swarnvihaan
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हवा की सरहदें…
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हवा की सरहदों पे तुम हो..
दीप की कतार से…
या फैसले के हक में तनी हो
कलम की धार से…
है तेवरों में तल्खियाँ
जूनून है खुमार है..
गलत है या सही
यहाँ गुबार ही गुबार है..
जो तख्तियों पे लिख गए है
वक़्त के विचार से…
कदम कदम चले तो
कोई मंजिलें भी तय करें..
सफर के दर्द को
किसी से बाँट करके कम करे…
मगर न कोई साथ दे..
तो क्या उमर गुजार दे…?
कहा सुनी बहुत हई
मिला न रास्ता कहीँ…
अगर न चल सको
हमारे साथ साथ तुम अभी….
कोई वजह नहीँ मगर
की हम तुम्हें बिसार दें..
चमक रहा नही
गगन में सूर्य कोई भी नया..
उम्मीद का सिरा
उलझ के उलझनों में रह गया…
है रिक्तियों में रंग भी
गरीब के उधार से….
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