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अखिलेश सरकार का ‘विजन’ न विकास की ‘मंशा’

अवध की बात
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15 मार्च 2015 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार के तीन वर्ष पूरे हो गए। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब दो वर्ष से कम का समय शेष रह गया है। अखिलेश यादव की सरकार की तीसरी वर्षगांठ का यह दिन उत्तर प्रदेश की इन वर्षों में विकास यात्रा का अवलोकन करने का सर्वोत्तम दिन है। इस सरकार के पिछले तीन वर्ष के कामकाज पर नजर डाले तो इस सरकार का न तो कोई ‘विजन’ दिखाई देता है और न ही प्रदेश को विकास के पथ पर आगे ले जाने की कोई मंशा नजर आती है। अगर कुछ दिखता है तो बस अराजकता, मनमानीपन, महत्वपूर्ण पदों पर अपनों को बैठाने की कोशिश, जातीयता का जहर पैदा करना। इससे इतर कुछ भी नजर नहीं आता है। वर्ष 2012 में 15 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अखिलेश यादव की कैबिनेट की पहली बैठक में ही विधायकों को लक्जरी वाहन खरीदने के लिए विधायक निधि से 25 लाख रुपए दिए जाने का फैसला लिया गया था। इस फैसले की आलोचना हुई तो निर्णय को वापस ले लिया गया। दूसरी कैबिनेट की बैठक हुई तो महानगरों और शहरों में शाम सात से रात 11 बजे तक विद्युत कटौती का फरमान जारी कर दिया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इस अवधि में बिजली का सर्वाधिक खपत होती है। व्यापारियों ने जब तर्क दिया कि इसी अवधि में उनका सर्वाधिक कारोबार होता है तो फिर फरमान वापस ले लिया गया। 2012 में चुनाव के दौरान बेरोजगारी भत्ता, इंटरमीडिएट उत्तीर्ण छात्रों को लैपटॉप और हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्रों को टैबलेट दिए जाने की घोषणा की गई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद करीब दो साल तक अखिलेश यादव कूद-कूद कर विभिन्न जिलों में भव्य समारोहों में पहुंचकर लैपटॉप का वितरण करते रहे। लोकसभा चुनाव में जब पूरे उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के पांच सांसद जीतकर आए तो सरकार ने इस योजना को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया। लैपटॉप वितरण के लिए आयोजित किए जाने वाले समारोहों में ही करोड़ों रुपए बेवजह खर्च कर दिए गए। इन सब घटनाओं का जिक्र इसलिए करना जरुरी है कि आपकी जेहन में यह बात साफ हो जाए कि इस सरकार को कोई ऐसा ‘विजन’ और ‘डिसीजन’ नहीं दिखाई देता, जिससे उत्तर प्रदेश विकास के पथ पर एक कदम भी आगे बढ़ सके। अब हम बात करेंगे उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से साम्प्रदायिक दंगे की शुरुआत हुई। प्रदेश के विभिन्न अंचलों से होती हुई साम्प्रदायिक दंगे की आग ने मुजफ्फरनगर में ऐसा वीभत्स रुप धारण कर लिया कि सैकड़ों निर्दोष लोगों की अपनी जान गंवानी पड़ी। मां और बहनों की आबरु लूटी गयी। यह घटनाएं उस जिले में हुई, जहां के प्रभारी मंत्री मुलायम सिंह यादव को अपना सबसे बड़ा सरपरस्त मानने वाले आजम खान हैं। इतनी बड़ी घटना के बाद भी आजम खान की शान में कोई कमी नहीं आयी। शायद आजम खान के स्थान पर मुजफ्फरनगर को कोई और मंत्री रहा होता और ऐसी घटना घटती तो सबसे पहले उसे मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया जाता। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि दो मंत्री अखिलेश सरकार की कैबिनेट से बर्खास्त किए गए हैं। एक तो मरहूम राजाराम पाण्डेय जी रहे, जिनके ऊपर सिर्फ इस बात का इल्जाम था कि उन्होंने एक महिला मुलाजिम की खूबसूरती की भरी सभा में तारीफ कर दी थी। दूसरे हैं फैजाबाद मिस्टर तेज नारायाण उर्फ पवन कुमार पाण्डेय जो खुद को अखिलेश यादव का बालसखा बताते हैं। पवन पाण्डेय ने ही दो साल पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यालय में ब्राह्मण सम्मेलन कराया था। पवन पाण्डेय पर भी महज इस बात का इल्जाम है कि उन्होंने किसी सरकारी मुलाजिम से जोर जबरदस्ती की। उत्तर प्रदेश के ही प्रतापगढ़ जिले में डिप्टी एसपी जियाउल हक की एक प्रधान की हत्या के बाद भड़के आक्रोश में भीड़ ने हत्या कर दी तो उसका इल्जाम अखिलेश कैबिनेट के मंत्री कुंवर रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भइया’ पर मढ़ दिया गया। इसके बाद राजा भइया ने खुद मंत्री पद छोड़ दिया। मामले की सीबीआई जांच हुई और राजा भइया निर्दोष साबित हुए। बंदायू में दो दलित बालिकाओं को शव पेड़ से लटका हुआ पाया गया। इस मामले में राज्य सरकार की जांच एजेसिंयों ने अलग-अलग रिपोर्ट दी। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के निदेशक को ही बेसिक शिक्षा विभाग के भी निदेशक का कार्यभार दे दिया गया। नियमत: एक व्यक्ति को ऐसे महत्व के दो पदों का काम नहीं सौंपा जा सकता है। इस पर हाईकोर्ट ने भी टिप्पणी की, फिर भी राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर कोई असर नहीं पड़ा। लोकसेवा आयोग में नियुक्तियों में एक वर्ग विशेष के अभ्यर्थियों के चयन का मामला अभी तक गूंज रहा है। पुलिस के तो न जाने कितने अधिकारियों की हत्या कर दी गर्इं। मथुरा और प्रतापगढ़ में शिक्षकों की हत्या किए जाने का भी मामला सामने आया। इलाहाबाद में सीजेएम कोर्ट परिसर में एक अधिवक्ता की पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। गोरखपुर के एसएसपी पर वहां से समाजवादी पार्टी के विधानपरिषद सदस्य ही पैसा लेकर लोगों की हत्या करवाने का इल्जाम लगा रहे हैं। यह मामला उन्होंने सदन में भी उठाया। यह सब बातें तो दीगर हैं, खुद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ही राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते रहते हैं और मंत्रियों को भी यह संदेश देते रहते हैं कि वह लोग सही कार्य नहीं कर रहे हैं। प्रदेश भर की सड़ों की दशा दयनीय है। तीन साल से न तो सड़कों की मरम्मत हो पा रही है और न ही नई सड़कों का निर्माण हो पा रहा है। नहरों में पानी नहीं आया। क्रय केन्द्रों पर किसान अपनी उपज को नहीं बेंच सके। इसके बावजूद भी यह सरकार खुद को जलकल्याणकारी बताती रही। सैफई में कौन-कौन से और किस तरह के आयोजन हुए मैं इसका जिक्र करना नहीं चाहता। ऊपर जिन-जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है, उतने से ही आप यह समझ गए होंगे कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार सही मायने में किस मिशन पर काम कर रही है।
रमेश पाण्डेय

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