अनथक
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निस्पृहता मनुष्य का एक बड़ा गुण है , जो उच्च आचरण का मार्ग प्रशस्त करता है | रहीम जी का इसी भाव का एक दोहा है — ”चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह । जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह | ” कहने का तात्पर्य यह कि जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वे राजाओं के राजा हैं, क्योंकि उन्हें न तो किसी चीज की चाह है, न ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।
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