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माया का सच

अभिव्यक्ति
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माया की माया का सिलसिलेवार जवाब है यह –  
आपके पहले बिन्दु का उत्तर यह है कि मायावती की सरकार की पकड़ बहुत मजबूत है, लेकिन यह सुशासन के लिए नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के काम आ रही है। भ्रष्टाचार का इतना संगठित कारोबार पहले किसी सरकार में नहीं देखा गया। आलम यह है कि किस विभाग में किस सीट पर एक क्लर्क एक फाइल पर कितना वसूलता है, उस तका ब्योरा बहनजी के पास है। अफसर अपने किसी नातेदार रिश्तेदारों  का काम कराने से अव्वल मना ही कर देते हैं। कराना ही पड़ा तो उन्हें भले ही उस काम की रिश्वत अपनी जेब से भरनी पड़े, उसमें  उपर का हिस्सा देना ही पड़ता है।
दूसरा बिन्दु बलात्कार और अपराध का है। यह सरकार ही अपराधियों के बनी है। कई मंत्री विधायक जेल में हैं। थाने बिक रहे हैं, नतीजतन पुलिस निरंकुश है। अपराध पहले भी हो रहा था, लेकिन थाने में बलात्कार के बाद एक लड़की को मार कर टांग दिया जाये और कहा जाये कि उसने थाने में आ कर आत्महत्या कर ली, ऐसा नहीं होता था। दो दो सीएमओ मार डाले जायें, जेल में हत्या हो जाये, ऐसा नहीं होता रहा है। जाहिर है कि रंजिशन या आवेश में होने वाली हत्या या मारपीट नहं रोकी जा सकती। बलात्कार रोकने के लिए हर जगह पहरा नहीं बैठाया जा सकता। लेकिन अपहरण, लूट, डकैती और छिनैती जैसे संगठित गिरोह के अपराध पुलिस की सक्रियता से रोके जा सकते है।। कम से कम सड़क पर लोगों का चलना तो सुरक्षित किया ही जा सकता है। इसके लिए जरूरी होता है पुलिस का दबका, वह खत्म हो गया है। हमारे वर्तमान डीजीपी को सही ढंग से काम करने दिया जाये तो 24 घंटे में इस प्रदेश में अपराध रुक जाये। उन्होंने तो सीएमओ हत्याकांड के असल गुहनगार को 24 घंटे से कम समय में अपने दफ्तर में  हाजिर करा लिया था। लेकिन हुआ क्या। बहन जी की पता नहीं वह कौन सी गोट उस सांसद ने दबा रखी है जो उसे बचाने के लिए दो मंत्री हलाक कर दिये गये।
तीसरा बिन्दु दरअसल मुख्यमंत्री अपने दीर्घकालिक भविष्य के लिए ही व्यापक भ्रष्टाचार कर रही हैं। वामपंथी दलों के बाद अगर कहीं फुलटाइम पार्टी वर्करों को तन्ख्वाह दी जाती है तो वह बसपा ही है। लेकिन उसके पास वामपंथी दलों जैसी लेवी और सदस्यता की व्यवस्था नहीं है।
उनके एकएक जोनल क्वार्डिनेटर और राज्य प्रभारियों की तन्ख्वाह व खर्चे लाखों में है। पूरे देश में संगठन विस्तार करके बसपा को राष्ट्रीय स्तर पर सफल करने का सपना इस शासनकाल में भारी पड़ रहा है। फिर जैसे अन्य दलों को खासा चंदा ठेकेदारों, व्यापारियों व उद्यमियों से मिलता है, वैसे बसपा के साथ नहीं है। उसे उनकी सहायता से कहीं ज्यादा दलाली में मिलने वाले कमीशन पर भरोसा है। सत्ता में आने से पहले उसे समाज से मिलने वाली सहायता बहुत कम थी और जो समाज उसका बेस वोटर और सदस्य है, वह स्वयं दो जून की रोटी जुटाने की मशक्कत करने ही पस्त है।
ऐसा नहीं है। उनके पहले के शासनकाल के सख्त प्रशासन ने ही इस पद पर दोबारा पहुंचाया है। क्या वह पहले के शासनकाल में दलित नहीं थीं, अफसर उनके सामने थर-थर कांपते थे। लेकिन वसूली तो उन्होंने इस दौर में की थी, उनके इस लालच और मजबूरी तो मजबूरी उपर बता चुका हूं, को अफसर भांप चुके थे, जैसे ही इस बार वह सत्ता में आयी, उन्होंने उसे भुना लिया।
अपराधियों के बिना प्रदेश में राजनीति बिल्कुल मुमकिन है। कल्याण सिंह की सरकार ने यह करके दिखाया भी था। हां राजनाथ सिंह ने जो भ्रष्ट गठजोड़ खुलेआम कायम किया, उसने अन्य दलों के लिए रास्ता ज्यादा खुला कर दिया, क्योंकि भाजपा जो नीतियों और सिद्धांतों वाली पार्टी थी, उसने ही एक बड़े अपराधी के भाई को सदन में पहुंचाने की दीदादिलेरी दिखाई। राजनीति बिना किसी अपराधी की मदद के संभव है, भाजपा, कांग्रेस और वामपंथी दलों के कई उम्मीदवार इस बात की नजीर हैं, कि वे बिना किसी अपराधी की मदद लिए अपने क्षेत्र में खासे लोकप्रिय हैं। हां, बिना अपराधियों की मदद के जो सत्ता में आये, उसका यह दायित्व बनता है कि वह अपराधियों के संगठित गिरोह का सफाया करे। यथा शराब माफिया की जड़ पर हमला करे। यहां बता दें कि बसपा राज में एक और अपराध दोबारा शुरू हो गया है, जो लंबे समय से नारकोटिक्स ब्यूरो की सक्रियता से बंद हो गया था। यानी बाराबंकी में मार्फीन और स्मैक के निर्माण और तस्करी का धंधा। हाल में कई पकड़े भी गये हैं। सत्ता के लिए सिद्धांतों की बलि देने वाले कुछ नहीं रोक सकते।        
  

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