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जिम्मेदार नागरिकों को करना होगा मंथन

अवध की बात
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सुबह सोकर उठा ही था। देखा कि अखबार आ गया। नजर पड़ी तो शाही इमाम मौलाना बुखारी खबर की सुर्खियों में थे। यादों के पिटारे में झांककर देखा तो मानस पटल पर कुछ सालों पहले की तस्वीर उभरकर सामने आ गयी। यह तस्वीर थी वर्ष 2004 की। उस समय यही शाही इमाम साहब ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए वोट देने का फतवा मुसलमानों को जारी किया था। चुनाव का परिणाम आया तो शाही इमाम साहब के इस फतवे के ठीक उलट नजारा नजर आया। ऐसे ही एक बार फिर शाही इमाम साहब ने देश के मुसलमानों से कांग्रेस के पक्ष में वोट देने के लिए कहा है। शायद शाही इमाम साहब ने यह नहीं सोचा कि मुसलमान के घर में पैदा हुआ आज का युवा इन संकीर्णताओं से अब आगे जा चुका है। वह अब देश में संकीर्ण विचारों के साथ नहीं जीना चाह रहा है। यह सब तस्वीरे मानस पटल पर उभर रही थीं। तभी अचानक एक विचार आया। लगा कि शाही इमाम साहब ने वह काम कर दिया जो देश के दुश्मन नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा करके शाही इमाम ने देश में साम्प्रदायिक विभाजन की नींव रख दी। शाही इमाम ने यह नहीं कहा कि जो देश में एकता और अखंडता कायम करे, जो देश के सभी धर्म व सम्प्रदाय के लोगों को प्यार और मुहब्बत के साथ एक नजर से देखे। ऐसे राजनीतिक दल का समर्थन किया जाए। उन्होंने सीधे फतवा जारी कर दिया कि मुसलमान कांग्रेस को वोट दें। जाहिर है कि ऐसा करके उन्होंने दूसरे वर्ग की भावना को भड़काने का काम किया। इसके लिए शाही इमाम जितने जिम्मेदार हैं, उससे कम सोनिया गांधी को जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता। अब देश के जिम्मेदार नागरिकों को इस पर मंथन करना होगा कि वह क्या करें।

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