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खुद को जबरन सलाम ठुकवाने की आदतों का त्याग करोगे तो ही जनता का भला होगा

काम नहीं तो बातें ह
काम नहीं तो बातें ह
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खुद को जबरन सलाम ठुकवाने की आदतों का त्याग करोगे और सामने वाले को जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाओगे तो ही जनता का भला होगा।
मीटिंगों, अभियानों, आदेश-निर्देशों के अम्बार लगाकर जनता का भला करने का दावा चंद पल भी अटूट नहीं रह पा रहा।
तेज रफ़्तार से किये जा रहे दौरों ने आमजन की जीवन की अति आवश्यकता शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को अव्यवस्था में बदलते हुए तोड़ सा दिया।
चिकित्सा से जुड़े सिस्टम को अभियानों, हड़तालों में धकेल दिया।
चिकित्साकर्मियों और मरीजों का व्यवहार एक दूसरे के प्रति खिन्नता उतपन्न करने सा होने के बावजूद सुधार का जमीनी स्तर पर प्रयास नहीं करते।
उपचार से संतुष्ट नहीं होने वाला आरोपों की बौछार करता है तो उसकी बात को नकारता रहता है प्रशासन।
जनता को राहत देने के लिए रात्रि चौपाल, प्रशासन आपके संग, सरकार आपके द्वार सहित ना जाने कितने तामझाम किये जाते हैं पर नतीजा ढाक के तीन पात से आगे नहीं बढ़ पाते।
इंसान स्वस्थ-शिक्षित रहे तो बाकी के सारे दोष दूर करने में स्वयं ही सक्षम हो सकता है पर ऐसी सकारात्मक पहल करने से पैसा नहीं कमाया जा सकता।
जब अर्थ युग में पैसे की माया हो तो कौन सकारात्मक काम करके जोखिम भरा जीवन जीना चाहे ?
अभियानों,अधिकारियों की बैठकें लेने, अंधाधुंध दौरे के बजाए अगर करता धर्ता सीधे बिन बताये किसी अस्पताल-स्कूल में पहुंचे और वहां मिली हकीकत पर एक्शन ले तो तत्काल परिणाम मिले ?
मौके पर ही समस्या-सुविधाओं के बारे में बातचीत करे तो काम दिखे।
जनता तो वर्तमान में पीड़ित है ही पर शिक्षा-चिकित्साकर्मी भी पीड़ित हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
एक सकारात्मक पहल करे कर्ता धर्ता और शिक्षा-चिकित्सा से जुड़े कार्मिकों की समस्या सुने।
समस्या-मांगे जो भी हो मान ले तो उनके पास काम करने की ही सोच रहे।
मांगे मानकर पाबंद कर दे उन कर्मचारियों की तुम्हारी मांगे हमने तो पूरी कर दी ,अब तुम जनता की परवाह करो।
नियम ऐसे बने की आये दिन की किच किच से पिंड छूटे।
कर्मचारियों की वेतन-भत्तों की बड़ी से बड़ी मांगे मानने से सरकारी बजट पर लोड पड़ेगा तो उसकी भरपाई मीटिंगों, अभियानों जैसे कामों में कटौती होने से होगी।
आये दिन की हाजिरी लगाने से कर्मचारी मुक्त रहेगा।

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