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बिग बास और राखी का इंसाफ जैसे टीवी शोज को लेकर बवाल चल रहा है. टीवी चैनल्स हल्ला मचा रहे हैं. हेडिंग चलाई जा रही है ‘ये क्या हो रहा है. अजी क्या हो रहा है जो आप देख रहे हैं वहींहो रहा है. या जो आप देखना चाहते हैं वो हो रहा है. एक घर में दर्जन भर लोगों का खाना-पीना, सोना देखना इतना इंट्रेस्टिंग कैसे हो सकता है जबतक इसमें कुछ तड़का न लगे. जिस घर में वह रह रहे हैं व करोड़ों की लागत का है. उसकी साज सज्जा में करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं. होस्ट करने के लिए करोड़ों रुपए सलमान खान को दिए गए हैं. जो 12-13 लोग आए हैं वे भी मोटा माल काटने की आस में 85 दिन यहां रहेंगे, कुछ दगे पटाखे हैं. वे राहुल महाजन की तरह फिर पर्दे पर छाने की उम्मीद पकड़े हैं. शायद इसी भरोसे उनकी बंद दुकान फिर चल पड़े वरना किसी को क्या अटकी पड़ी है जो एक बंद मकान में दर्जन भर लोगों के बीच अपना सिर खपाता रहे. अब जब करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं तो जाहिर सी बात है कमाई अरबों में होनी चाहिए.
तो साहब ऐसे तो कमाई होने से रही. टीआरपी के माइलस्टोन फैक्टर क्राइम, सिनेमा, सेक्स में से कुछ फैक्टर्स निकालना मजबूरी है. न्यूज चैनल्स की भी मजबूरी है. आप संस्कृति के ठेकेदार तो हैं नहीं. अगर हैं तो स्वीमिंग पूल पर काहे वीना मलिक और अस्मित पटेल की चिपका-चिपकी वाले सीन दिखाते हैं. मत दिखाइए ना. लेकिन क्या करें मजबूरी इनकी भी है. इन्हें भी ऐड बटोरना है. टीआरपी अगर जरा सी भी नीचे गिरी तो सबकी नौकरी हिल जाएगी. सब कुछ बिजनेस के लिए है. हल्ला भी और हल्ले की वजह भी.
राखी सावंत के प्रति लोगों का नजरिया ये है कि उसे वे पसंद नहीं करते लेकिन उसकी हर खबर पढ़ते हैं. उसे चीप पापुलैरिटी गेन करने वाली एक्ट्रेस मानते हैं लेकिन उसने अपना पल्लू सरकाया तो क्यों सरकाया या किसी को गाली दी तो क्यों दी, सब कुछ जानना चाहते हैं. हमारी सोसायटी की ये मनोवृत्ति है. आज से नहीं सदियों-सदियों से चली आई है. गांव की नौटंकियों में नाचने वालियों को लोग अच्छी नजरों से नहीं देखते. लेकिन जब उनका प्रोग्राम होता है तो छिपते-छिपाते नाक रगड़ते वहां पहुंच जाते हैं. मनोवृत्ति आज भी वही है. तकनीक और माध्यम मार्डनाइज हो गए हैं..बस.
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