके एवज में उन्हें नकद पैसा मिल जाता है. पहले जब राशन मिलता था तो उन्हें मजबूरी में लेना ही पड़ता था. आज वे अधिकारी पैसा भी लेते हैं तथा यूनिट के क्वार्टर मास्टर से फ्री में जवानों के राशन से अपना फ्रेश भी ले लेते हैं और सैनिक कुछ बोल नहीं सकता दर के मारे. अन्यथा उसका ACR खराब कर उसका प्रोमोशन रोक दिया जायेगा, इसके अलावा उसे समय से छुट्टी नहीं दी जायेगी। तथा उसे temporary duty पर हमेशा इधर से उधर भगाता रहा जायेगा।
एक family welfare नामक कार्यक्रम चलाया जाता है, उसमें प्रत्येक सैनिक की पत्नी को आना ही आना है। उसमें जवानो की बीबियाँ नाच गान दिखायेगिन, अधिकारियों की बीबियों को जिस किसी ने इनकार कर दिया उसका क्वार्टर तत्काल खाली कराया जायेगा।यही नहीं इसके अलावा उस फेमिली वेलफेयर के नामों पर हजारों रुपये का खर्च दिखाकर पैसा गड़प कर लिया जाता है। जब की एक सैनिक अपना परिवार अपने साथ इस लिये रखता है कि उसके बच्चे पढ़ेगें या फिर कोई बीमार है तो उसके इलाज के लिये वह क्वार्टर लेता है। लेकिन चाहे कुछ भी हो, चाहे उसकी बीमार हो, या घर का काम करना उसके लिये आवश्यक हो, फेमिली वेलफेयर में उसे जाना ही जाना है। यूनिट से अपने घर का फर्नीचर खरीदते हैं तथा उसका खर्च यूनिट पर दिखाते हैं. फर्जी बिल पास हो ही जाता है। क्योंकि फिल्ड एरिया में आडिट होता नहीं और पीस एरिया में लोकल आडिट आफिसर को यूनिट से दारू तथा कैंटीन का सामान दिला दिया जाता है. तथा उसे रेजिमेंटल फंड से पे कर दिया जाता है।
अधिकारियों की करतूत के बारे में
सेना के इतने उच्च अधिकारी कि उससे ऊंचा पद कोई होता ही नहीं है- लेफ्टीनेंट जनरल– वह लूटते-घोटाला करते पकड़ा गया–दिखाने के लिये कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी बैठी और धीरे धीरे टांय टांय फिश्श्श हो गया। मेजर जनरल गुरु इकबाल सिंह, मेजर जनरल एस. सी. शर्मा, लेफ्टीनेंट जनरल ए. के. साहनी, लेफ्टीनेंट जनरल अवधेश प्रताप सिंह, लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश रथ आदि सर्वोच्च पद पर बैठे सेना के अधिकारी–सेना के अरबो-खरबों रुपये लूट कर बैठ गये। रंगे हाथों पकडे गयेक्या हुआ? सब रफा दफा हो गया, आज किसी पर कोई दाग़ नहीं है। लेकिन यदि एक सैनिक होता तो नौकरी छूटनी तो दूर, उसका पेंशन रुक जाना तो दूर, उसे जेल के अंदर कर दिया जाता है।
कैंट में एक सिनेमा हाल, लाइब्रेरी तथा जिम खोला गया है। आज कोई भी सैनिक सिनेमा देखने नहीं जा पाटा है। क्योंकि ड्यूटी के समय ड्यूटी करता है, और जब ड्यूटी से छोतता है तो वह बाजार से अपने परिवार की आवश्यक खरीद करने चला जाता है। उसके बाद भोजन आदि करके थोड़ा आराम करता है और उसके बाद फिर ड्यूटी पर चला जाता है. उसके बच्चे दिन में स्कूल में रहते हैं तथा शाम को ट्यूशन जाते हैं या फिर अपना होमवर्क करते है। यदि ज्यादा ही मन थका तो टीवी देख लेते हैं, आज कौन सा ऐसा व्यक्ति होगा जिसके घर में टीवी न हो। इधर उसकी बीबी खाना बनाएगी या सिनेमा देखने जायेगी। किन्तु कोई सैनिक या उसका परिवार चाहे सिनेमा देखने जाय या न जाय सैकड़ो रुपये प्रतिमाह उसे यूनिट को देने ही देने हैं।

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